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'कार्यवाही खत्म करने का मतलब बरी...', SC ने जयललिता की संपत्तियां रिलीज करने की याचिका खारिज की - SUPREME COURT

सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व मुख्यमंत्री जे जयललिता के कानूनी उत्तराधिकारियों में से एक की याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया.

Supreme Court
सुप्रीम कोर्ट (IANS)
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By Sumit Saxena

Published : Feb 14, 2025, 4:55 PM IST

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जे जयललिता के कानूनी उत्तराधिकारियों में से एक की याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया. इस याचिका में आय से अधिक संपत्ति मामले में जांच अवधि के उल्लंघन में अर्जित उनकी संपत्ति को वापस लेने की मांग की गई थी. यह मामला जस्टिस बी वी नागरत्ना और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की पीठ के समक्ष आया था.

याचिकाकर्ता जे दीपा का प्रतिनिधित्व कर रहे अधिवक्ता एम सत्य कुमार ने पीठ के समक्ष दलील दी कि जयललिता ने अपने अभिनय करियर के दौरान सोने और चांदी की वस्तुएं अर्जित की थीं. कुमार ने जोर देकर कहा कि उनकी मां द्वारा उपहार में दी गई वस्तुओं को वापस किया जाना चाहिए और साथ ही उन संपत्तियों को भी वापस किया जाना चाहिए जो जांच अवधि के बाद अर्जित की गई थीं.

'उनके खिलाफ केवल कार्यवाही समाप्त हुई है'
पीठ ने वकील से पूछा, "हमें नहीं पता आप कैसे पहचानेंगे कि कौन सी वस्तुएं जांच अवधि का उल्लंघन करके हासिल की गई थीं..." सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि जयललिता की मृत्यु के कारण उसके समक्ष कार्यवाही समाप्त होने का अर्थ यह नहीं है कि उन्हें मामले में बरी कर दिया गया है. पीठ ने कहा कि उनके मामले में पिछले फैसले ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को पूरी तरह से बहाल कर दिया और जयललिता की मृत्यु के कारण केवल उनके खिलाफ कार्यवाही समाप्त हुई.

दलीलें सुनने के बाद पीठ ने कहा कि वह इस मामले पर विचार करने के लिए इच्छुक नहीं है और दीपा द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया, जिन्होंने कर्नाटक हाई कोर्ट के 13 जनवरी, 2025 के आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था. बता दें कि जे दीपा तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री की भतीजी हैं.

हाई कोर्ट ने की थी याचिका खारिज
हाई कोर्ट ने करोड़ों रुपये की आय से अधिक संपत्ति के मामले में अधिकारियों द्वारा जब्त की गई चल और अचल संपत्तियों को जांच अवधि से बाहर वापस करने की याचिका को खारिज कर दिया था. सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में कहा गया था कि चूंकि दिसंबर 2016 में उनकी चाची की मृत्यु के बाद उनके खिलाफ आपराधिक मामला समाप्त हो गया था, इसलिए कार्यवाही के दौरान जब्त की गई उनकी संपत्ति को रिलीज किया जाना चाहिए.

याचिका में कहा गया है कि मद्रास हाई कोर्ट ने 27 मई 2020 के आदेश में याचिकाकर्ता को दिवंगत जे. जयललिता की संपत्ति के वर्ग-II कानूनी उत्तराधिकारियों में से एक के रूप में मान्यता दी, साथ ही उनके भाई को भी मान्यता दी और व्यक्तिगत रूप से या फर्मों या कंपनियों के नाम पर और पूर्व सीएम के क्रेडिट के संबंध में प्रशासन के पत्र दिए.

याचिकाकर्ता ने कहा कि फरवरी 2017 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले के अनुसार उनकी दिवंगत चाची के संबंध में कार्यवाही समाप्त हो गई है. याचिका में कहा गया है, "इसलिए, डॉ. जे जयललिता को एक अपराधी नहीं माना जा सकता है.साथ ही जब्त की गई संपत्तियों को अध्यादेश, 1944 के तहत पारित कुर्की आदेश को हटाकर वापस किया जाना है.

याचिका में कहा गया है कि पूर्व मुख्यमंत्री के निधन के साथ ही उनसे संबंधित अपीलें सुप्रीम कोर्ट के फैसले से समाप्त हो गई हैं और उनके कानूनी उत्तराधिकारियों को सभी चल और अचल संपत्तियों को वापस पाने का अधिकार मिल गया है, जिन्हें जब्त और कुर्क कर दिया गया है.

यह भी पढ़ें- पत्रकार पर हमला मामला : सुप्रीम कोर्ट ने तेलुगु अभिनेता मोहन बाबू को अग्रिम जमानत दी

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जे जयललिता के कानूनी उत्तराधिकारियों में से एक की याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया. इस याचिका में आय से अधिक संपत्ति मामले में जांच अवधि के उल्लंघन में अर्जित उनकी संपत्ति को वापस लेने की मांग की गई थी. यह मामला जस्टिस बी वी नागरत्ना और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की पीठ के समक्ष आया था.

याचिकाकर्ता जे दीपा का प्रतिनिधित्व कर रहे अधिवक्ता एम सत्य कुमार ने पीठ के समक्ष दलील दी कि जयललिता ने अपने अभिनय करियर के दौरान सोने और चांदी की वस्तुएं अर्जित की थीं. कुमार ने जोर देकर कहा कि उनकी मां द्वारा उपहार में दी गई वस्तुओं को वापस किया जाना चाहिए और साथ ही उन संपत्तियों को भी वापस किया जाना चाहिए जो जांच अवधि के बाद अर्जित की गई थीं.

'उनके खिलाफ केवल कार्यवाही समाप्त हुई है'
पीठ ने वकील से पूछा, "हमें नहीं पता आप कैसे पहचानेंगे कि कौन सी वस्तुएं जांच अवधि का उल्लंघन करके हासिल की गई थीं..." सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि जयललिता की मृत्यु के कारण उसके समक्ष कार्यवाही समाप्त होने का अर्थ यह नहीं है कि उन्हें मामले में बरी कर दिया गया है. पीठ ने कहा कि उनके मामले में पिछले फैसले ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को पूरी तरह से बहाल कर दिया और जयललिता की मृत्यु के कारण केवल उनके खिलाफ कार्यवाही समाप्त हुई.

दलीलें सुनने के बाद पीठ ने कहा कि वह इस मामले पर विचार करने के लिए इच्छुक नहीं है और दीपा द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया, जिन्होंने कर्नाटक हाई कोर्ट के 13 जनवरी, 2025 के आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था. बता दें कि जे दीपा तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री की भतीजी हैं.

हाई कोर्ट ने की थी याचिका खारिज
हाई कोर्ट ने करोड़ों रुपये की आय से अधिक संपत्ति के मामले में अधिकारियों द्वारा जब्त की गई चल और अचल संपत्तियों को जांच अवधि से बाहर वापस करने की याचिका को खारिज कर दिया था. सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में कहा गया था कि चूंकि दिसंबर 2016 में उनकी चाची की मृत्यु के बाद उनके खिलाफ आपराधिक मामला समाप्त हो गया था, इसलिए कार्यवाही के दौरान जब्त की गई उनकी संपत्ति को रिलीज किया जाना चाहिए.

याचिका में कहा गया है कि मद्रास हाई कोर्ट ने 27 मई 2020 के आदेश में याचिकाकर्ता को दिवंगत जे. जयललिता की संपत्ति के वर्ग-II कानूनी उत्तराधिकारियों में से एक के रूप में मान्यता दी, साथ ही उनके भाई को भी मान्यता दी और व्यक्तिगत रूप से या फर्मों या कंपनियों के नाम पर और पूर्व सीएम के क्रेडिट के संबंध में प्रशासन के पत्र दिए.

याचिकाकर्ता ने कहा कि फरवरी 2017 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले के अनुसार उनकी दिवंगत चाची के संबंध में कार्यवाही समाप्त हो गई है. याचिका में कहा गया है, "इसलिए, डॉ. जे जयललिता को एक अपराधी नहीं माना जा सकता है.साथ ही जब्त की गई संपत्तियों को अध्यादेश, 1944 के तहत पारित कुर्की आदेश को हटाकर वापस किया जाना है.

याचिका में कहा गया है कि पूर्व मुख्यमंत्री के निधन के साथ ही उनसे संबंधित अपीलें सुप्रीम कोर्ट के फैसले से समाप्त हो गई हैं और उनके कानूनी उत्तराधिकारियों को सभी चल और अचल संपत्तियों को वापस पाने का अधिकार मिल गया है, जिन्हें जब्त और कुर्क कर दिया गया है.

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