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राजस्थान में 'रेगिस्तान के जहाज' की संख्या 20 साल में 60 फीसदी घटी...ये हैं कारण

राजस्थान में परिवहन के साधनों के बढ़ने से ऊंटों की संख्या में लगातार गिरावत आती जा रही है. रेगिस्तान में सड़कों का विकास होने के बाद अब पशुपालकों का समय बचने लगा है. जिसके चलते अब उनको ऊंटों का पालन-पोशण करना कही से भी के लिए फायदेमंद नहीं है. इसी कारण की वजह से ऊंटों की संख्या कम होती जा रही है.

रेगिस्तान के जहाज की संख्या में गिरावट
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Published : Mar 11, 2019, 2:24 PM IST

बीकानेर. राजस्थान का जहाज कहलाने वाले ऊंटों की संख्या में लगातार गिरावट आती ही जा रही है. रेगिस्तान के एकमात्र साधन के कम होने का विषय गंभीर होता नजर आ रहा है. आसानी से लोगों के घरों में देखे जाने वाला यह पशु अब काफी कम नजर आने वाले पशुओं की श्रेणी में आने लगा है.

राजस्थान के मरुस्थल में कोई भी साधन एक स्थान से दूसरे स्थान पर आवागमन करने के लिए सक्षम नहीं है, लेकिन ऊंट एकमात्र ऐसा जानवर है जो रेगिस्तान में आसानी से आवागमन कर सकता है और बिना पानी के कई दिनों तक जीवित रह सकता है. ऐसे में उस समय राजस्थान के रेगिस्तानी इलाकों के आस-पास रहने वाले लोगों के घरों में आसानी से देखा जा सकता था, लेकिन धीरे-धीरे अब यह पशु अब कम होते जा रहे हैं.

रेगिस्तान के जहाज की संख्या में गिरावट

दरअसल, ऊंटों की जनसंख्या कम होने का सबसे बड़ा कारण सुदूर गांवों तक सड़कों पर जाल बिछना और परिवहन के साधन का बढ़ना रहा है. पहले रेगिस्तान में परिवहन के साधन के रूप में उनका उपयोग किया जाता था. यदि बात की जाए पशु गणना के आंकड़ों की तो पिछले 20 सालों में ऊंटों की कुल जनसंख्या में 60 फीसदी की गिरावट आई है. पशु गणना के आंकड़ों के मुताबिक 1992 में देशभर में कुल 10 लाख ऊंट थे. जो अब 20 सालों में घटकर महज चार लाख पर आ गए हैं. देश में ऊंटों की कुल आबादी का 80 फीसदी राजस्थान में पाया जाता है. उसके बाद गुजरात में सात फीसदी ऊंट पाए जाते हैं. इनमें भी सीमा सुरक्षा बल का बॉर्डर पर ऊंट एक बड़े सहयोगी के रूप में काम आता है.

वहीं, पशु वैज्ञानिक और वल्लभनगर वेटेरनरी कॉलेज के डीन प्रो. आर.के.धूड़िया का काहना है कि रेगिस्तान में सड़के बन गई हैं. वहीं, परिवहन के साधनों की उपलब्धता होने के बाद अब समय की बचत होने लगी है. जिससे लोग उन साधनों का प्रयोग करने को ही प्राथमिकता देते हैं. ऐसे में अब ऊंट को पालना पशुपालकों के लिए फायदे का सौदा नहीं रहा, क्योंकि ऊंट का पाल-पोशण करना पशुपालकों के लिए कमाई का साधन नहीं है. साथ ही उनको पालने में हर रोज खर्चा भी होता है. ऐसे में इस कारण अब ऊंट की जनसंख्या में कमी होती जा रही है.

बीकानेर. राजस्थान का जहाज कहलाने वाले ऊंटों की संख्या में लगातार गिरावट आती ही जा रही है. रेगिस्तान के एकमात्र साधन के कम होने का विषय गंभीर होता नजर आ रहा है. आसानी से लोगों के घरों में देखे जाने वाला यह पशु अब काफी कम नजर आने वाले पशुओं की श्रेणी में आने लगा है.

राजस्थान के मरुस्थल में कोई भी साधन एक स्थान से दूसरे स्थान पर आवागमन करने के लिए सक्षम नहीं है, लेकिन ऊंट एकमात्र ऐसा जानवर है जो रेगिस्तान में आसानी से आवागमन कर सकता है और बिना पानी के कई दिनों तक जीवित रह सकता है. ऐसे में उस समय राजस्थान के रेगिस्तानी इलाकों के आस-पास रहने वाले लोगों के घरों में आसानी से देखा जा सकता था, लेकिन धीरे-धीरे अब यह पशु अब कम होते जा रहे हैं.

रेगिस्तान के जहाज की संख्या में गिरावट

दरअसल, ऊंटों की जनसंख्या कम होने का सबसे बड़ा कारण सुदूर गांवों तक सड़कों पर जाल बिछना और परिवहन के साधन का बढ़ना रहा है. पहले रेगिस्तान में परिवहन के साधन के रूप में उनका उपयोग किया जाता था. यदि बात की जाए पशु गणना के आंकड़ों की तो पिछले 20 सालों में ऊंटों की कुल जनसंख्या में 60 फीसदी की गिरावट आई है. पशु गणना के आंकड़ों के मुताबिक 1992 में देशभर में कुल 10 लाख ऊंट थे. जो अब 20 सालों में घटकर महज चार लाख पर आ गए हैं. देश में ऊंटों की कुल आबादी का 80 फीसदी राजस्थान में पाया जाता है. उसके बाद गुजरात में सात फीसदी ऊंट पाए जाते हैं. इनमें भी सीमा सुरक्षा बल का बॉर्डर पर ऊंट एक बड़े सहयोगी के रूप में काम आता है.

वहीं, पशु वैज्ञानिक और वल्लभनगर वेटेरनरी कॉलेज के डीन प्रो. आर.के.धूड़िया का काहना है कि रेगिस्तान में सड़के बन गई हैं. वहीं, परिवहन के साधनों की उपलब्धता होने के बाद अब समय की बचत होने लगी है. जिससे लोग उन साधनों का प्रयोग करने को ही प्राथमिकता देते हैं. ऐसे में अब ऊंट को पालना पशुपालकों के लिए फायदे का सौदा नहीं रहा, क्योंकि ऊंट का पाल-पोशण करना पशुपालकों के लिए कमाई का साधन नहीं है. साथ ही उनको पालने में हर रोज खर्चा भी होता है. ऐसे में इस कारण अब ऊंट की जनसंख्या में कमी होती जा रही है.

Intro:बीकानेर। बचपन में हमने किताबों में पढ़ा था कि ऊंट को रेगिस्तान का जहाज कहा जाता है। इसका सबसे बड़ा कारण था की राजस्थान के मरुस्थल में कोई भी साधन एक स्थान से दूसरे स्थान पर आवागमन करने के लिए सक्षम नहीं था लेकिन एकमात्र ऐसा जानवर है जो रेगिस्तान में आसानी से आवागमन कर सकता है और बिना पानी के कई दिनों तक रह सकता है। ऐसे में उस समय राजस्थान के रेगिस्तानी इलाकों के आसपास रहने वाले लोगों के घरों में आसानी से देखा जा सकता था लेकिन धीरे-धीरे अब कम होते जा रहे हैं बात करें पशु गणना के आंकड़ों की तो पिछले 20 सालों में ऊंटों की कुल जनसंख्या में 60 फ़ीसदी की गिरावट देखने में आई है पशु गणना के आंकड़ों के मुताबिक 1992 में देशभर में कुल 10 लाख ऊंट थे जो 20 सालों में घटकर महज चार लाख पर आ गए हैं। जिसमें भी देश की कुल आबादी का 80 फीसदी राजस्थान में पाए जाते है। उसके बाद गुजरात में 7 फीसदी ऊंट पाए जाते है। इनमें भी सीमा सुरक्षा बल का बॉर्डर पर ऊंट एक बड़ा सहयोगी के रुप में है।


Body:दरअसल ऊंटों की जनसंख्या कम होने का सबसे बड़ा कारण सुदूर गांवों तक सड़कों का जाल बिछना और परिवहन के साधन का बढ़ना रहा है पहले जहां रेगिस्तान में परिवहन के साधन के रूप में का उपयोग किया जाता था। पशु वैज्ञानिक और वल्लभनगर वेटेरनरी कॉलेज के डीन प्रो आर के धूड़िया कहते है कि रेगिस्तान में सड़क का बन जाना और परिवहन के साधनों की उपलब्धता होने के साथ ही समय की भी बचत होना है। ऐसे में अब ऊंट को पालना पशुपालकों के लिए फायदे का सौदा नहीं रहा क्योंकि अब ऊंट को पालकर पशुपालकों कोई कमाई नहीं होती और साथ ही उन को पालने में हर रोज खर्चा भी होता है। ऐसे में इस कारण अब ऊंट की जनसंख्या में कमी हो रही है।


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