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ये कैसी बेबसी और लाचारी है...सरकार की बेरुखी झेल रहे मजदूर हजारों रुपए खर्चकर घर जाने को मजबूर

मजदूरों को घर आने को लेकर सभी प्रदेश की सरकारें तो दावा कर रही हैं, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही कहती है. ऐसे में दो प्रदेश की सरकारों के बीच में मजबूर मजदूरों को झेलना पड़ रहा है. कुछ ऐसा ही मामला सामने आया है दौसा जिले से.

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बेरुखी झेल रहे मजदूर
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Published : May 18, 2020, 12:22 PM IST

दौसा. कोरोना महामारी के बीच यूपी की योगी और पश्चिम बंगाल की ममता सरकार की बेरुखी मजदूरों को झेलनी पड़ रही है. सभी प्रदेशों की सरकारें अपने-अपने राज्यों के बाहरी मजदूरों को सकुशल अपने प्रदेश पहुंचाने का दावा तो कर रही हैं. लेकिन धरातल पर परिणाम कुछ भी नहीं है, जिसके चलते सैकड़ों मजदूरों को अपनी जेब से हजारों रुपए खर्चकर अपने स्तर पर ही जैसे-तैसे गाड़ियों का इंतजाम कर घर जाना पड़ रहा है.

सरकारों की बेरुखी झेल रहे मजदूर

दौसा की घूमना बांध में खेती बाड़ी करने के लिए पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश से करीब 300 मजदूर आए थे, लेकिन काम धंधा बंद होने से और खेती बाड़ी में मुनाफा नहीं होने के चलते अब ये मजदूर वापस अपने घर जा रहे हैं. लेकिन हैरानी कर देने वाली बात यह है कि इन मजदूरों को अपने खर्चे से पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश जाना पड़ रहा है, जबकि विभिन्न राज्यों की सरकारें प्रवासी मजदूरों को लाने का दम तो भर रही हैं. लेकिन पश्चिम बंगाल सरकार और उत्तर प्रदेश सरकार ने इन मजदूरों की सुध नहीं ली.

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पैदल चलने को मजबूर मजदूर

यह भी पढ़ेंः सरकार सुविधाएं देने के वादे कर रही है, लेकिन सुविधाएं हैं कहां...? : मजदूर

सैकड़ों मजदूरों ने कई बार ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन भी करवाया, लेकिन न तो ट्रेन की व्यवस्था हुई और न बस की. हालांकि राजस्थान की सरकार ने इन्हें उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल जाने की अनुमति तो दे दी, लेकिन जब बात किराए की आई तो सभी मजदूर परेशान हो गए. इसके बाद मजदूरों ने अपने स्तर पर ही पैसा इकट्ठा करके बसों की व्यवस्था की. पश्चिम बंगाल के लिए जाने वाली बस करीब डेढ़ लाख रुपए में तय हुई. वहीं उत्तर प्रदेश जाने वाली बसें करीब 80 हजार रुपए में तय हुई. ऐसे में उत्तर प्रदेश जाने वाले मजदूरों को प्रति मजदूर 2 हजार रुपए और पश्चिम बंगाल जाने वाले मजदूरों को तीन से 4 हजार रुपए प्रति मजदूर देने पड़े.

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सरकारों की बेरुखी झेल रहे मजदूर

बता दें कि अपने-अपने राज्यों से यहां पर पैसा कमाने के लिए मजदूर आए थे. लेकिन कमाया हुआ पैसा भी दो माह के लॉकडाउन के दौरान खर्च हो गया. वहीं कुछ पैसा जो बचा, उससे बस का किराया दिया या फिर अनेक मजदूरों ने तो घर से ऑनलाइन पैसा भी मंगवाया और किराया देकर अब अपने घर जा रहे हैं. ऐसे में देश के विभिन्न राज्यों की सरकार अपने राज्य के मजदूरों को दूसरे राज्यों से लाने का दम भर रही हैं. वहीं किराया भी वहन करने का वादा कर रही है. लेकिन धरातल पर कुछ ऐसी भी तस्वीर देखने को मिल रही है.

दौसा. कोरोना महामारी के बीच यूपी की योगी और पश्चिम बंगाल की ममता सरकार की बेरुखी मजदूरों को झेलनी पड़ रही है. सभी प्रदेशों की सरकारें अपने-अपने राज्यों के बाहरी मजदूरों को सकुशल अपने प्रदेश पहुंचाने का दावा तो कर रही हैं. लेकिन धरातल पर परिणाम कुछ भी नहीं है, जिसके चलते सैकड़ों मजदूरों को अपनी जेब से हजारों रुपए खर्चकर अपने स्तर पर ही जैसे-तैसे गाड़ियों का इंतजाम कर घर जाना पड़ रहा है.

सरकारों की बेरुखी झेल रहे मजदूर

दौसा की घूमना बांध में खेती बाड़ी करने के लिए पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश से करीब 300 मजदूर आए थे, लेकिन काम धंधा बंद होने से और खेती बाड़ी में मुनाफा नहीं होने के चलते अब ये मजदूर वापस अपने घर जा रहे हैं. लेकिन हैरानी कर देने वाली बात यह है कि इन मजदूरों को अपने खर्चे से पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश जाना पड़ रहा है, जबकि विभिन्न राज्यों की सरकारें प्रवासी मजदूरों को लाने का दम तो भर रही हैं. लेकिन पश्चिम बंगाल सरकार और उत्तर प्रदेश सरकार ने इन मजदूरों की सुध नहीं ली.

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पैदल चलने को मजबूर मजदूर

यह भी पढ़ेंः सरकार सुविधाएं देने के वादे कर रही है, लेकिन सुविधाएं हैं कहां...? : मजदूर

सैकड़ों मजदूरों ने कई बार ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन भी करवाया, लेकिन न तो ट्रेन की व्यवस्था हुई और न बस की. हालांकि राजस्थान की सरकार ने इन्हें उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल जाने की अनुमति तो दे दी, लेकिन जब बात किराए की आई तो सभी मजदूर परेशान हो गए. इसके बाद मजदूरों ने अपने स्तर पर ही पैसा इकट्ठा करके बसों की व्यवस्था की. पश्चिम बंगाल के लिए जाने वाली बस करीब डेढ़ लाख रुपए में तय हुई. वहीं उत्तर प्रदेश जाने वाली बसें करीब 80 हजार रुपए में तय हुई. ऐसे में उत्तर प्रदेश जाने वाले मजदूरों को प्रति मजदूर 2 हजार रुपए और पश्चिम बंगाल जाने वाले मजदूरों को तीन से 4 हजार रुपए प्रति मजदूर देने पड़े.

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सरकारों की बेरुखी झेल रहे मजदूर

बता दें कि अपने-अपने राज्यों से यहां पर पैसा कमाने के लिए मजदूर आए थे. लेकिन कमाया हुआ पैसा भी दो माह के लॉकडाउन के दौरान खर्च हो गया. वहीं कुछ पैसा जो बचा, उससे बस का किराया दिया या फिर अनेक मजदूरों ने तो घर से ऑनलाइन पैसा भी मंगवाया और किराया देकर अब अपने घर जा रहे हैं. ऐसे में देश के विभिन्न राज्यों की सरकार अपने राज्य के मजदूरों को दूसरे राज्यों से लाने का दम भर रही हैं. वहीं किराया भी वहन करने का वादा कर रही है. लेकिन धरातल पर कुछ ऐसी भी तस्वीर देखने को मिल रही है.

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