जयपुर. जीवन के लिए वन जरूरी हैं. वनों का नाश यानी जीवन का नुकसान. दुनिया की आबादी लगातार बढ़ रही है लेकिन आबादी की तुलना में जंगल नहीं बढ़ रहे हैं. ऐसे में राजस्थान में वन संरक्षण बेहद अहम हो जाता है. क्योंकि लगभग आधा राजस्थान तो रेगिस्तान ही है. ऐसे में शहरीकरण के साथ साथ वन क्षेत्र का संतुलन बनाने के लिए कैम्पा योजना शुरू की गई है.
वन विभाग की ओर से पर्यावरण को बचाने और वन क्षेत्र को विकसित करने के लिए हर साल वृक्षारोपण किया जाता है. क्षतिपूरक वनीकरण के तहत भी वन क्षेत्र में बढ़ोतरी की जा रही है. प्रदेश में लगातार हर साल कैम्पा योजना के तहत क्षतिपूरक वनीकरण किया जा रहा है. पर्यावरण एवं विकास में सामंजस्य के मद्देनजर विभिन्न योजनाओं और परियोजनाओं के निर्माण के लिए हस्तांतरित की जाने वाली वन भूमि के एवज में इससे अधिक भूमि में क्षतिपूरक वनीकरण का प्रावधान है.
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क्षतिपूरक वनीकरण को समझें..
वन संरक्षण अधिनियम 1980 के तहत जब भी कोई वन भूमि प्रत्यावर्तित की जाती है. उसमे नियमों के तहत जितनी वन भूमि प्रत्यावर्तित होती है, उसके बदले उतनी ही गैर वन भूमि दी जाती है. कैंपा फंड की स्थापना वर्ष 2006 में क्षतिपूरक वनीकरण के प्रबंधन के लिए की गई थी. भारत सरकार ने क्षतिपूरक वनीकरण कोष प्रबंधन एवं योजना प्राधिकरण अधिनियम पारित किया था. अधिनियम का मुख्य उद्देश्य वन क्षेत्रों में होने वाली कमी के बदले प्राप्त राशि का संधारण और उसका वनीकरण में दोबारा निवेश करना होता है.
कैंपा योजना वनों के लिए जरूरी
राष्ट्रीय क्षतिपूरक वनीकरण कोष और राज्य क्षतिपूरक वनीकरण कोष बनाए गए हैं. कैंपा के तहत जो भी कंपनी किसी जंगल की भूमि को उपयोग में लेना चाहती है, तो उसके बदले उतनी ही भूमि पर क्षतिपूर्ति के तौर पर वन का विकास करेगी. जंगल की भूमि लेने वाली कंपनी नए पेड़ लगाने का खर्च भी खुद वहन करती है. क्षतिपूरक वनीकरण के लिए वर्ष 1980 से 2019 तक करीब 18524 हेक्टेयर गैर वन भूमि और करीब 22000 हेक्टर पारिभ्रांषित वन भूमि पर वनीकरण की राशि प्राप्त हुई है.
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कैंपा फंड के जरिए वन विकास
वन विभाग के सहायक वन संरक्षक दिनेश गुप्ता ने बताया कि प्रदेश में क्षतिपूरक वनीकरण हर वर्ष किया जाता है. वन संरक्षण अधिनियम 1980 के तहत जो वन भूमि प्रत्यावर्तित कर गैर वानिकी कार्यों के लिए दी जाती है। उसमें शर्तों के अधीन राशि कैम्पा फंड में जमा करवाई जाती है। इस राशि से क्षतिपूरक वनीकरण किया जाता है। वन भूमि के बदले इसमें गैर वन भूमि भी प्राप्त की जाती है। इसके साथ ही वृक्षारोपण के लिए राशि भी प्राप्त होती है। अब तक डायवर्ड की हुई गैर वन भूमि 18500 हेक्टर प्राप्त हुई है और करीब 22000 हेक्टेयर गैर वन भूमि पर वृक्षारोपण के लिए राशि प्राप्त हुई है. कुल 40000 हेक्टर में से 32000 हेक्टेयर भूमि पर वृक्षारोपण करवाया जा चुका है.
5 साल में 51 सौ हेक्टेयर भूमि पर वनीकरण
इसके अलावा अन्य योजनाओं के तहत भी वृक्षारोपण किए जाते हैं. गत 5 वर्षों में करीब 5100 हेक्टेयर गैर वन भूमि पर और 10391 हेक्टर परिभ्रांषित वन भूमि पर क्षतिपूरक वनीकरण किया गया है. इसके अलावा वनों को बढ़ावा देने के लिए एएनआर मॉडल में करीब 30527 हेक्टेयर भूमि पर वृक्षारोपण किया गया है. हर साल क्षतिपूरक वनीकरण को पूरा करने का काम किया जाता है. क्षतिपूरक वनीकरण में शर्तों की पालना भी सुनिश्चित की जाती है. क्षतिपूरक वनीकरण कैंपा योजना के तहत किया जाता है. वनीकरण के लिए राशि कैम्पा कोष में जमा होती है. वन संरक्षण अधिनियम 1980 के तहत जब भी कोई वन भूमि प्रत्यावर्तित की जाती है. उसमे नियमों के तहत जितनी वन भूमि प्रत्यावर्तित होती है उसके बदले उतनी ही गैर वन भूमि दी जाती है. इसके अलावा कुछ शर्तों में छूट भी दी जाती है, जिसके मुताबिक वन भूमि के बदले राशि जमा की जाती है.
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राज्य में क्षतिपूरक वनीकरण ( हेक्टेयर में)
वर्ष | NFL | DFL | ANR | TOTAL |
2016-17 | 1518.49 | 1547.08 | 6300 | 9365.57 |
2017-18 | 1150.80 | 3956.00 | 2350 | 7456.80 |
2018-19 | 696.88 | 1909.68 | 5927 | 8533.56 |
2019-20 | 747.75 | 1885.08 | 6000 | 8632.83 |
2020-21 | 1054.02 | 1093.83 | 9950 | 12097.85 |
कुल | 5197.94 | 10391.67 | 30527 | 12097.85 |
NFL- गैर वन भूमि
DFL- पारिभ्रांषित वन भूमि
ANR- वनों को बढ़ावा देने के लिए वृक्षारोपण़
राजस्थान में कैंपा फंड योजना के तहत हर साल लाखों रुपए वनों के लिए खर्च किए जाते हैं। राजस्थान में कैंपा फंड से पिछले 5 सालों में करीब 592 करोड रुपए खर्च किए जा चुके हैं। कैंपा फंड से वनों में पौधारोपण और वन विकास के कार्य किए जाते हैं।
कैंपा फंड से खर्च
वर्ष | ( लाख रुपये में ) |
2016-17 | 11620.83 |
2017-18 | 17559.13 |
2018-19 | 13282.24 |
2019-20 | 11644.30 |
2020-21 | 5173.56 |
काटे गए पेड़ों के बदले दुगने पौधे लगाने का नियम
पर्यावरणविद नवीन माथुर ने बताया विकास कार्यों के लिए कई बार वन भूमि को एक्वायर किया जाता है. इसके लिए फॉरेस्ट डिपार्टमेंट से परमिशन लेकर वन भूमि को गैर वन भूमि में कन्वर्ट किया जाता है. विकास के नाम पर जो पेड़ पौधे काटे जाते हैं, उसके बदले दुगुने पौधे लगाए जाते हैं. इसके लिए वन विभाग के पास राशि भी जमा करवानी पड़ती है. इस राशि को कैंपा फंड में जमा किया जाता है. जिससे क्षतिपूरक वनीकरण किया जाता है. दुगने पेड़ लगाकर हरियाली बढ़ाने से पर्यावरण पर सकारात्मक प्रभाव पड़ते हैं. कई बार गलत प्रभाव भी देखने को मिलते हैं, क्योंकि वातावरण के अनुरूप पौधे नहीं लगाए जाते हैं तो वह सही से नहीं पनप पाते.
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फंड का किया जाए सही इस्तेमाल
कई बार क्षतिपूरक वनीकरण के लिए फंड तो जमा करा दिया जाता है, लेकिन उसका सही उपयोग नहीं हो पाने की वजह से वनों के लिए नुकसान भी होता है. अगर सही तरीके से क्षतिपूरक वनीकरण होता है, तो उससे कई फायदे होते हैं. जिस जगह पर वनों को काटा जाता है उसके आसपास की लोकेशन में ही क्षतिपूरक वनीकरण किया जाए तो यह काफी फायदेमंद होता है. हमेशा कोशिश की जानी चाहिए कि किसी भी विकास कार्य के लिए कम से कम पेड़ पौधे कटें. उसके बदले में ज्यादा क्षतिपूरक वनीकरण किया जाए. वनीकरण करने के बाद उसका मेंटेनेंस बहुत जरूरी होता है.
लगातार मॉनीटरिंग जरूरी
पर्यावरण प्रेमी अश्विन मेसी ने बताया कि देखभाल के अभाव में कई बार पेड़ पौधे लगा तो दिए जाते हैं लेकिन वह पनप नहीं पाते. सही तरीके से देखभाल नहीं होने की वजह से कई बार पेड़ पौधे नष्ट हो जाते हैं. पेड़ पौधों से कई फायदे भी होते हैं. ज्यादातर वन क्षेत्रों में पेड़ पौधों की वजह से मिट्टी का कटाव रुकता है. पेड़ पौधों की सही तरीके से देखभाल होती रहे यह भी महत्वपूर्ण है. क्षतिपूरक वनीकरण होने से राजस्थान में वन क्षेत्र भी बढ़ रहा है.
कुल मिलाकर, क्षतिपूरक वनीकरण करने के बाद उसकी अच्छे से मॉनिटरिंग करना बहुत जरूरी है. वन विभाग के उच्च अधिकारियों को भी इस ओर विशेष ध्यान देना चाहिए, ताकि वनों को बढ़ावा मिले और हरियाली बढ़ सके. प्लांटेशन की नई तकनीकों का उपयोग करते हुए पौधे लगाने चाहिए ताकि वनों को बचाया जा सके.