डूंगरपुर. देशभर में 1 जुलाई को डॉक्टर डे मनाया जाता है. हमारे समाज में डॉक्टर्स को भगवान का दर्जा दिया गया है. गंभीर परिस्थियों में डॉक्टर लोगों की जान बचाकर उनके भगवान बन जाते हैं. डॉक्टर्स ना सिर्फ लोगों का इलाज करते हैं, बल्कि उनकी जान बचाने के लिए समर्पित होकर उनकी सेवा करते हैं. समाज में अपना महत्वपूर्ण योगदान देने के साथ ही लगातार परिवर्तन लाने की कोशिश भी कर रहे हैं.
'फ्रंट लाइन वॉरियर की निभाई भूमिका'
इस बार यह दिन इसलिए भी खास हो जाता है, क्योंकि पिछले चार महीने से डॉक्टर धरती के भगवान बनकर लोगों की सेवा में जुटे हैं. भले ही खुद को कोरोना से ग्रसित होने का डर सताता रहा, बावजूद लोगों को इस महामारी से बचाने के लिए डॉक्टर फ्रंट लाइन वॉरियर के रूप में जी-जान से जुटे रहे.
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लयूएचओ) की ओर से कोरोना को वैश्विक महामारी घोषित करने के बाद देशभर में 24 मार्च से लॉकडाउन लागू हो गया. देश का हर व्यक्ति अपने घरों में या जहां था, वही कैद हो गया और खुद को कोरोना जैसी माहामारी से बचाने का प्रयास करता रहा. लेकिन धरती के ये भगवानों ने ना लोगों को कोरोना से बचाने के लिए जी जीन से लगे रहे.
घर-परिवार से दूर रहते हुए दिन-रात लोगों को कोरोना जैसी माहामारी से बचाने की जद्दोजहद करते दिखे. ईटीवी भारत ने डॉक्टरों की इसी कशमकश भरी स्थिति को जानने का प्रयास किया कि कैसे तो डॉक्टरों ने इस दौर में कैसे खुद को बचाते हुए लोगों की जिंदगी भी बचाई?
यह भी पढ़ें : National Doctors Day: कोरोना काल में धरती के 'भगवान' ने खुद भी दिखाई हिम्मत और मरीजों को भी दिया हौसला
डूंगरपुर जिले के सीएमएचओ डॉ. महेंद्र परमार बताते हैं कि प्रदेश में 22 मार्च से लॉकडाउन हुआ था, लेकिन इससे पहले ही 28 फरवरी को डूंगरपुर जिले के बिछीवाड़ा ब्लॉक में एक व्यक्ति चीन से आया था. इसके बाद से जिले में भागदौड़ शुरू हो गई है, जो आज तक नहीं थमी है.
'रेपिड रेस्पॉन्स टीमों का किया गया गठन'
सीएमएचओ बताते हैं कि जैसे ही कोरोना को वैश्विक माहामारी घोषित किया गया. उन्होंने इससे बचने की अपनी तैयारी और भी तेज कर दी. जिले में रेपिड रेस्पॉन्स टीमें गठित कर दी गईं. क्वॉरेंटाइन सेंटर तैयार किए गए और डॉक्टर की टीमें तैनात की गई.
CMHO ने बताया कि 26 मार्च को पहला कोरोना पॉजिटिव केस डूंगरपुर में मिला था. जब इंदौर से लोटे एक पिता और पुत्र कोरोना संक्रमित मिले थे. उस समय तक जिले में कोई खास व्यवस्थाएं नहीं थीं, तो पॉजिटिव मरीजों को उदयपुर रेफर कर दिया जाता था. लेकिन धीरे-धीरे अप्रैल में व्यवस्थाएं सुचारू कर दी गई और डूंगरपुर में ही संक्रमितों का इलाज शुरू किया गया.
'एकदफा प्रवासियों ने बढ़ा दी मुश्किलें'
CMHO बताते हैं कि लॉकडाउन के बाद काम-धंधे बंद हुए तो अचानक से प्रवासियों के लौटने का दौर शुरू हुआ. ऐसे में राजस्थान-गुजरात-रतनपुर बॉर्डर पर प्रवासियों की स्क्रीनिंग के लिए डॉक्टर ही सबसे आगे रहे. तब कोरोना का खतरा भी सबसे ज्यादा था, लेकिन डॉक्टरों ने इस सेवा के कार्य को भी बखूबी अंजाम दिया.
उन्होंने बताया कि लॉकडाउन 1 में जिले में महज 15 कोरोना पॉजिटिव केस ही थे, लेकिन लॉकडाउन 2 लागू हुआ और उस समय प्रवासियों को लाने की छूट मिलते ही हजारों की संख्या में गुजरात और महाराष्ट्र से प्रवासी लौटे.जिले में अब तक करीब 87 हजार से ज्यादा प्रवासी लौट चुके हैं. जिनमें करीब 900 से ज्यादा प्रवासी विदेश से लौटे हैं. इन सभी की स्क्रीनिग, सैंपलिंग के कार्य एक चुनौती थी. जिसे डॉक्टरों ने बखूबी निभाया है.
सीएमएचओ ने बताया कोरोना काल में चिकित्सा विभाग की ओर से अब तक तीन चरणों मे घर-घर सर्वे का कार्य किया गया है. चौथा चरण चल रहा है, जिसमे अब तक 16 लाख 14 हजार 784 लोगों के स्वास्थ्य की जांच की गई है. वहीं 21 हजार कोरोना के सैंपल लेकर जांच की गई, जिसमें 440 कोरोना पॉजिटिव मिले हैं. लेकिन डॉक्टर के प्रयास के कारण अब तक 388 मरीज ठीक होकर अपने घर जा चुके हैं. सीएमएचओ डॉ. महेंद्र परमार ने कहा डॉक्टर कोरोना को हराकर ही दम लेंगे.
यह भी पढे़ं : Special: PBM अस्पताल में डॉक्टर्स और नर्सिंग स्टाफ की कमी, फिर भी स्वास्थ्य सेवाओं की बेहतरी का दावा
श्री हरिदेव जोशी राजकीय जिला अस्पताल डूंगरपुर के प्रमुख चिकित्सा अधिकारी डॉ कांतिलाल मेघवाल ने ईटीवी भारत से बातचीत में बताया कि डूंगरपुर में पहले कोरोना मरीजों को रखने के लिए कोई व्यवस्था नहीं थी. इसलिए शुरुआती दौर में अस्पताल से हटकर धर्मशाला में 30 बेड का कोविड सेंटर तैयार किया गया. लेकिन बाद में व्यवस्थाओं का विस्तार करते हुए अप्रैल माह में 350 बेड का कोविड अस्पताल तैयार किया गया.
डॉ. मेघवाल बताते हैं कि कोरोना पॉजिटिव, नेगेटिव, आइसोलेशन और आईसीयू वार्ड सभी अलग-अलग तैयार किए. शुरुआत में कोरोना मरीजों को उदयपुर रेफर किया गया. लेकिन अप्रैल में ही डूंगरपुर अस्पताल में इलाज शुरू हो गया. इसके बाद 1 मई से डूंगरपुर मेडिकल कॉलेज से कोरोना जांच की सुविधा भी शुरू हो गई. जनजाति बहुल क्षेत्र में डूंगरपुर पहला जिला बना, जहां जांच की सुविधा शुरू हुई. इसके बाद से अब तक 21 हजार सैंपल की जांच की गई है.
'बॉर्डर से हास्पिटल तक मुस्तैद रहे चिकित्सक'
पीएमओ डॉ. मेघवाल ने बताते हैं कि एक दौर ऐसा था. जब प्रवासियों के आने के बाद एकदम से कोरोना पॉजिटिव का आंकड़ा बढ़ने लगा था. अप्रैल-मई महीने में ही 300 से ज्यादा कोरोना पॉजिटिव केस आ गए थे. लेकिन रतनपुर बॉर्डर से लेकर अस्पताल में डॉक्टर मुस्तेदी से खड़े रहे. पीएमओ ने बताया कि उस दौरान सामान्य मरीजो को ऑनलाइन चिकित्सा परामर्श सुविधा भी शुरू की गई है.
'हमारा हर प्रयास सफल, कोरोना को मात देकर जीतेंगे'
डूंगरपुर मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य डॉ. शलभ शर्मा ने बताया कि डूंगरपुर में मेडिकल कॉलेज का सबसे बड़ा फायदा यहां के लोगों को मिला है. सभी तरह की सुविधाएं सबसे पहले यहां के लोगों को मिली. चाहे वह 350 बेड के कोविड अस्पताल की बात हो, वेंटिलेटर की सुविधा या कोरोना टेस्टिंग लैब.
डॉ. शलभ शर्मा बताते हैं कि डूंगरपुर के अलावा बांसवाडा जिले के सैंपल भी यहीं जांचे गए. अब तक जिले में ही 21 हजार से ज्यादा सैंपल की जांच की गई है. इसके अलावा अब 75 लाख रुपए में ऑटो ऑक्सीजन सिस्टम भी तैयार किया जा रहा है. प्रवासियों के आने के बाद भले ही कोरोना पॉजिटिव का आंकड़ा बढ़ा हो, लेकिन रिकवरी रेट भी अच्छी है.
यह भी पढ़े : अजमेर: डॉक्टर्स डे पर RMCTA की साइकिल रैली, कोरोना जागरूकता का दिया संदेश
चिकित्सकों का कहना है कि वे दिन रात एककर लोगों की जिंदगी को बचाने के काम में जुटे हुए हैं और आगे भी जब तक कोरोना हो या कोई भी बीमारी या महामारी डॉक्टर इसी तरह से जंग लड़ते रहेंगे.
फैक्ट फाइल-
- कुल सैंपल- 19657
- पॉजिटिव- 440 (इसमें से 353 प्रवासी पॉजिटिव आए)
- पॉजिटिव से नेगेटिव हुए- 411
- डिस्चार्ज- 388
- अस्पताल स्टाफ पॉजिटिव केस- 10 (इसमें से 9 रिकवर)
- विदेश से लौटे- 911
- कुल प्रवासी लौटे- 82895 (दूसरे राज्य व जिलों से)
'क्यों मनाया जाता है नेशनल डॉक्टर डे'
नेशनल डॉक्टर डे हर साल 1 जुलाई को मनाया जाता है. इसके पीछे मुख्य वजह है. इसी दिन देश के प्रसिद्ध चिकित्सक डॉ. बिधान चंद्र रॉय को श्रद्धांजलि और सम्मान देने के लिए उनकी याद में मनाया जाता है. डॉ. रॉय का जन्म 1 जुलाई 1882 में बिहार के पटना में हुआ था. 1911 में उन्होंने भारत में चिकित्सकीय कार्य शुरू किया था. भारत में डॉक्टर डे की शुरुआत 1991 में तत्कालीन सरकार द्वारा की गई थी. तब से ही इसे मनाया जाता है.