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Rojgareshwar Mahadev Temple : राजधानी का एक ऐसा शिवालय जिससे डरते हैं सत्ताधारी, बेरोजगारों की होती है मुराद पूरी - Rojgareshwar Mahadev Temple Demolition

देवों के देव महादेव के अनगिनत मंदिर हैं. हर मंदिर का अपना धार्मिक (History of Rojgareshwar Mahadev Temple) महत्व है, लेकिन आज हम आपको जयपुर में स्थित ऐसे शिव मंदिर के बारे में बताएंगे, जिससे सत्ताधारी हमेशा से डरते रहे हैं.

Rojgareshwar Mahadev Temple
रोजगारेश्वर महादेव मंदिर
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Published : Feb 11, 2023, 7:40 PM IST

राजधानी का एक ऐसा शिवालय जिससे डरते हैं सत्ताधारी

जयपुर. प्रदेश की राजधानी जयपुर में स्थित रोजगारेश्वर महादेव मंदिर से सत्ताधारी हमेशा भय खाते हैं. इस मंदिर को जिसने भी हटाने का प्रयास किया, उसे ही इसका पुननिर्माण कराना पड़ा है. ऐसे दो उदाहरण आज भी याद किए जाते हैं. जयपुर की छोटी चौपड़ पर स्थित रोजगारेश्वर महादेव को पहले स्टेट पीरियड में मिर्जा इस्माइल ने और लोकतंत्र में पूर्वर्ती बीजेपी सरकार ने विकास के नाम पर हटाया. दोनों ही मर्तबा इस मंदिर का पुनर्निर्माण किया गया, पहले से और भी भव्य. आखिर ऐसा क्या है इस मंदिर में जिसकी वजह से जिसने इसे हटाने का प्रयास किया, उसी ने दोबारा निर्माण भी कराया?

ये है इतिहास : 286 साल पुराने जयपुर के मध्य छोटी चौपड़ से लगते हुए त्रिपोलिया बाजार में राज परिवार की ओर से वास्तु के अनुसार इस मंदिर का निर्माण किया गया. मान्यता थी कि भगवान शिव यहां आने वाले बेरोजगार की रोजगार की मुराद पूरी करते हैं. यही नहीं हर व्यापारी अपने प्रतिष्ठान पर जाने से पहले यहां मत्था जरूर टेकता है, हालांकि 2015 में भूमिगत मेट्रो के निर्माण कार्य के दौरान पुराने मंदिर को ध्वस्त करने का फैसला लिया गया. एक क्रेन के माध्यम से इसे जमींदोज किया गया. जो व्यक्ति क्रेन चला रहा था, उसने इस काम को करने से पहले हाथ जोड़कर भगवान से प्रार्थना की थी क्योंकि उसे रोजगार ही यही मिला है.

पढ़ें. व्यापारी से लेकर बेरोजगार तक...हर कोई है रोजगारेश्वर महादेव का मुरीद, जानिए क्यों खास है ये मंदिर

बताया जाता है कि जिस वक्त मंदिर को ध्वस्त किया जा रहा था, तो क्रेन भी रुक गई थी. रोजगारेश्वर मंदिर को लेकर जयपुर में आस्था का ये आलम था कि लोग विरोध करते हुए सड़कों पर उतर आए थे. नतीजन राजस्थान सरकार को रोजगारेश्वर मंदिर को दोबारा निर्मित कराने का फैसला लेना पड़ा. साल 2015 में तत्कालीन बीजेपी सरकार ने मेट्रो की राह में बाधा मानते हुए इस मंदिर को नेस्तनाबूत करा दिया था. इसका खामियाजा पार्टी को सरकार गंवाकर भुगतना पड़ा. तत्कालीन बीजेपी सरकार को न सिर्फ मंदिर के मामले में बैकफुट पर आना पड़ा, बल्कि उन्हें 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में मुंह की खानी पड़ी.

बीजेपी को गंवानी पड़ी थी सत्ता : 2018 में राजस्थान में बीजेपी का वोट प्रतिशत 38.8 रहा था. जबकि राज्य में सबसे पड़ी पार्टी बनने वाली कांग्रेस का वोट प्रतिशत 39.3 ही रहा. दोनों पार्टियों के बीच का मत प्रतिशत का अंतर महज 0.5 प्रतिशत था. कांग्रेस को करीब 1 करोड़ 39 लाख 35 हजार वोट मिले थे. जबकि बीजेपी को करीब 1 करोड़ 37 लाख 57 हजार वोट मिले थे. दोनों को मिले वोट में महज 1 लाख 70 हजार वोटों का अंतर था. इस मामूली अंतर की वजह से बीजेपी को सत्ता से हाथ धोना पड़ा. यही नहीं मंदिर से लगती हुई तीन विधानसभा क्षेत्र जो कि बीजेपी का गढ़ कहे जाते थे, वहां भी सूपड़ा साफ हो गया था. तत्कालीन किशनपोल विधायक मोहनलाल गुप्ता, हवामहल विधायक सुरेंद्र पारीक और आदर्श नगर विधायक अशोक परनामी को सीट गंवानी पड़ी थी.

पढ़ें. रोजगारेश्वर मंदिर को तुड़वाने वाली सरकार को सत्ता और तीन विधायकों को गंवानी पड़ी थी सीट, जानें पूरी कहानी

मिर्जा इस्माइल ने भी की थी मंदिर हटाने की कोशिश : इससे पहले राजशाही के दौरान मिर्जा इस्माइल ने भी रोजगारेश्वर मंदिर को हटाने की कोशिश की थी. तब उनके पुत्र गंभीर बीमार हो गए थे. जयपुर के विद्वानों ने उन्हें चेतावनी दी थी कि मंदिर को तोड़ना ठीक नहीं. इसी कारण बाद में मिर्जा इस्माइल ने इस मंदिर को और भव्यता दी थी. साथ ही 11 अन्य ज्योतिर्लिंग भी स्थापित किए थे.

हर बार बढ़ती गई आस्था : हालांकि जब भी मंदिर का दोबारा निर्माण हुआ तो यहां आस्था पहले से भी ज्यादा बढ़ गई. श्रद्धालु यहां भक्ति भाव के साथ आकर हर दिन भगवान भोलेनाथ की आराधना करते हैं. स्थानीय व्यापारियों की मानें तो जयपुर में जिन लोगों और व्यापारियों को बसाया गया, उनका रोजगार बढ़े, इसी भावना के साथ ही रोजगारेश्वर मंदिर बनाया गया था. लोगों की आस्था है कि यहां भगवान शिव से जो भी मनोकामना मांगी जाती है, वो पूरी होती है. भगवान बेरोजगारों को रोजगार, निर्धन को धन और सुख-समृद्धि देते हैं.

राजधानी का एक ऐसा शिवालय जिससे डरते हैं सत्ताधारी

जयपुर. प्रदेश की राजधानी जयपुर में स्थित रोजगारेश्वर महादेव मंदिर से सत्ताधारी हमेशा भय खाते हैं. इस मंदिर को जिसने भी हटाने का प्रयास किया, उसे ही इसका पुननिर्माण कराना पड़ा है. ऐसे दो उदाहरण आज भी याद किए जाते हैं. जयपुर की छोटी चौपड़ पर स्थित रोजगारेश्वर महादेव को पहले स्टेट पीरियड में मिर्जा इस्माइल ने और लोकतंत्र में पूर्वर्ती बीजेपी सरकार ने विकास के नाम पर हटाया. दोनों ही मर्तबा इस मंदिर का पुनर्निर्माण किया गया, पहले से और भी भव्य. आखिर ऐसा क्या है इस मंदिर में जिसकी वजह से जिसने इसे हटाने का प्रयास किया, उसी ने दोबारा निर्माण भी कराया?

ये है इतिहास : 286 साल पुराने जयपुर के मध्य छोटी चौपड़ से लगते हुए त्रिपोलिया बाजार में राज परिवार की ओर से वास्तु के अनुसार इस मंदिर का निर्माण किया गया. मान्यता थी कि भगवान शिव यहां आने वाले बेरोजगार की रोजगार की मुराद पूरी करते हैं. यही नहीं हर व्यापारी अपने प्रतिष्ठान पर जाने से पहले यहां मत्था जरूर टेकता है, हालांकि 2015 में भूमिगत मेट्रो के निर्माण कार्य के दौरान पुराने मंदिर को ध्वस्त करने का फैसला लिया गया. एक क्रेन के माध्यम से इसे जमींदोज किया गया. जो व्यक्ति क्रेन चला रहा था, उसने इस काम को करने से पहले हाथ जोड़कर भगवान से प्रार्थना की थी क्योंकि उसे रोजगार ही यही मिला है.

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बताया जाता है कि जिस वक्त मंदिर को ध्वस्त किया जा रहा था, तो क्रेन भी रुक गई थी. रोजगारेश्वर मंदिर को लेकर जयपुर में आस्था का ये आलम था कि लोग विरोध करते हुए सड़कों पर उतर आए थे. नतीजन राजस्थान सरकार को रोजगारेश्वर मंदिर को दोबारा निर्मित कराने का फैसला लेना पड़ा. साल 2015 में तत्कालीन बीजेपी सरकार ने मेट्रो की राह में बाधा मानते हुए इस मंदिर को नेस्तनाबूत करा दिया था. इसका खामियाजा पार्टी को सरकार गंवाकर भुगतना पड़ा. तत्कालीन बीजेपी सरकार को न सिर्फ मंदिर के मामले में बैकफुट पर आना पड़ा, बल्कि उन्हें 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में मुंह की खानी पड़ी.

बीजेपी को गंवानी पड़ी थी सत्ता : 2018 में राजस्थान में बीजेपी का वोट प्रतिशत 38.8 रहा था. जबकि राज्य में सबसे पड़ी पार्टी बनने वाली कांग्रेस का वोट प्रतिशत 39.3 ही रहा. दोनों पार्टियों के बीच का मत प्रतिशत का अंतर महज 0.5 प्रतिशत था. कांग्रेस को करीब 1 करोड़ 39 लाख 35 हजार वोट मिले थे. जबकि बीजेपी को करीब 1 करोड़ 37 लाख 57 हजार वोट मिले थे. दोनों को मिले वोट में महज 1 लाख 70 हजार वोटों का अंतर था. इस मामूली अंतर की वजह से बीजेपी को सत्ता से हाथ धोना पड़ा. यही नहीं मंदिर से लगती हुई तीन विधानसभा क्षेत्र जो कि बीजेपी का गढ़ कहे जाते थे, वहां भी सूपड़ा साफ हो गया था. तत्कालीन किशनपोल विधायक मोहनलाल गुप्ता, हवामहल विधायक सुरेंद्र पारीक और आदर्श नगर विधायक अशोक परनामी को सीट गंवानी पड़ी थी.

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मिर्जा इस्माइल ने भी की थी मंदिर हटाने की कोशिश : इससे पहले राजशाही के दौरान मिर्जा इस्माइल ने भी रोजगारेश्वर मंदिर को हटाने की कोशिश की थी. तब उनके पुत्र गंभीर बीमार हो गए थे. जयपुर के विद्वानों ने उन्हें चेतावनी दी थी कि मंदिर को तोड़ना ठीक नहीं. इसी कारण बाद में मिर्जा इस्माइल ने इस मंदिर को और भव्यता दी थी. साथ ही 11 अन्य ज्योतिर्लिंग भी स्थापित किए थे.

हर बार बढ़ती गई आस्था : हालांकि जब भी मंदिर का दोबारा निर्माण हुआ तो यहां आस्था पहले से भी ज्यादा बढ़ गई. श्रद्धालु यहां भक्ति भाव के साथ आकर हर दिन भगवान भोलेनाथ की आराधना करते हैं. स्थानीय व्यापारियों की मानें तो जयपुर में जिन लोगों और व्यापारियों को बसाया गया, उनका रोजगार बढ़े, इसी भावना के साथ ही रोजगारेश्वर मंदिर बनाया गया था. लोगों की आस्था है कि यहां भगवान शिव से जो भी मनोकामना मांगी जाती है, वो पूरी होती है. भगवान बेरोजगारों को रोजगार, निर्धन को धन और सुख-समृद्धि देते हैं.

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