जयपुर: राजस्थान में एक बार फिर किसान आंदोलन की आहट सुनाई दे रही है. किसान महापंचायत ने गांव बंद से किसान राज तक का संकल्प पारित करते हुए सरसों की फसल नहीं बेचने का निर्णय लिया है. मंगलवार को जयपुर के किसान भवन में किसान महापंचायत के द्वारा बुलाई गई समान विचारधारा वाले किसान संगठनों के प्रतिनिधियों की बैठक किसान महापंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामपाल जाट की अध्यक्षता में संपन्न हुई.
बैठक में कहा गया कि पूरा मोल-हर में तौल आंदोलन के तहत सरसों की फसल का उचित दाम नहीं मिलने तक नहीं बेचने का निर्णय लिया है. प्रथम चरण में यह अवधि 15 मार्च तक रहेगी, 16 मार्च को समीक्षा के बाद आगे की रणनीति घोषित की जाएगी. आंदोलन के दौरान किसानों की सरसों गिरवी रखकर केंद्र एवं राज्य सरकारों से वर्ष 2007 से बने हुए कानून के अनुसार किसानों को घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य की 80% राशि बिना ब्याज उपलब्ध कराने की व्यवस्था की जाए.
पूरा मोल-हर में तौल आंदोलन : किसान महापंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामपाल जाट ने कहा कि संपूर्ण देश के उत्पादन की 48% से अधिक सरसों का उत्पादन करनेवाला राजस्थान प्रथम राज्य है. इसके अतिरिक्त हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश जैसे राज्य भी सरसों उत्पादक हैं. गत वर्ष सरसों का न्यूनतम समर्थन मूल्य 5650 रुपये प्रति क्विंटल होते हुए भी किसानों को सरसों के दाम 4600 रुपये प्रति क्विंटल तक ही प्राप्त हुए थे. इस वर्ष सरसों के बाजार में 5500 रुपये प्रति क्विंटल तक के भाव हैं, जबकि घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य 5950 रुपये प्रति क्विंटल है.
बाजार के भाव सरसों की आवक आरंभ होते ही 5000 रुपये प्रति क्विंटल तक से भी नीचे चले जाते हैं. भारत सरकार खाद्य तेल के आयात पर प्रतिवर्ष लाखों करोड़ रुपये व्यय करती है, लेकिन देश के सबसे उत्पादक किसानों को वह मूल्य भी सुनिश्चित नहीं कर पाती है, जिन्हें न्यूनतम के रूप में घोषित किया जाता है. इसके विरोध में 29 जनवरी को 'गांव बंद आंदोलन' का 45,537 गांवों में आह्वान किया गया था. तात्कालिक रूप से सरसों का मूल्य किसानों द्वारा निर्धारित करने की दिशा में सरसों सत्याग्रह आरंभ करना अपरिहार्य हो गया है. इसके लिए देश के 8 राज्यों के 101 किसानों ने 6 अप्रैल 2023 को दिल्ली के जंतर-मंतर पर 1 दिन का उपवास कर सरसों सत्याग्रह भी किया था, तब भी सरकार ने सार्थक करवाई नहीं की.
इसलिए सरसों उत्पादक किसानों ने सर्वसम्मति से अपनी सरसों 6000 रुपये प्रति क्विंटल से कम दामों पर नहीं बेचने के लिए संकल्प का प्रस्ताव पारित किया है. प्रथम चरण में यह अवधि 15 मार्च तक रहेगी, 16 मार्च को समीक्षा के बाद आगे की रणनीति घोषित की जाएगी. इस दौरान किसानों की सरसों गिरवी रखकर केंद्र एवं राज्य सरकारों से वर्ष 2007 से बने हुए कानून के अनुसार किसानों को घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य की 80% राशि बिना ब्याज उपलब्ध कराने की व्यवस्था की जाए. जिससे संसद में केंद्र सरकार द्वारा दिया गया वह वक्तव्य पूर्ण हो सके, जिसमें किसानों को घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम दामों में उनकी उपज बेचने के लिए विवश नहीं होना पड़े.