जयपुर. राजस्थान विधानसभा में उठाए जा रहे सवालों के जवाब देने में सरकार गंभीर नहीं नजर आ रही है. इसका अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि मौजूदा गहलोत सरकार के शासन में चली 15 वीं विधानसभा के कुल 8 सत्र आहूत हुए. इन आठ सत्रों में पक्ष-विपक्ष के विधायकों की आरे से कुल 42 हजार 113 सवाल पूछे गए, लेकिन इनमें से सरकार ने केवल 35198 सवालों के ही जवाब दिए. 6915 सवालों के जवाब आज भी नहीं मिले हैं, जबकि नियम कहता है कि सत्र खत्म होने या अगला सत्र आहूत होने से पहले सभी सवालों के जवाब संबंधित विधायकों को मिल जाने चाहिए. सवालों के जवाब नहीं मिलने से कई विधायक नाराजगी जता चुके हैं, इसके बावजूद भी पार्टी जवाबदेही की प्रति गंभीरता नहीं दिखा रही है.
करीब 7 हजार सवाल अनुत्तरित : दरअसल, विधानसभा में विधायक आम जनता से जुड़े मुद्दों, समस्याओं, सिस्टम की लापरवाही और सरकार की जवाबदेही से जुड़े प्रश्न करते हैं. फिलहाल इस सरकार का आखिरी विधानसभा सत्र चल रहा है, लेकिन पूर्व में लगाए गए सवाल आज भी जवाब के इंतजार में हैं. सामाजिक कार्यकर्ता विजय गोयल बताते हैं कि आम जनता से जुड़ी समस्याओं का समाधान जब कोई कर्मचारी, अधिकारी पूरा नहीं करता है तब सदन के जरिए उसकी जवाबदेही पूछी जाती है. दुर्भाग्य है कि इस सरकार की 15वीं विधानसभा में कुल 8 सत्र आहूत हुए, जिसमें पक्ष और विपक्ष के विधायकों ने कुल 42 हजार 113 सवाल पूछे, लेकिन सरकार ने केवल 35198 सवालों के ही जवाब दिए. गोयल कहते हैं कि ये सभी सवाल आमजन से जुड़े होते हैं, उनके जवाब समयबद्ध देने का प्रावधान है. सदन की ओर से बार-बार इस बात को लेकर चेताया गया कि अधिकारी-कर्मचारी जिम्मेदारी के साथ सदन के सवालों के जवाब दें, बावजूद इसके करीब 7 हजार की पेंडेंसी चिंता की बात है.
विधायकों में नाराजगी : सवालों के जवाब नहीं मिलने से कई विधायक नाराजगी जता चुके हैं. लापरवाही इतनी है कि विधानसभा में आम जनता से जुड़े सवालों का सरकारी विभाग भी जवाब नहीं देते हैं. यह आलम इस 15वीं विधानसभा का नहीं है, इससे पहले विधानसभा के सेवकों की भी पेंडेंसी देखें तो साफ दिखता है कि विधायकों के सवालों के जवाब देने में सरकारी विभाग कोई खास रुचि नहीं रखते हैं. नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ ने कहा कि ये बड़ा गंभीर मसाला है कि सदन में सवाल लगाए जाते हैं और उनके जवाब नहीं दिए जाते.
अधिकारियों पर सख्ती बरते : हालांकि इस बार विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी ने इसको लेकर सख्ती दिखाई थी, ताकि सदन में पूछे जाने वाले सवालों के जवाब समय पर मिले. इसके बावजूद इतनी बड़ी सख्या में पेंडेंसी वाकई चिंता का विषय है. जनप्रतिनिधि को जनता के बीच में जाना होता है, सदन में जनता से जुड़े मुद्दों पर सवाल पूछा जाता है, जवाब नहीं मिलने से विधायकों को आम जनता को जवाब देने में दिक्क्त होती है. सरकार को चाहिए कि वो अधिकारियों पर सख्ती बरतें, ताकि कम से कम सदन में पूछे जाने वाले सवालों के प्रति तो जवाबदेही तय हो जाए.
सवाल का जवाब समयबद्ध देना : विधानसभा में सवाल पूछे जाने और सवाल का जवाब देने का एक नियम है. एक विधायक बजट सत्र में 100 सवाल पूछ सकता है, जिसमें 40 तारांकित और 60 अतारांकित होते हैं. सामान्य सत्र में भी एक विधायक को 60 सवाल पूछने का अधिकारी होता है, जिसमें 20 तारांकित और 40 अतारांकित होते हैं. हालांकि सामान्य सत्र में सवालों की संख्या को सदन कार्यवाही के अनुसार, अध्यक्ष के निर्देश पर कम-ज्यादा किया जाता है. नियम कहते हैं कि विधानसभा सदस्य की ओर से पूछे गए सवाल का जवाब समयबद्ध देना सरकार की ड्यूटी बनती है.
30 दिन में जवाब जरूरी : विधानसभा में नियम है कि सदन में सदस्यों की ओर से लगाए सवालों का जवाब 30 दिन के भीतर दिया जाए. अगर सरकारी कर्मचारी और अधिकारी की लापरवाही होती है और वो जवाब नहीं देता है तो विधानसभा अध्यक्ष और सचिव की जिम्मेदारी है कि वह सरकार से उसका जवाब ले. जरूरत पड़ने पर संबंधित अधिकारी और कर्मचारी पर कार्रवाई की जा सकती है. विधानसभा के इतिहास को देखें तो विधानसभा अध्यक्ष की ओर से कई बार सवालों के जवाब को लेकर दिशा- निर्देश जारी किए गए हैं, लेकिन अब तक किसी अधिकारी को दोषी मानते हुए करवाई नहीं की गई. इसकी वजह से आज भी सदन में पूछे जाने वाले सवालों को लेकर सरकारी मशीनरी गंभीर नहीं है.