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अफीम की खेती ने उड़ाई किसानों की नींद, सरिए रोप कर तो कोई जाल डालकर कर रहे रखवाली - किसान कर रहे अफीम की खेती

चित्तौड़गढ़ में इन-दिनों अफीम की फसल लहलहा रही है. एक तरफ जहां लहराते डोडे देखकर किसान खुशी से झूमते नजर आ रहे है, वहीं दूसरी ओर फसल की सुरक्षा का जिम्मा और भी बढ़ता दिख रहा है. देखिए यह रिपोर्ट...

किसान कर रहे अफीम की खेती, Farmers doing opium cultivation
अफीम की फसल के साथ बढ़ी किसानों की जिम्मेदारी
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Published : Jan 24, 2021, 4:26 PM IST

चित्तौड़गढ़. जिले में इन दिनों अफीम की फसल फूल और फल की स्टेज तक पहुंच चुकी है. जिले में जहां कहीं पर भी अफीम के लाइसेंस से खेती की जा रही है, वहां चारों ओर सफेद फूल ही फूल नजर आ रहे हैं. कई खेतों में फसल फल तक पहुंच चुकी है.

अफीम की फसल के साथ बढ़ी किसानों की जिम्मेदारी

एक तरफ जहां लहराते डोडे देखकर किसान खुशी से झूमते नजर आ रहे है, वहीं दूसरी ओर फसल की सुरक्षा का जिम्मा और भी बढ़ता दिख रहा है. फूल और फल आने के साथ ही मौसम में भी बदलाव देखा जा रहा है. सुबह शाम सर्दी के अलावा दिन में कड़ी धूप फसल के लिए बेहतर मानी जा रही है, लेकिन अगले कुछ दिनों में तेज हवा का दौर भी आने वाला है.

तेज हवा के दौरान फसल के गिरने के आसार बढ़ जाते हैं, इससे होने वाले नुकसान को रोकने के लिए काश्तकारों की ओर से लोहे के सरिए रोप कर एक-एक पौधे को सपोर्ट देकर मजबूती प्रदान करने की कोशिश की जा रही है. वहीं इस स्टेज में पक्षियों से नुकसान का खतरा भी बढ़ जाता है. इससे निपटने के लिए फसल को नेट लगाकर सुरक्षित करने के जतन तक किए जा रहे हैं. इसमें फसल के चारों किनारों के साथ-साथ फसल में भी बाकायदा सपोर्ट लगाकर नेट बिछाई जा रही है.

इस स्टेज में खासकर तोता फसल को नुकसान पहुंचाते हैं. तोता कच्चे डोडो को न केवल काट पीट देते हैं, बल्कि तोड़कर अपने साथ ले जाते हैं, जबकि इस फसल में 1-1 डोडा काफी अहम होता है. धीरे धीरे अधिकांश किसान नेट के जरिए पक्षियों से फसल को होने वाले नुकसान की रोकथाम के प्रयासों में जुट रहे हैं.

पढ़ें- CM का अगला चेहरा कौन होगा, ये सब सोशल मीडिया नहीं भाजपा पार्लियामेंट्री बोर्ड तय करेगा : अरुण सिंह

काश्तकार श्याम लाल तेली ने बताया कि इस स्टेज में आने के बाद पक्षियों से फसल को खतरा और भी बढ़ जाता है. खासकर पक्षी कच्चे डोडो को तोड़ ले जाते हैं, जबकि एक-एक डोडा हमारे लिए काफी अहम होता है. पक्षियों से होने वाले नुकसान को रोकने के लिए ही धीरे-धीरे सारे काश्तकार अब नेट का सहारा लेने लगे हैं. बता दें कि चित्तौड़गढ़ के अलावा प्रतापगढ़, मंदसौर, नीमच मैं खाते पैमाने पर लाइसेंस के आधार पर अफीम की खेती की जाती है. अकेले चित्तौड़गढ़ जिले में ही करीब 12000 काश्तकार है. जिले में करीब 6000 बीघा में अफीम की काश्त की जा रही है.

चित्तौड़गढ़. जिले में इन दिनों अफीम की फसल फूल और फल की स्टेज तक पहुंच चुकी है. जिले में जहां कहीं पर भी अफीम के लाइसेंस से खेती की जा रही है, वहां चारों ओर सफेद फूल ही फूल नजर आ रहे हैं. कई खेतों में फसल फल तक पहुंच चुकी है.

अफीम की फसल के साथ बढ़ी किसानों की जिम्मेदारी

एक तरफ जहां लहराते डोडे देखकर किसान खुशी से झूमते नजर आ रहे है, वहीं दूसरी ओर फसल की सुरक्षा का जिम्मा और भी बढ़ता दिख रहा है. फूल और फल आने के साथ ही मौसम में भी बदलाव देखा जा रहा है. सुबह शाम सर्दी के अलावा दिन में कड़ी धूप फसल के लिए बेहतर मानी जा रही है, लेकिन अगले कुछ दिनों में तेज हवा का दौर भी आने वाला है.

तेज हवा के दौरान फसल के गिरने के आसार बढ़ जाते हैं, इससे होने वाले नुकसान को रोकने के लिए काश्तकारों की ओर से लोहे के सरिए रोप कर एक-एक पौधे को सपोर्ट देकर मजबूती प्रदान करने की कोशिश की जा रही है. वहीं इस स्टेज में पक्षियों से नुकसान का खतरा भी बढ़ जाता है. इससे निपटने के लिए फसल को नेट लगाकर सुरक्षित करने के जतन तक किए जा रहे हैं. इसमें फसल के चारों किनारों के साथ-साथ फसल में भी बाकायदा सपोर्ट लगाकर नेट बिछाई जा रही है.

इस स्टेज में खासकर तोता फसल को नुकसान पहुंचाते हैं. तोता कच्चे डोडो को न केवल काट पीट देते हैं, बल्कि तोड़कर अपने साथ ले जाते हैं, जबकि इस फसल में 1-1 डोडा काफी अहम होता है. धीरे धीरे अधिकांश किसान नेट के जरिए पक्षियों से फसल को होने वाले नुकसान की रोकथाम के प्रयासों में जुट रहे हैं.

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काश्तकार श्याम लाल तेली ने बताया कि इस स्टेज में आने के बाद पक्षियों से फसल को खतरा और भी बढ़ जाता है. खासकर पक्षी कच्चे डोडो को तोड़ ले जाते हैं, जबकि एक-एक डोडा हमारे लिए काफी अहम होता है. पक्षियों से होने वाले नुकसान को रोकने के लिए ही धीरे-धीरे सारे काश्तकार अब नेट का सहारा लेने लगे हैं. बता दें कि चित्तौड़गढ़ के अलावा प्रतापगढ़, मंदसौर, नीमच मैं खाते पैमाने पर लाइसेंस के आधार पर अफीम की खेती की जाती है. अकेले चित्तौड़गढ़ जिले में ही करीब 12000 काश्तकार है. जिले में करीब 6000 बीघा में अफीम की काश्त की जा रही है.

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