दौसा. जिले के तालाब गांव में किसी वक्त कपास की खेती हुआ करती थी. तो यहां लगने वाली कपास की मंडी में व्यापार के लिए दूरदराज से लोग आया करते थे. दौसा जिले में एक छोटा सा गांव आज से 8 से 9 दशक पहले अपने यहां मौजूद तालाब और जल संरक्षण के स्रोतों के कारण अपनी अलग पहचान बनाए हुए था. लेकिन वक्त के साथ तालाब पर मिट्टी डाल दी गई और लंबे क्षेत्र में फैला तालाब चंद हजार फीट के क्षेत्र में सिमट कर रह गया.
इस तालाब के आसपास खेती तो होती रही, लेकिन गांव में जल संरक्षण और जल पुनर्भरण का यह प्रमुख स्रोत गांव में बेतरतीब विकास की भेंट चढ़ गया. आसपास आवासीय कॉलोनियां विकसित हो गई, और गांव के लोग इस परंपरागत स्रोत के होने के बावजूद पानी के लिए तरसने लगे. ऐसे में गांव के प्रमुख परिवारों ने इस साल आपको फिर से सहेजने का जिम्मा उठाया, और सरकारी मदद से इस तालाब के पुनरुद्धार की मुहिम को शुरू किया गया.
इसके बाद तालाब के चारों तरफ पाल बनाई गई. बारिश का पानी आसपास के क्षेत्र से कैसे तालाब तक पहुंचे, इसके लिए पक्के नाले बनाकर पानी को तालाब तक पहुंचाया गया, और तालाब से पानी का रिसाव ज्यादा ना हो इसके लिए सरकार के अनुभवी अफसरों की मदद से मिले सुझाव के आधार पर ऊपरी किनारों पर प्लास्टिक की कोटिंग की गई. इन कोशिशों के कारण ही यह तालाब अब फिर से सजीव रूप धारण करता हुआ नजर आ रहा है, और इसमें 8 से 10 फीट तक पानी इस बरसात में भर गया है.
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तालाब गांव का यह परंपरा के तालाब भले ही अब छोटे से हिस्से में सिमटा हुआ है, और इसमें जो पानी है उससे आसपास के 10 से 12 खेतों में सिंचाई हो जाती है. एक बड़ा भूभाग इस पानी से सिंचित होकर गांव की पहचान को कायम करने की कोशिश की साकार होने की मिसाल है.
ईटीवी भारत ऐसे ही प्रयासों को प्रदेश के बाकी हिस्सों तक पहुंचाने की कोशिश करता रहेगा. ताकि लोग भी जल संरक्षण के लिए प्रेरित हो और अपने परंपरागत जल स्रोतों को सहेजने के साथ-साथ उनके संरक्षण की दिशा में आगे बढ़ते रहें.