डूंगरपुर. जिले में इस बार जिला प्रमुख और उपजिला प्रमुख के चुनाव ऐतिहासिक रहे. देश और प्रदेश के चुनावो में भाजपा और कांग्रेस में जोड़-तोड़ की राजनीति चल रही है. वहीं डूंगरपुर जिले में धुर विरोधी होने के बाजजूद दोनों ही विरोधी पार्टियों ने बीटीपी को हराने के लिए हाथ मिला लिया. भाजपा-कांग्रेस ने मिलकर यहां जिस रणनीति से जिला प्रमुख बनाया था, उसी तरह उपजिला प्रमुख के चुनाव में भी दोनों पार्टियों ने यही रणनीति अपनाई. कांग्रेस की सुरता परमार ने निर्दलीय के रूप में उपजिला प्रमुख के लिए नामांकन किया और फिर भाजपा ने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में उसका समर्थन करते हुए चुनाव में वोट कर दिया.
उपजिला प्रमुख चुनाव में सभी 27 सदस्यों के मतदान करने के बाद जिला निर्वाचन अधिकारी सुरेश कुमार ओला के निर्देशन में मतगणना शुरू की गई, जिसमें कांग्रेस समर्थित निर्दलीय सुरता परमार को 14 वोट मिले, तो वहीं बीटीपी समर्थित निर्दलीय मोहम्मद सलीम को 13 वोट मिले. इस तरह कांग्रेस की सुरता परमार 1 वोट से उपजिला प्रमुख पद का चुनाव जीत गई.
जीत के बाद जिला निर्वाचन अधिकारी सुरेश कुमार ओला, उपजिला निर्वाचन अधिकारी कृष्णपालसिंह ने विजेता सुरता परमार को निर्वाचन प्रमाण पत्र सौंपते हुए पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई. डूंगरपुर में दोनों विरोधी पार्टियों ने मिलकर एक-दूसरे का जिला प्रमुख और उपजिला प्रमुख बनाया है.
इसलिए करना पड़ा गठबंधन
आदिवासी बहुल डूंगरपुर जिले में तीसरी पार्टी बनकर उभरी बीटीपी की जड़ें मजबूत होती जा रही हैं. जिले से दो विधायकों के जीतकर आने के बाद बीटीपी ने लोकसभा चुनावों में भी अपना प्रत्याशी मैदान में उतारा, जिस कारण कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा था. अब पंचायतीराज चुनावो में भी बीटीपी की वजह से कांग्रेस और भाजपा दोनों ही पार्टियों को भारी नुकसान हुआ है.
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बता दें, पहली बार ही मैदान में उतरी बीटीपी जिला परिषद में बहुमत से केवल 1सीट दूर रही. ऐसे में बीटीपी को जिला प्रमुख बनाने से रोकने के लिए भाजपा-कांग्रेस ने हाथ मिला लिया और भाजपा का जिला प्रमुख बना दिया. तो वहीं कांग्रेस को उपजिला प्रमुख का पद देकर बराबरी कर दी. इसी गठबंधन का असर पंचायत समितियों में प्रधान और उपप्रधान के चुनाव में भी देखने को मिला.