दौसा. दौसा शहर चिड़ी को बासो, अन्न घणो, पण पाणी को प्यासो. मतलब दौसा में अन्न यानी अनाज तो बहुत है, लेकिन यहां पानी का कमी है. ये कहावत यहां के लोगों की जुबान पर हमेशा रहती है. इसके पीछे कारण है कि यहां का भूजल स्तर काफी नीचे जा चुका है.
जल है तो कल है और जल का आज संरक्षण करेंगे तो कल बेहतर होगा. इसी सोच को देखते हुए अब दौसा कलेक्टर पीयूष समारिया जल संरक्षण पर जोर दे रहे हैं. जल शक्ति अभियान के तहत प्रत्येक सरकारी भवन में वर्षा जल पुनर्भरण टांके बनवाए जा रहे हैं. दौसा जिले के सभी सरकारी विद्यालयों के संस्था प्रधानों को भी इसके लिए निर्देश दिए हैं.
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ऐसे में अनेक संस्थाओं की ओर से वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम (Water Harvesting System) बना दिए गए हैं, जिससे वर्षा का जल संरक्षण हो रहा है और जो आगामी समय में डार्क जोन में तब्दील हुए दौसा के लिए वरदान साबित होगा. दौसा जिले में गंभीर पेयजल संकट है और जिले के अधिकतर इलाकों में भूजल उपलब्ध नहीं हो पा रहा है. ऐसे में लोग पानी की एक-एक बूंद के लिए परेशान हैं. दौसा शहर को बीसलपुर से 20 लाख लीटर पानी मिल रहा है, जो भी नाकाफी है, लेकिन दौसा जिले के अन्य कस्बों और ग्रामीण इलाकों में हालात काफी खराब है. ऐसे में समय रहते हुए यदि सतर्क नहीं हुए और जागरूकता नहीं आई तो हालात और भी बदतर हो सकते हैं.
दौसा कलेक्टर की पहल...
दौसा जिले में गिरते भूजल स्तर को देखते हुए इस बार कलेक्टर पीयूष समारिया जल शक्ति अभियान के तहत विशेष कार्य करने में लगे हुए हैं ताकि दौसा जिले में भूजल के स्तर की गिरावट को रोकी जा सके और दौसा जिले को पानी उपलब्ध कराया जा सके. हालांकि सरकार के प्रोजेक्ट आने में काफी वर्ष लग सकते हैं. ऐसे में जागरूकता से ही दौसा जिले के लोगों को आगामी गर्मियों या फिर आने वाले सालों में पेयजल उपलब्ध कराया जा सकता है.
सरकारी और निजी भवनों में वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगवाने की अपील
दौसा कलेक्टर की ओर से इस बार सरकारी भवनों और निजी भवनों में वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगवाने की अपील की जा रही है. इसके लिए सरकारी विभाग के अधिकारियों को तो निर्देश भी जारी कर दी गई है. कलेक्टर के निर्देशों के बाद दौसा के सभी स्कूलों में वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम (Water Harvesting System) लगाने की प्रक्रिया चल रही है, अधिकतर स्कूलों में वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगा भी दिया गया है, जिससे वर्षा जल का संरक्षण हो रहा है. जिसके बाद देखने को ये भी मिला है कि जिस जगह पर वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाया जाता है, उस जगह के आसपास के क्षेत्र में भूजल के स्तर की गिरावट में रोक लगती है और आसपास के क्षेत्र में जो जल स्रोत होता है, वह रिचार्ज हो जाता है. जिससे उसमें पानी लगातार आता रहता है.
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जल संरक्षण के क्षेत्र में किए जा रहे विशेष कार्य
इसी को देखते हुए इस बार वृहद स्तर पर वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगवाए जा रहे हैं, ताकि नलकूप, हैंडपंप, एकल बिंदु आदि में पानी का स्तर बना रहे और आगामी वर्षों में भी ये दौसा जिले की जनता को पानी पिलाते रहे. जल शक्ति अभियान के तहत दौसा में वर्षा जल संरक्षण के क्षेत्र में विशेष कार्य किए जा रहे हैं ताकि डार्क जोन जिला दौसा में पेयजल उपलब्ध कराए जा सके. हालांकि इसके लिए कलेक्टर ने सभी सरकारी अधिकारियों को अपने कार्यालय में वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाने के निर्देश दे दिए हैं.
356 सरकारी स्कूलों में लग चुके हैं वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम
अधिकारियों को निर्देश मिलने के बाद जिले के सभी 356 राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय में वाटर हार्वेस्टिंग लग चुके हैं या अधिकांश विद्यालयों में वाटर हार्वेस्टिंग बनने का कार्य सुचारू है. जिला शिक्षा अधिकारी घनश्याम मीणा ने बताया कि जिले के सभी राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय वाटर हार्वेस्टिंग (Water Harvesting) के लिए सख्ती से निर्देश दे दिए गए हैं. जिससे कि विद्यालय जलस्रोत रिचार्ज हो और विद्यालय के स्टाफ और बच्चों को पानी कमी नहीं आए, ऐसे में जिन विद्यालयों के क्षेत्र का पानी बहुत ज्यादा फ्लोराइड युक्त या खारा है. उन विद्यालय में वर्षा के पानी को एकत्रित करने के लिए भी जल स्रोत बनाए जाएंगे.
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वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम का लाभ मिलना शुरू
जिला मुख्यालय पर बने वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम के आसपास के लोगों को इसका लाभ मिलना शुरू हो गया है. जिन लोगों ने कुछ वर्षों पहले ही वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम (Water Harvesting System) लगा लिए थे, उनके आसपास के नलकूप और हैंडपंप रिचार्ज हो गए, जिसके चलते अब उन्हें टैंकरों के इंतजार में नहीं रहना पड़ता या टैंकरों के लिए पैसे खर्च नहीं करने पड़ते हैं.
जल संरक्षण का अर्थ
जल संरक्षण का अर्थ पानी बर्बादी और प्रदूषण को रोकने से है. जल संरक्षण एक अनिवार्य आवश्यकता है क्योंकि वर्षाजल हर समय उपलब्ध नहीं रहता. इसलिए पानी की कमी को पूरा करने के लिए पानी का संरक्षण आवश्यक है. एक अनुमान के अनुसार विश्व में 350 मिलियन क्यूबिक मील पानी है. इसमें से 97 फीसदी भाग समुद्र से घिरा हुआ है.
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पृथ्वी पर जल 3 स्वरूपों में उपलब्ध होता है-
- तरल जल- समुद्र, नदियां, झरने, तालाब, कुएं आदि.
- ठोस जल (बर्फ)- पहाड़ों और ध्रुवों पर जमी बर्फ.
- वाष्प (भाप)- बादलों में भाप.
ऐसे करें जल संरक्षण...
- वर्षा के पानी को स्थानीय जरूरत और भौगोलिक स्थितियों के हिसाब से संचित किया जाए.
- भूमि के अंदर जल पहुंचाने के लिए जहां भी संभव हो छोटे-छोटे तालाब बनाकर उनमें वर्षाजल एकत्रित करें.
- घर की छतों का पानी, घर में टैंक बनाकर एकत्रित करें. स्कूल, कॉलेज और अन्य सरकारी, गैर-सरकारी भवनों की छत का पानी भी व्यर्थ न बहने दें. इमारत के आगे-पीछे जहां भी जगह हो टैंक बनाकर छत से बहने वाले पानी को पाइपों से इकट्ठा करने की व्यवस्था करें.
- तालाब, एनीकट की पाल को दुरुस्त करें, जिससे उनमें भरने वाला पानी फालतू ना बहे. तालाब, एनीकट की भराव क्षमता बढ़ाने के लिए उसमें से मिट्टी खोदकर बाहर निकालें.
- पहाड़ी एवं उबड़-खाबड़ भूमि पर मेड़बंदी कर वहां भी जल एकत्रित करें. अपने-अपने खेतों में मेड़बंदी करें. खेती के लिए पानी भी इकट्ठा होगा, मिट्टी भी बहने से रुकेगी और भूजल भी बढ़ेगा.
- गांव-गांव, ढाणी-ढाणी और शहर-शहर में बने हुए जलस्रोतों का पुनरुद्धार करें. इनमें जमा कूड़े-कचरे, मिट्टी, कंकड़ को बाहर निकाल फेकें.