जयपुर. सवाई मानसिंह टाउन हॉल, जिसका निर्माण 1880 में तत्कालीन जयपुर महाराजा राम सिंह द्वितीय ने प्रशासनिक सेवाओं के लिए करवाया था. हवा महल के नजदीक तैयार कराए गए इस भवन की संभाल चीफ इंजीनियर स्विन्टन जैकब ने की. उस वक्त इसे नया महल कहा जाता था. बाद में सवाई मानसिंह द्वितीय ने इसका नाम सवाई मानसिंह टाउन हॉल रखा और भारतीय गणराज्य के जयपुर में विलय होने पर ये भवन राजस्थान का पहला विधानसभा भवन बना, जिसने राजस्थान में राजतंत्र को जनतंत्र में बदलते देखा और 160 से 200 विधानसभा सीटों तक का सफर भी यहीं तय हुआ.
राजस्थान की पहले विधानसभा परकोटा क्षेत्र में स्थित सवाई मानसिंह टाउन हॉल में लगी थी. जब देश आजाद हुआ और रियासतें खत्म हुईं, नई-नई सरकारी बनीं, तब इसी भवन को विधानसभा भवन बना दिया गया. इतिहासकार देवेंद्र कुमार भगत ने बताया कि 1950-51 में सवाई मानसिंह टाउन हॉल में पहली बैठक हुई और 1952 में हुए पहले आम चुनाव के बाद पहले विधानसभा की बैठक भी यहीं हुई. वो एक ऐसा समय था जब शासन राजाओं से जनता में जा रहा था. भले ही यहां जागीरदारी प्रथा थी, लेकिन उस विधानसभा का ही कमाल था कि बिना किसी रक्तपात के पुराने और नए लोगों में सामंजस्य बन.
उन्होंने बताया कि हीरालाल शास्त्री ने सवाई इस स्थान को विधानसभा बनाने के लिए रिकमेंड किया था. इस पर जयपुर महाराजा सवाई मान सिंह ने अपनी सहमति जाहिर की. उस समय जय नारायण व्यास, माणिक्य लाल वर्मा ने भी इस पर सहमति दिखाई. 1950-51 में जब यहां पहली बैठक हुई, तब तक आम चुनाव नहीं हुआ था. लेकिन 1952 के बाद पहली विधानसभा बैठक हुई उस वक्त एक अजीब स्थिति बनी कि जो मुख्यमंत्री के रूप में जयनारायण व्यास थे, वो हार गए थे. निर्वाचित मुख्यमंत्री टीकाराम पालीवाल बने. इस विधानसभा में अध्यक्ष की कुर्सी पर नरोत्तम लाल जोशी बैठे, जबकि जसवंत सिंह पहले नेता प्रतिपक्ष रहे.
भगत ने बताया कि शुरुआत में यहां 160 विधानसभा सीटों से चुने गए विधायक सदन में बैठे. इसके बाद 1957 में विधानसभा सीट बढ़कर 176 हुई. 1967 में इन सीटों को बढ़ाकर 184 किया गया और फिर 1977 में परिसीमन होने के बाद राजस्थान में 200 विधानसभा सीटें हुईं. 1980 में पहली बार 200 विधायक उस विधानसभा में बैठे. कहते हैं कि उस विधानसभा में सनातन परंपराओं का ध्यान रखते हुए नए राजस्थान की नींव शुभ मुहूर्त में पड़ी, जिसका नतीजा ये निकला कि राजस्थान के कभी टुकड़े नहीं हुए. उन्होंने बताया कि सवाई मानसिंह टाउन हॉल एक बड़ा भवन था, जो जयपुर के बीचों-बीच बना हुआ था. ये पुराने राजतंत्र की भी याद दिलाता है.
जयपुर के महाराजा सवाई मानसिंह ने ये भवन राजस्थान को दिया था. इसके साथ ही जयपुर के अन्य बड़े भवन भगवान दास बैरक (वर्तमान सचिवालय भवन) राजेंद्र हजारी गार्ड (पुराना पुलिस हैडक्वाटर) हुआ करता था और अन्य बड़ी बिल्डिंगों को दूसरे सरकारी डिपार्टमेंट और स्कूलों के लिए दिया था. हालांकि, धीरे-धीरे जब राजस्थान और जयपुर का विकास होता गया, बाहरी लोग आकर यहां बसना शुरू हुए, तो नई संभावनाओं को तलाशते हुए नई जगह चुनते हुए वर्तमान की विधानसभा बनाई गई, जहां 2001 में पहली बैठक हुई.
देवेंद्र कुमार भगत ने बताया कि नई विधानसभा के साथ एक अजीब मिथक जुड़ा हुआ है कि यहां कभी 200 विधायकों की संख्या पूरी नहीं रह पाई. यही नहीं पुरानी विधानसभा में जो सभ्यता, स्थापत्य कला, राजनीतिक सोच और स्वस्थ लोकतंत्र था, वो नई विधानसभा में नहीं रहा. बहरहाल, वर्तमान में इस पुरानी विधानसभा को राजस्थान हेरिटेज म्यूजियम बनाया गया है, जहां राजस्थान के सभी 9 संस्कृत संभागों की विरासत को संजोया गया है, ताकि जयपुर आने वाले पर्यटक एक ही छत के नीचे प्रदेश के गौरवशाली इतिहास से रूबरू हो सकें.