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Good News : कैंसर और थैलेसीमिया मरीजों के लिए उम्मीद की किरण, स्टेम सेल ट्रांसप्लांट से हो सकेंगे ठीक - stem cell transplantation under Chiranjeevi Yojana

प्रदेश के सबसे बड़े अस्पताल एसएमएस में हाल ही पहला स्टेम सेल ट्रांसप्लांट किया (First Stem cell transplant in SMS Hospital) गया. इस ट्रांसप्लांट के बाद ब्लड कैंसर और थैलेसीमिया से जूझ रहे मरीजों के इलाज की संभावना जागी है. वैसे तो इस ट्रांसप्लांट पर लाखों रुपए का खर्चा आता है, लेकिन चिरंजीवी योजना के तहत अब इलाज खर्च वहन नहीं कर सकने वाले मरीजों को भी लाभ मिल सकेगा.

First Stem cell transplant in SMS Hospital
कैंसर और थैलेसीमिया पीड़ितों के लिए उम्मीद की किरण, स्टेम सेल ट्रांसप्लांट से हो सकेंगे ठीक
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Published : Nov 25, 2022, 8:18 PM IST

जयपुर. जयपुर के सवाई मानसिंह अस्पताल में हाल ही में पहला स्टेम सेल ट्रांसप्लांट किया गया. इस ट्रांसप्लांट से उन मरीजों के लिए एक उम्मीद की किरण दिखाई दी है जो ब्लड कैंसर और थैलेसीमिया जैसी बीमारी से जूझ रहे (Stem Cell Transplantation in Thalassemia) हैं. आमतौर पर इस बीमारी के इलाज में लाखों रुपए का खर्चा आता है, लेकिन एसएमएस में यह ट्रांसप्लांट चिरंजीवी स्वास्थ्य बीमा योजना के तहत किया गया. ऐसे में जो बच्चे ब्लड कैंसर या फिर थैलेसीमिया जैसी बीमारी से जूझ रहे हैं, उनके रोग का निदान आसानी से हो सकेगा.

हाल ही में जयपुर के सवाई मानसिंह अस्पताल में एक बच्चे का स्टेम सेल ट्रांसप्लांट किया गया. यह सेल उसकी 11 वर्षीय बड़ी बहन ने डोनेट किया. एसएमएस अस्पताल के डिपार्टमेंट ऑफ ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन के विभागाध्यक्ष डॉ अमित शर्मा का कहना है कि स्टेम सेल ट्रांसप्लांट ऐसे मरीजों के लिए है जो थैलेसीमिया या फिर ब्लड कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी से जूझ रहे हैं.

स्टेम सेल ट्रांसप्लांट से कैंसर और थैलेसीमिया पीड़ितों के लिए उम्मीद की किरण

यदि इन दोनों बीमारियों को प्रारंभिक स्टेज में ही पहचान लिया जाए, तो उनका बोन मैरो या स्टेम सेल ट्रांसप्लांट के माध्यम से इलाज किया जा सकता है. ऐसे में स्टेम सेल ट्रांसप्लांट के बाद मरीज को अन्य किसी ट्रीटमेंट की आवश्यकता नहीं होती. डॉक्टर शर्मा का कहना है कि आमतौर पर ब्लड कैंसर में बोन मैरो से ब्लड का बनना बंद हो जाता है. इसके बाद मरीज के स्वास्थ्य में लगातार गिरावट होने लगती है. ऐसे मे स्टेम सेल ट्रांसप्लांट के माध्यम से इस तरह के मरीजों को ठीक किया जा सकता (Stem Cell Transplants in Cancer Treatment) है.

पढ़ें: कोटा में किडनी ट्रांसप्लांट के लिए लोग नहीं दिखा रहे रूचि, 8 महीने से बंद पड़ी है करोड़ों रुपए की लागत से बनी यूनिट

क्या है प्रक्रिया: ब्लड कैंसर से जूझ रहे मरीज के स्टेम सेल ट्रांसप्लांट के लिए सबसे पहले डोनर की आवश्यकता होती है. इसके बाद दोनों को चिकित्सक लगभग 5 दिनों तक कुछ दवाइयां देते हैं. इसके बाद डोनर के बोन मैरो से मल्टीपल स्टेम सेल्स बनना शुरू हो जाती हैं. चिकित्सक उपयोगी स्टेम सेल्स को पहचान कर उसे रक्त से अलग करते हैं. यह पूरी प्रक्रिया एक मशीन की सहायता से की जाती है और डोनर को किसी तरह का दर्द नहीं होता है. इस पूरी प्रक्रिया को करने में करीब 3 से 4 घंटे का समय लगता है. डोनर के डोनेट किए ब्लड में से स्टेम सेल्स को अलग कर लिया जाता है. इसके बाद इन सेल्स को मरीज के शरीर में ट्रांसफ्यूज किया जाता है.

लाइसेंस की आवश्यकता: वहीं मामले को लेकर डिपार्टमेंट ऑफ ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन की सहायक आचार्य डॉक्टर सरिता शर्मा का कहना है कि स्टेम सेल्स ट्रांसप्लांट के लिए ब्लड बैंक को लाइसेंस की आवश्यकता होती है. ट्रॉमा सेंटर में स्थित ब्लड बैंक को हाल ही में लाइसेंस जारी किया गया है, जिसके बाद स्टेम सेल ट्रांसप्लांट की प्रक्रिया अब धीरे-धीरे शुरू हो सकेगी. इसके अलावा जल्द ही कैंसर इंस्टिट्यूट और एसएमएस अस्पताल में स्थित ब्लड बैंक को भी लाइसेंस जारी कर दिया जाएगा.

पढ़ें: Free Bone marrow transplant: कोटा के 7 थैलेसीमिया पीड़ित बच्चों का होगा जयपुर में बोन मैरो ट्रांसप्लांट, सरकार उठाएगी खर्च

बोन मैरो और स्टेम सेल ट्रांसप्लांट में अंतर: आमतौर पर स्टेम सेल ट्रांसप्लांट से पहले ब्लड कैंसर से पीड़ित मरीजों का इलाज बोन मैरो ट्रांसप्लांट के जरिए किया जाता था, लेकिन अब पेरीफेरल स्टेम सेल ट्रांसप्लांट के जरिए इस तरह के मरीजों का इलाज किया जाता है. डॉक्टर सरिता शर्मा का कहना है कि बोन मैरो और पेरिफेरल स्टेम सेल ट्रांसप्लांट में काफी अंतर है. हालांकि दोनों प्रोसेस में स्टेम सेल कलेक्ट की जाती है, लेकिन बोन मैरो ट्रांसप्लांट के दौरान डोनर को एनएसथीसिया दिया जाता है. यह प्रक्रिया काफी दर्दनाक होती है. जबकि पेरिफेरल स्टेम सेल की प्रक्रिया दर्द रहित है.

पढ़ें: Emergency Liver Transplant : एक्यूट लिवर फेलियर, पहली बार प्रदेश में हुआ इमरजेंसी लिवर ट्रांसप्लांट

नई कोशिकाओं का निर्माण: सवाई मानसिंह अस्पताल के डिपार्टमेंट ऑफ ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन के वरिष्ठ चिकित्सक डॉ दुर्गेश तिवाड़ी का कहना है कि स्टेम सेल्स आमतौर पर मूल कोशिकाएं होती हैं जो शरीर में कोशिकाओं के निर्माण में सहायक होती हैं. यह एक रीजेनरेटिव मेडिसिन का पार्ट है और इसके माध्यम से ऐसे अंगों को ठीक किया जा सकता है जो खराब हो चुके हैं. हाल ही में जो स्टेम सेल ट्रांसप्लांट एसएमएस अस्पताल में किया गया, वह अपने आप में एक चमत्कार है. आमतौर पर इस इलाज का खर्च लगभग 40 से 45 लाख रुपए के आसपास होता है, लेकिन एसएमएस अस्पताल में इसे निशुल्क किया जा रहा है.

जयपुर. जयपुर के सवाई मानसिंह अस्पताल में हाल ही में पहला स्टेम सेल ट्रांसप्लांट किया गया. इस ट्रांसप्लांट से उन मरीजों के लिए एक उम्मीद की किरण दिखाई दी है जो ब्लड कैंसर और थैलेसीमिया जैसी बीमारी से जूझ रहे (Stem Cell Transplantation in Thalassemia) हैं. आमतौर पर इस बीमारी के इलाज में लाखों रुपए का खर्चा आता है, लेकिन एसएमएस में यह ट्रांसप्लांट चिरंजीवी स्वास्थ्य बीमा योजना के तहत किया गया. ऐसे में जो बच्चे ब्लड कैंसर या फिर थैलेसीमिया जैसी बीमारी से जूझ रहे हैं, उनके रोग का निदान आसानी से हो सकेगा.

हाल ही में जयपुर के सवाई मानसिंह अस्पताल में एक बच्चे का स्टेम सेल ट्रांसप्लांट किया गया. यह सेल उसकी 11 वर्षीय बड़ी बहन ने डोनेट किया. एसएमएस अस्पताल के डिपार्टमेंट ऑफ ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन के विभागाध्यक्ष डॉ अमित शर्मा का कहना है कि स्टेम सेल ट्रांसप्लांट ऐसे मरीजों के लिए है जो थैलेसीमिया या फिर ब्लड कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी से जूझ रहे हैं.

स्टेम सेल ट्रांसप्लांट से कैंसर और थैलेसीमिया पीड़ितों के लिए उम्मीद की किरण

यदि इन दोनों बीमारियों को प्रारंभिक स्टेज में ही पहचान लिया जाए, तो उनका बोन मैरो या स्टेम सेल ट्रांसप्लांट के माध्यम से इलाज किया जा सकता है. ऐसे में स्टेम सेल ट्रांसप्लांट के बाद मरीज को अन्य किसी ट्रीटमेंट की आवश्यकता नहीं होती. डॉक्टर शर्मा का कहना है कि आमतौर पर ब्लड कैंसर में बोन मैरो से ब्लड का बनना बंद हो जाता है. इसके बाद मरीज के स्वास्थ्य में लगातार गिरावट होने लगती है. ऐसे मे स्टेम सेल ट्रांसप्लांट के माध्यम से इस तरह के मरीजों को ठीक किया जा सकता (Stem Cell Transplants in Cancer Treatment) है.

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क्या है प्रक्रिया: ब्लड कैंसर से जूझ रहे मरीज के स्टेम सेल ट्रांसप्लांट के लिए सबसे पहले डोनर की आवश्यकता होती है. इसके बाद दोनों को चिकित्सक लगभग 5 दिनों तक कुछ दवाइयां देते हैं. इसके बाद डोनर के बोन मैरो से मल्टीपल स्टेम सेल्स बनना शुरू हो जाती हैं. चिकित्सक उपयोगी स्टेम सेल्स को पहचान कर उसे रक्त से अलग करते हैं. यह पूरी प्रक्रिया एक मशीन की सहायता से की जाती है और डोनर को किसी तरह का दर्द नहीं होता है. इस पूरी प्रक्रिया को करने में करीब 3 से 4 घंटे का समय लगता है. डोनर के डोनेट किए ब्लड में से स्टेम सेल्स को अलग कर लिया जाता है. इसके बाद इन सेल्स को मरीज के शरीर में ट्रांसफ्यूज किया जाता है.

लाइसेंस की आवश्यकता: वहीं मामले को लेकर डिपार्टमेंट ऑफ ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन की सहायक आचार्य डॉक्टर सरिता शर्मा का कहना है कि स्टेम सेल्स ट्रांसप्लांट के लिए ब्लड बैंक को लाइसेंस की आवश्यकता होती है. ट्रॉमा सेंटर में स्थित ब्लड बैंक को हाल ही में लाइसेंस जारी किया गया है, जिसके बाद स्टेम सेल ट्रांसप्लांट की प्रक्रिया अब धीरे-धीरे शुरू हो सकेगी. इसके अलावा जल्द ही कैंसर इंस्टिट्यूट और एसएमएस अस्पताल में स्थित ब्लड बैंक को भी लाइसेंस जारी कर दिया जाएगा.

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बोन मैरो और स्टेम सेल ट्रांसप्लांट में अंतर: आमतौर पर स्टेम सेल ट्रांसप्लांट से पहले ब्लड कैंसर से पीड़ित मरीजों का इलाज बोन मैरो ट्रांसप्लांट के जरिए किया जाता था, लेकिन अब पेरीफेरल स्टेम सेल ट्रांसप्लांट के जरिए इस तरह के मरीजों का इलाज किया जाता है. डॉक्टर सरिता शर्मा का कहना है कि बोन मैरो और पेरिफेरल स्टेम सेल ट्रांसप्लांट में काफी अंतर है. हालांकि दोनों प्रोसेस में स्टेम सेल कलेक्ट की जाती है, लेकिन बोन मैरो ट्रांसप्लांट के दौरान डोनर को एनएसथीसिया दिया जाता है. यह प्रक्रिया काफी दर्दनाक होती है. जबकि पेरिफेरल स्टेम सेल की प्रक्रिया दर्द रहित है.

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नई कोशिकाओं का निर्माण: सवाई मानसिंह अस्पताल के डिपार्टमेंट ऑफ ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन के वरिष्ठ चिकित्सक डॉ दुर्गेश तिवाड़ी का कहना है कि स्टेम सेल्स आमतौर पर मूल कोशिकाएं होती हैं जो शरीर में कोशिकाओं के निर्माण में सहायक होती हैं. यह एक रीजेनरेटिव मेडिसिन का पार्ट है और इसके माध्यम से ऐसे अंगों को ठीक किया जा सकता है जो खराब हो चुके हैं. हाल ही में जो स्टेम सेल ट्रांसप्लांट एसएमएस अस्पताल में किया गया, वह अपने आप में एक चमत्कार है. आमतौर पर इस इलाज का खर्च लगभग 40 से 45 लाख रुपए के आसपास होता है, लेकिन एसएमएस अस्पताल में इसे निशुल्क किया जा रहा है.

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