वहीं किसानों की आर्थिक स्थिति मजबूत होती जा रही है. दरअसल बांसवाड़ा के क्लाइमेट को लेकर कृषि अनुसंधान केंद्र बांसवाड़ा ने 15 साल पहले एक रिसर्च किया था.
इस दौरान अतिरिक्त पानी की आवश्यकता भी पूरी हो जाती है. जिससे तापमान भी आवश्यकता के अनुरूप पाया जाता है.बांसवाड़ा में माही बांध की बदौलत रबी के दौरान दोनों ही आवश्यकताओं की पूर्ति हो जाती है.रिसर्च में यह बात सामने आने के बाद कृषि अनुसंधान केंद्र द्वारा किसानों को मक्का की फसल लेने के लिए प्रेरित किया गया.वहीं एक दशक पहले शुरू किया गया यह नवाचार आज बांसवाड़ा की जरूरत और आवश्यकता बन गया है. अनुसंधानकर्ताओं की माने तो रबी के दौरान मक्का की फसल अपेक्षाकृत एक महीना अधिक लेती है. वहीं पैदावार खरीद के मुकाबले दो से ढाई गुना तक अधिक मिल जाती है.वहीं प्रति हेक्टेयर 100 से लेकर सवा सौ क्विंटल तक पैदावार हो जाती है. जबकि खरीद के दौरान पैदावार 40 क्विंटल से ज्यादा नहीं हो पाती. इसके अलावा भाव भी अपेक्षाकृत अधिक ही मिलते हैं.
गुजरात में अधिक मांग
बांसवाड़ा की इस हाइब्रिड मक्का की मांग सबसे अधिक गुजरात में रहती है.वहां इसकी प्रोसेसिंग से संबंधित बड़ी बड़ी औद्योगिक यूनिट्स है जो स्टार्च और ऑयल निकालने का काम करती है.स्टार्च के लिए दाना चमकदार और बड़ा होना जरूरी होता है.दरअसल मक्का यह दोनों ही विशेषताएं पूरी करता है। इस कारण गुजरात की औद्योगिक इकाइयों द्वारा 1200 से लेकर 1500 रुपए प्रति क्विंटल की दर से बिचौलियों के जरिए किसानों से यह मक्का खरीद लिया जाता है.
40 हजार हेक्टेयर में खेती
कृषि अनुसंधान केंद्र के जोनल डायरेक्टर डॉ पीके रोकडिया के अनुसार पिछले एक दशक से रबी की फसल के दौरान मक्का की पैदावार ली जा रही है. यहां करीब 38000 हेक्टेयर में मक्का की पैदावार ली जा रही है. यह खरीफ में दी जाने वाली फसल से भी अधिक है. इससे किसानों की आर्थिक दशा सुधर रही है. वहीं देशभर में बांसवाड़ा पहला जिला है जहां पर रबी के दौरान मक्का की फसल दिए जाने का चलन है.