चित्तौड़गढ़. शहर के भामाशाह द्वारका प्रसाद काबरा राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय में आयोजित राज्य स्तरीय मॉडल प्रदर्शनी के दौरान नन्हे-मुन्ने बच्चों की कल्पनाएं परवान चढ़ती नजर आईं. कई बच्चों के मॉडल नेशनल लेवल के लिए चुने गए. इनमें डूंगरपुर की प्रियांशी कलाल का मॉडल भी शामिल है. उन्होंने इस मॉडल को अपने परिवार के लोगों के साथ वास्तविक कल पुर्जों के साथ धरातल पर उतारा, जो काफी सफल रहा.
बच्चे को नीचे खिसकने से रोकेगा प्रियांशी का मॉडलः खासबात यह है कि इस मॉडल को सरकार द्वारा सहायता मिल जाए तो बोरवेल में गिरने वाले बच्चों को बड़े ही आसान तरीके से बाहर निकाला जा सकेगा. फिलहाल इस प्रकार के मामलों में गड्ढा खोदने के अलावा कोई विकल्प नहीं है. इस पूरे प्रोसेस में काफी समय जाया हो जाता है और तब तक बच्चे की सांसो को रोके रखना मुश्किल होता है. प्रियांशी के मॉडल में न केवल बच्चे को और नीचे खिसकने से रोका जा सकेगा बल्कि ग्रेबर के जरिए बहुत कम समय में बाहर निकाला जा सकेगा. दसवीं कक्षा की परीक्षा देने के साथ ही प्रियांशी स्टेट लेवल के इस प्रदर्शनी की तैयारियों में जुट गई थीं.
महज हजारों में बच सकती है जानः 17 वर्षीय प्रियांशी के प्रोजेक्ट में मूल रूप से घर के आस पास पाए जाने वाले कलपुर्जे का ही इस्तेमाल किया गया है. इसमें सबसे अधिक कारगर कार में काम आने वाले एयर बैग और ग्रैबर है. इसके अलावा एक पावर हाउस जिसे मौके पर ही क्रिएट किया जा सकता है. पावर हाउस के जरिए बोरवेल में रोशनी की व्यवस्था के साथ कैमरा आदि कनेक्ट रखे जाते हैं. इसके अलावा एयर बैग को हवा से भरने के लिए एक एयर पंप की भी महत्वपूर्ण भूमिका रहती है.
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सबसे पहले रोशनी और कैमराः अपने इस प्रोजेक्ट में प्रियांशी ने बकायदा प्रैक्टिकल दिखाते हुए समझाया कि यह किस प्रकार काम करता है. सबसे पहले पावर जंक्शन से संबंधित बोरवेल में रोशनी के साथ कैमरा पहुंचाया जाता है ताकि बच्चा कितनी गहराई में उतरा है, उसकी वास्तविकता सामने आ जाए. उसके बाद एक एयर बैलून बोरवेल में खिसकाया जाता है. जब एयर बलून बच्चे के नीचे तक पहुंच जाता है तो एयर पंप कर उसे फुला दिया जाता है ताकि बच्चा और नीचे नहीं खिसके क्योंकि नीचे एयर बैलून का सपोर्ट होगा. उसके बाद ग्रैबर अपना काम करेगा. यह ग्रेबर बच्चे को कमर से पकड़ेगा और महज कुछ समय में ही उसे बाहर खींच लाएगा.
सबसे अधिक राजस्थान में होते हैं हादसेः प्रियांशी द्वारा एक चार्ट भी डिस्प्ले किया गया. जिसमें बताया गया कि हमारे देश में सबसे अधिक बोरवेल में गिरने के हादसे कहां होते हैं. इनमें 15% के साथ पर राजस्थान टॉप पर है. जबकि उसके बाद 13% के साथ आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, हरियाणा, पंजाब अभी आते हैं.
लाखों रुपए का खर्चा और जान बचना भी मुश्किलः इस प्रकार के हादसे के दौरान कई बार सेना की मदद लेनी पड़ती है. पहले यह पता लगाया जाता है कि बच्चा बोरवेल में कितनी गहराई पर अटका हुआ है. उसके आधार पर उसके पैरेलल गड्ढा खोदा जाता है. जिसमें 1 से 2 दिन भी लग जाते हैं. तब तक संबंधित बच्चे की जान जाने का खतरा बना रहता है. इस पूरे प्रोसेस में लाखों रुपए खर्च होते हैं. जबकि प्रियांशी के इस प्रोजेक्ट के अनुसार काम किया जाए तो अधिकतम 10,000 खर्च बैठता है.
परिवार और प्रिंसिपल का मिला साथः इस प्रोजेक्ट को तैयार करने में प्रियांशी को अपने पिता सरकारी स्कूल के प्रिंसिपल डॉ मोहनलाल कलाल और माता जो कि एक निजी स्कूल की प्रिंसिपल है, के साथ उसकी स्कूल की प्रिंसिपल का भी फुल सपोर्ट मिला. तकनीक से लेकर आर्थिक हर प्रकार से सपोर्ट के चलते ही वह यह अनूठा प्रोजेक्ट तैयार कर पाई. उसका कहना है कि सरकार यदि आर्थिक और तकनीकी मदद के लिए तैयार हो तो वह पूरे प्रोजेक्ट को कंप्लीट कर सौंप सकती है.