ETV Bharat / state

किसानों के लिए खुशखबरी...राजस्थान में यहां मौसम को मात देकर रबी के साथ-साथ होगी मक्के की फसल

बांसवाड़ा. मक्का को खरीफ की फसल माना जाता है. जिले में रबी के दौरान बड़े पैमाने पर मक्का की फसल लहलहाती नजर आएगी. चौंकाने वाली बात यह है कि इसकी पैदावार खरीफ की फसल से भी 2 से 3 गुना तक ज्यादा मिल रही है. साथ ही भाव भी अपेक्षाकृत अधिक मिलने से जिले में रबी के दौरान मक्का की पैदावार लेने का चलन लगातार बढ़ रहा है.

बड़े पैमाने पर होगी मक्के की फसल
author img

By

Published : Feb 21, 2019, 1:32 PM IST

वहीं किसानों की आर्थिक स्थिति मजबूत होती जा रही है. दरअसल बांसवाड़ा के क्लाइमेट को लेकर कृषि अनुसंधान केंद्र बांसवाड़ा ने 15 साल पहले एक रिसर्च किया था.

0
बड़े पैमाने पर होगी मक्के की फसल
इसमें सामने आया कि बांसवाड़ा का तापमान सर्दी के दौरान न्यूनतम 8 डिग्री सेंटीग्रेड तक रहता है. इसके अलावा माही बांध के चलते पानी भी प्रचुर मात्रा में है. वहीं मक्का की फसल बारिश के दौरान ली जाती है क्योंकि इस फसल के लिए पानी की अधिक जरूरत रहती है.


इस दौरान अतिरिक्त पानी की आवश्यकता भी पूरी हो जाती है. जिससे तापमान भी आवश्यकता के अनुरूप पाया जाता है.बांसवाड़ा में माही बांध की बदौलत रबी के दौरान दोनों ही आवश्यकताओं की पूर्ति हो जाती है.रिसर्च में यह बात सामने आने के बाद कृषि अनुसंधान केंद्र द्वारा किसानों को मक्का की फसल लेने के लिए प्रेरित किया गया.वहीं एक दशक पहले शुरू किया गया यह नवाचार आज बांसवाड़ा की जरूरत और आवश्यकता बन गया है. अनुसंधानकर्ताओं की माने तो रबी के दौरान मक्का की फसल अपेक्षाकृत एक महीना अधिक लेती है. वहीं पैदावार खरीद के मुकाबले दो से ढाई गुना तक अधिक मिल जाती है.वहीं प्रति हेक्टेयर 100 से लेकर सवा सौ क्विंटल तक पैदावार हो जाती है. जबकि खरीद के दौरान पैदावार 40 क्विंटल से ज्यादा नहीं हो पाती. इसके अलावा भाव भी अपेक्षाकृत अधिक ही मिलते हैं.

बड़े पैमाने पर होगी मक्के की फसल


गुजरात में अधिक मांग
बांसवाड़ा की इस हाइब्रिड मक्का की मांग सबसे अधिक गुजरात में रहती है.वहां इसकी प्रोसेसिंग से संबंधित बड़ी बड़ी औद्योगिक यूनिट्स है जो स्टार्च और ऑयल निकालने का काम करती है.स्टार्च के लिए दाना चमकदार और बड़ा होना जरूरी होता है.दरअसल मक्का यह दोनों ही विशेषताएं पूरी करता है। इस कारण गुजरात की औद्योगिक इकाइयों द्वारा 1200 से लेकर 1500 रुपए प्रति क्विंटल की दर से बिचौलियों के जरिए किसानों से यह मक्का खरीद लिया जाता है.


40 हजार हेक्टेयर में खेती
कृषि अनुसंधान केंद्र के जोनल डायरेक्टर डॉ पीके रोकडिया के अनुसार पिछले एक दशक से रबी की फसल के दौरान मक्का की पैदावार ली जा रही है. यहां करीब 38000 हेक्टेयर में मक्का की पैदावार ली जा रही है. यह खरीफ में दी जाने वाली फसल से भी अधिक है. इससे किसानों की आर्थिक दशा सुधर रही है. वहीं देशभर में बांसवाड़ा पहला जिला है जहां पर रबी के दौरान मक्का की फसल दिए जाने का चलन है.

undefined

वहीं किसानों की आर्थिक स्थिति मजबूत होती जा रही है. दरअसल बांसवाड़ा के क्लाइमेट को लेकर कृषि अनुसंधान केंद्र बांसवाड़ा ने 15 साल पहले एक रिसर्च किया था.

0
बड़े पैमाने पर होगी मक्के की फसल
इसमें सामने आया कि बांसवाड़ा का तापमान सर्दी के दौरान न्यूनतम 8 डिग्री सेंटीग्रेड तक रहता है. इसके अलावा माही बांध के चलते पानी भी प्रचुर मात्रा में है. वहीं मक्का की फसल बारिश के दौरान ली जाती है क्योंकि इस फसल के लिए पानी की अधिक जरूरत रहती है.


इस दौरान अतिरिक्त पानी की आवश्यकता भी पूरी हो जाती है. जिससे तापमान भी आवश्यकता के अनुरूप पाया जाता है.बांसवाड़ा में माही बांध की बदौलत रबी के दौरान दोनों ही आवश्यकताओं की पूर्ति हो जाती है.रिसर्च में यह बात सामने आने के बाद कृषि अनुसंधान केंद्र द्वारा किसानों को मक्का की फसल लेने के लिए प्रेरित किया गया.वहीं एक दशक पहले शुरू किया गया यह नवाचार आज बांसवाड़ा की जरूरत और आवश्यकता बन गया है. अनुसंधानकर्ताओं की माने तो रबी के दौरान मक्का की फसल अपेक्षाकृत एक महीना अधिक लेती है. वहीं पैदावार खरीद के मुकाबले दो से ढाई गुना तक अधिक मिल जाती है.वहीं प्रति हेक्टेयर 100 से लेकर सवा सौ क्विंटल तक पैदावार हो जाती है. जबकि खरीद के दौरान पैदावार 40 क्विंटल से ज्यादा नहीं हो पाती. इसके अलावा भाव भी अपेक्षाकृत अधिक ही मिलते हैं.

बड़े पैमाने पर होगी मक्के की फसल


गुजरात में अधिक मांग
बांसवाड़ा की इस हाइब्रिड मक्का की मांग सबसे अधिक गुजरात में रहती है.वहां इसकी प्रोसेसिंग से संबंधित बड़ी बड़ी औद्योगिक यूनिट्स है जो स्टार्च और ऑयल निकालने का काम करती है.स्टार्च के लिए दाना चमकदार और बड़ा होना जरूरी होता है.दरअसल मक्का यह दोनों ही विशेषताएं पूरी करता है। इस कारण गुजरात की औद्योगिक इकाइयों द्वारा 1200 से लेकर 1500 रुपए प्रति क्विंटल की दर से बिचौलियों के जरिए किसानों से यह मक्का खरीद लिया जाता है.


40 हजार हेक्टेयर में खेती
कृषि अनुसंधान केंद्र के जोनल डायरेक्टर डॉ पीके रोकडिया के अनुसार पिछले एक दशक से रबी की फसल के दौरान मक्का की पैदावार ली जा रही है. यहां करीब 38000 हेक्टेयर में मक्का की पैदावार ली जा रही है. यह खरीफ में दी जाने वाली फसल से भी अधिक है. इससे किसानों की आर्थिक दशा सुधर रही है. वहीं देशभर में बांसवाड़ा पहला जिला है जहां पर रबी के दौरान मक्का की फसल दिए जाने का चलन है.

undefined
Intro:बांसवाड़ा। आवश्यक संसाधन हो तो इंसान मौसम को भी मात दे सकता है। बांसवाड़ा के किसानों ने कुछ ऐसा ही कर दिखाया है। मक्का को खरीफ की फसल माना जाता है लेकिन बांसवाड़ा में आप रबी के दौरान बड़े पैमाने पर मक्का की फसल लहलहाती नजर आएगी। चौंकाने वाली बात यह है कि इसकी पैदावार खरीफ की फसल से भी 2 से 3 गुना तक ज्यादा मिल रही है। साथ ही भाव भी अपेक्षाकृत अधिक मिलने से जिले में रबी के दौरान मक्का की पैदावार लेने का चलन निरंतर बढ़ रहा है। इससे किसानों की आर्थिक स्थिति मजबूत होती जा रही है। पिछले एक दशक से मक्का की फसल लेने का चलन बढ़ा है।


Body:दरअसल बांसवाड़ा के क्लाइमेट को लेकर कृषि अनुसंधान केंद्र बांसवाड़ा द्वारा 15 साल पहले एक रिसर्च किया गया था। इसमें सामने आया कि बांसवाड़ा का तापमान सर्दी के दौरान न्यूनतम 8 डिग्री सेंटीग्रेड तक रहता है। इसके अलावा माही बांध के चलते पानी भी प्रचुर मात्रा में है। मक्का की फसल बारिश के दौरान ली जाती है क्योंकि इस फसल के लिए पानी की अधिक जरूरत रहती है। इस दौरान अतिरिक्त पानी की आवश्यकता भी पूरी हो जाती है तो तापमान भी आवश्यकता के अनुरूप पाया जाता है। बांसवाड़ा में माही बांध की बदौलत रबी के दौरान दोनों ही आवश्यकताओं की पूर्ति हो जाती है। रिसर्च में यह बात सामने आने के बाद कृषि अनुसंधान केंद्र द्वारा किसानों को


Conclusion:मक्का की फसल लेने के लिए प्रेरित किया गया। एक दशक पहले शुरू किया गया यह नवाचार आज बांसवाड़ा की जरूरत और आवश्यकता बन गया है। अनुसंधानकर्ताओं की माने तो रबी के दौरान मक्का की फसल अपेक्षाकृत एक महीना अधिक लेती है लेकिन पैदावार खरीद के मुकाबले दो से ढाई गुना तक अधिक मिल जाती है। प्रति हेक्टेयर 100 से लेकर सवा सौ क्विंटल तक पैदावार हो जाती है जबकि खरीद के दौरान पैदावार 40 क्विंटल से ज्यादा नहीं हो पाती। इसके अलावा भाव भी अपेक्षाकृत अधिक ही मिलते हैं।
गुजरात में अधिक मांग
बांसवाड़ा की इस हाइब्रिड मक्का की मांग सबसे अधिक गुजरात में रहती है। वहां इसकी प्रोसेसिंग से संबंधित बड़ी बड़ी औद्योगिक यूनिट्स है जो स्टार्च और ऑयल निकालने का काम करती है। स्टार्च के लिए दाना चमकदार और बड़ा होना जरूरी होता है। बांसवाड़ा की मक्का यह दोनों ही विशेषताएं फुल फील करता है। इस कारण गुजरात की औद्योगिक इकाइयों द्वारा 1200 से लेकर 1500 रुपए प्रति क्विंटल की दर से बिचौलियों के जरिए किसानों से यह मक्का खरीद लिया जाता है।
40000 हेक्टेयर में खेती
कृषि अनुसंधान केंद्र के जोनल डायरेक्टर डॉ पीके रोकडिया के अनुसार पिछले एक दशक से रबी की फसल के दौरान मक्का की पैदावार ली जा रही है। आज जिलेभर में करीब 38000 हेक्टेयर में मक्का की पैदावार ली जा रही है। यह खरीफ में दी जाने वाली फसल से भी अधिक है। इससे किसानों की आर्थिक दशा सुधर रही है। देशभर में बांसवाड़ा पहला जिला है जहां पर रबी के दौरान मक्का की फसल दिए जाने का चलन है।
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.