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City Lifeline: भुजिया के तीखेपन और रसगुल्ले की मिठास ने कारोबार को दी रफ्तार, 7 हजार करोड़ का है टर्नओवर

बीकानेर का नाम पूरी दुनिया में जाना जाता है. इसका सबसे बड़ा कारण यहां की सांस्कृतिक विरासत और भुजिया का तीखापन व रसगुल्ले की मिठास (Bikaneri Bhujia and Rasgulla) है. यहां आने वाला हर सैलानी भुजिया और रसगुल्ले का जायका लिए बिना नहीं जाता. रियासतकाल में 1877 में शुरू हुआ ये कारोबार आज शिखर पर परचम लहरा रहा है. बीकानेर की आर्थिक धुरी कही जाने वाली भुजिया और रसगुल्ला कारोबार की वर्तमान में करीब 7 हजार करोड़ का टर्न ओवर (Bikaner Turnover) है.

Bikaneri Bhujia and Rasgulla
बीकानेर भुजिया रसगुल्ला
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Published : Sep 26, 2022, 10:44 AM IST

अरविंद व्यास-बीकानेर. भारत-पाकिस्तान के बॉर्डर से लगता हुआ शहर बीकानेर यूं तो अपनी सांस्कृतिक विरासत और स्थापत्य कला के लिए देश-विदेश के पटल पर खास पहचान रखता है. लेकिन इसके साथ ही ये शहर अपनी मिठास और तीखेपन के लिए भी विशेष रूप से याद (Bikaneri Bhujia and Rasgulla) किया जाता है. देश के कोने-कोने में बीकानेरी स्वाद की चर्चा होना आम है. यहां के स्वादिष्ट रसगुल्ले और भुजिया की ख्याति देश के सीमाओं से परे विदेश की धरती पर भी बनाई है. करीब 125 साल पहले राजशाही के समय बनना शुरू हुआ भुजिया और रसगुल्ले का कारोबार आज 7 हजार करोड़ के टर्नओवर (Bikaner Turnover) तक पहुंच गया है.

करीब 550 साल पुराने शहर बीकानेर में हर साल देश-विदेश से बड़ी संख्या में सैलानी आते हैं. यहां आने के वाले सैलानी धोरों की धरा के साथ ही यहां की हवेलियों और स्थापत्य कला को देखकर मंत्रमुग्ध हो जाते हैं. यहां आने वाला हर सैलानी बीकानेर के रसगुल्ला और भुजिया के जायके (Bikaneri Bhujia and Rasgulla) से बिना जुड़े नहीं जाता. भुजिया और रसगुल्ला बीकानेर की आर्थिक रूप से मुख्य धुरी है. भुजिया और रसगुल्ला के साथ ही यहां के पापड़ की भी अपनी ही बात है.

7 हजार करोड़ का है टर्नओवर

पढ़ें- City Lifeline: समय के साथ बढ़ती गई गुलाबी नगरी की रंगत, पर्यटन के क्षेत्र में विदेशों तक में है अलग पहचान

राजाशाही के समय 1877 में हुई शुरुआतः बीकानेर रियासत में तत्कालीन महाराजा डूंगर सिंह के कार्यकाल में 1877 में बीकानेरी भुजिया नमकीन की शुरुआत हुई थी. उस समय बनने वाला बीकानेरी भुजिया केवल बीकानेर तक ही सीमित रहा. लेकिन धीरे-धीरे बीकानेर के लोग देश के अलग-अलग हिस्सों में कामकाज के लिए बसते गए और इसी के साथ ही बीकानेर का भुजिया देश की सीमाओं से होता हुआ विदेशों तक पहुंच गया.

5000 करोड़ से ज्यादा का कारोबारः भुजिया और रसगुल्ला कारोबारी ऋषिमोहन जोशी ने बताया कि बीकानेर में तकरीबन 500 से ज्यादा भुजिया कारोबार की यूनिट (Bikaneri Bhujia business) है. जिनमें करीब 5000 करोड़ का सालाना कारोबार (Turnover of Bikaner) होता है. औबीकानेर के साथ ही देशभर और विदेशों में भी इसकी खपत है. वहीं बीकानेरी रसगुल्ला की अगर बात की जाए तो 2 हजार करोड़ से ज्यादा का सालाना कारोबार बीकानेरी रसगुल्ला का माना जाता है.

Bikaneri Bhujia and Rasgulla
भुजिया और रसगुल्ले ने दिलाई पहचान

पढ़ें- City Lifeline भीलवाड़ा में हर साल बनता है 120 करोड़ मीटर कपड़ा, 23 हजार करोड़ का टर्नओवर

हवा पानी बड़ा कारणः रसगुल्ले का बीकानेर में बड़ी मात्रा में उत्पादन होता है. इसका एक कारण यहां दूध का उत्पादन ज्यादा होना है. साथ ही भुजिया का उत्पादन मोठ से होता है और मोठ की दाल से ही भुजिया बनता है. लेकिन बीकानेर के भुजिया का स्वाद कहीं ओर नहीं मिलता. इसके पीछे मुख्य कारण यहां का पानी और वातावरण है. यहां के वातावरण की नमी बीकानेरी भुजिया को ब्रांड बनाने में बड़ा सहायक साबित हुई.

सरकारी स्तर पर नहीं कोई खास सहयोगः कारोबारी ऋषिमोहन जोशी ने बताया कि बीकानेरी भुजिया और रसगुल्ला का नाम और कारोबार (Bikaneri Rasgulla business) है जितना बड़ा है, उसके लिहाज से सरकारी स्तर पर सहयोग नहीं है. रसगुल्ला और भुजिया बीकानेर के ब्रांड हैं. यहां के व्यापारियों की बदौलत ही यह स्थिति है. सरकारी स्तर पर इस इंडस्ट्री को प्रमोट करने जैसा कोई विशेष कदम नहीं उठाया गया.

Bikaneri Bhujia and Rasgulla
550 साल पुराना बीकानेर शहर

पढ़ें- City Lifeline लालाजी की लालटेन से घूमा हैंडीक्राफ्ट का पहिया, 3 हजार करोड़ सालाना की पकड़ी रफ्तार

रसगुल्ला की कम भुजिया की ज्यादा छोटी इकाइयांः रसगुल्ला गाय के दूध से बनता है और इसको लेकर बीकानेर में बड़े स्तर पर काम करने वाले औद्योगिक इकाइयां हैं. लेकिन भुजिया बनाने के लिए रसगुल्ला के मुकाबले यूनिट स्थापित करने में खर्चा कम आता है. साथ ही जगह भी कम लगती है. यही कारण है कि बीकानेर में बड़े यूनिट को छोड़ दें तो कमोबेश शहर के हर मोहल्ले में एक दो छोटी यूनिट लगी हुई है, जो शहर में भुजिया की आवश्यकताओं की पूर्ति करती है. आसपास के शहरों और राज्यों में भी आपूर्ति करती है. ये स्थानीय लोगों के रोजगार का भी एक जरिया है.

रसगुल्ले के लिए बड़ी इंडस्ट्री लगानी पड़ती है क्योंकि छोटे दुकानदार के माल की खपत तो बीकानेर शहर में ही हो जाती है. लेकिन बड़ी इंडस्ट्री पूरे देश और दुनिया में रसगुल्ले सप्लाई करती है. वहीं भुजिया की फैक्ट्री छोटे निवेश से शुरू हो जाती है. बीकानेर में कमोबेश हर मोहल्ले में एक भुजिया फैक्ट्री है. छोटी जगह में एक भट्टी लगाकर भुजिया बनाने का काम होता है और अब तो बीकानेर में घर की महिलाएं भी भुजिया बनाने का काम करती हैं. भुजिया बनाने वाली कारीगर महिला गुड्डी कहती हैं कि शादी के बाद में जब वो ससुराल आई तो पति ने यह काम सिखाया और आज वह 60 किलो भुजिया आराम से बना लेती हैं. इसके साथ ही घर का सारा काम भी करती हैं.

Bikaneri Bhujia and Rasgulla
बीकानेर भुजिया

पढ़ें- City Lifeline अजमेर की आर्थिक रीढ़ है किशनगढ़ मार्बल मंडी, हर दिन 15 करोड़ का होता है कारोबार

1 लाख लोगों को मिलता है रोजगारः सीधे तौर पर इस इंडस्ट्री में काम करने वालों की संख्या भले ही ज्यादा नहीं हो. लेकिन फिर भी बीकानेर में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से करीब एक लाख लोग, यहां की भुजिया और रसगुल्ला की यूनिट से सीधे प्रभावित होते हैं. साथ ही प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार पाते हैं. क्योंकि भुजिया यूनिट के साथ ही पापड़ और मूंगोड़ी (बड़ी) का कारोबार भी बीकानेर में अब धीरे-धीरे विस्तार पकड़ने लगा है.

दूसरी जगह बना भुजिया बीकानेर के नाम से बिकता हैः भुजिया पापड़ मैन्युफैक्चरर एसोसिएशन के अध्यक्ष वेद प्रकाश अग्रवाल कहते हैं कि बीकानेर में भुजिया बनाने की कई फैक्ट्रियां हैं लेकिन बीकानेर के नाम से देश के अलग-अलग शहरों में भी अब भुजिया बन रहा है. जबकि भौगोलिक स्तर पर यह बात भी सिद्ध है कि बीकानेर का भुजिया केवल बीकानेर में ही बना हुआ है तो वह बेहतर है. लेकिन भुजिया कारोबार को आगे बढ़ाने के लिए सरकारी स्तर पर किसी तरह का कोई प्रोत्साहन नहीं मिलता है. खुद व्यापारी अपने स्तर पर ही इस कारोबार को आगे बढ़ा रहे हैं और आज देश की अर्थव्यवस्था में भी सहयोग कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि बीकानेर से बाहर भी रसगुल्ला और भुजिया बन रहे हैं. उनमें से कई ऐसे हैं जो अपने उत्पाद पर बीकानेरी नाम लिखते हैं. ऐसे में कहीं ना कहीं बाजार में प्रतिस्पर्धा बढ़ रही है और सीधे तौर पर यह कहा जाए कि अन्य जगह पर तैयार रसगुल्ला और भुजिया बीकानेर के कारोबार पर प्रभाव डाल रहा है तो गलत नहीं होगा.

पढ़ें- City Lifeline लाल पत्थर ने तराशा धौलपुर की किस्मत, देश से लेकर विदेश में है खास रुतबा

गरीब की थाली से लेकर अमीर के स्वाद का मिश्रणः खाने में स्वादिष्ट भुजिया गरीब की थाली से लेकर अमीर के स्वाद का एक ऐसा मिश्रण है जो अपने आप में अनूठा है. व्यापारी वेद प्रकाश अग्रवाल कहते हैं कि गरीब बिना सब्जी भी रोटी के साथ एक समय भुजिया को खाकर काम निकाल सकता है. वहीं अमीर लोग स्वाद के लिए भुजिया को खाते हैं. व्यापारी ऋषि मोहन जोशी कहते हैं कि रसगुल्ला,भुजिया और पापड़ बीकानेर की असली पहचान है. मांगलिक आयोजन में जहां रसगुल्ला जरूरी है वहीं मिठाई के साथ नमकीन के रूप में भुजिया थाली में जरूर होता है.

Bikaneri Bhujia and Rasgulla
बीकानेर रसगुल्ला

पढ़ें- City Lifeline: कोटा की रीढ़ है 4000 करोड़ की कोचिंग इंडस्ट्री, होम ट्यूशन से हुई थी शुरुआत...आज मेडिकल, इंजीनियरिंग में है सिरमोर

भुजिया में बीकानेर नाम ही काफी हैः रसगुल्ला और नमकीन के कारोबारी रवि पुरोहित कहते हैं कि केवल भुजिया कोई नहीं कहता. बीकानेरी भुजिया एक पहचान है और भले ही बीकानेर से बाहर भुजिया कहीं भी बने लेकिन वे लोग भी अपने माल की बिक्री के लिए बीकानेर के नाम का इस्तेमाल करते हैं. बीकानेर को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने में मिठाई के रूप में जहां रसगुल्ला और नमकीन के रूप में भुजिया का एक अलग स्थान है.

पढ़ें-City Lifeline अजमेर के आर्थिक विकास में रेलवे का है बड़ा योगदान, जानिए कैसे!

पहचान बड़ी विकास में पीछेः ऋषिमोहन ने बताया कि बीकानेर को भुजिया और रसगुल्ला ने एक पहचान दी है. लेकिन सरकारी उदासीनता और सिस्टम में खामियां इस इंडस्ट्री को उस रूप में बीकानेर में स्थापित नहीं कर पाई जो होनी चाहिए थी. साथ ही ना ही विकास की वह आधारभूत सुविधाएं इंडस्ट्री को मिल पाई. इस व्यवसाय को और अधिक प्रोत्साहित करने के लिए सरकारी स्तर पर भी किसी विशेष योजना के तहत पैकेज की जरूरत है. जिससे संगठित उद्योग के रूप में मान्यता मिलने से यहां के व्यापारियों और इस कारोबार में जुड़े श्रमिकों को भी इसका लाभ मिले.

अरविंद व्यास-बीकानेर. भारत-पाकिस्तान के बॉर्डर से लगता हुआ शहर बीकानेर यूं तो अपनी सांस्कृतिक विरासत और स्थापत्य कला के लिए देश-विदेश के पटल पर खास पहचान रखता है. लेकिन इसके साथ ही ये शहर अपनी मिठास और तीखेपन के लिए भी विशेष रूप से याद (Bikaneri Bhujia and Rasgulla) किया जाता है. देश के कोने-कोने में बीकानेरी स्वाद की चर्चा होना आम है. यहां के स्वादिष्ट रसगुल्ले और भुजिया की ख्याति देश के सीमाओं से परे विदेश की धरती पर भी बनाई है. करीब 125 साल पहले राजशाही के समय बनना शुरू हुआ भुजिया और रसगुल्ले का कारोबार आज 7 हजार करोड़ के टर्नओवर (Bikaner Turnover) तक पहुंच गया है.

करीब 550 साल पुराने शहर बीकानेर में हर साल देश-विदेश से बड़ी संख्या में सैलानी आते हैं. यहां आने के वाले सैलानी धोरों की धरा के साथ ही यहां की हवेलियों और स्थापत्य कला को देखकर मंत्रमुग्ध हो जाते हैं. यहां आने वाला हर सैलानी बीकानेर के रसगुल्ला और भुजिया के जायके (Bikaneri Bhujia and Rasgulla) से बिना जुड़े नहीं जाता. भुजिया और रसगुल्ला बीकानेर की आर्थिक रूप से मुख्य धुरी है. भुजिया और रसगुल्ला के साथ ही यहां के पापड़ की भी अपनी ही बात है.

7 हजार करोड़ का है टर्नओवर

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राजाशाही के समय 1877 में हुई शुरुआतः बीकानेर रियासत में तत्कालीन महाराजा डूंगर सिंह के कार्यकाल में 1877 में बीकानेरी भुजिया नमकीन की शुरुआत हुई थी. उस समय बनने वाला बीकानेरी भुजिया केवल बीकानेर तक ही सीमित रहा. लेकिन धीरे-धीरे बीकानेर के लोग देश के अलग-अलग हिस्सों में कामकाज के लिए बसते गए और इसी के साथ ही बीकानेर का भुजिया देश की सीमाओं से होता हुआ विदेशों तक पहुंच गया.

5000 करोड़ से ज्यादा का कारोबारः भुजिया और रसगुल्ला कारोबारी ऋषिमोहन जोशी ने बताया कि बीकानेर में तकरीबन 500 से ज्यादा भुजिया कारोबार की यूनिट (Bikaneri Bhujia business) है. जिनमें करीब 5000 करोड़ का सालाना कारोबार (Turnover of Bikaner) होता है. औबीकानेर के साथ ही देशभर और विदेशों में भी इसकी खपत है. वहीं बीकानेरी रसगुल्ला की अगर बात की जाए तो 2 हजार करोड़ से ज्यादा का सालाना कारोबार बीकानेरी रसगुल्ला का माना जाता है.

Bikaneri Bhujia and Rasgulla
भुजिया और रसगुल्ले ने दिलाई पहचान

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हवा पानी बड़ा कारणः रसगुल्ले का बीकानेर में बड़ी मात्रा में उत्पादन होता है. इसका एक कारण यहां दूध का उत्पादन ज्यादा होना है. साथ ही भुजिया का उत्पादन मोठ से होता है और मोठ की दाल से ही भुजिया बनता है. लेकिन बीकानेर के भुजिया का स्वाद कहीं ओर नहीं मिलता. इसके पीछे मुख्य कारण यहां का पानी और वातावरण है. यहां के वातावरण की नमी बीकानेरी भुजिया को ब्रांड बनाने में बड़ा सहायक साबित हुई.

सरकारी स्तर पर नहीं कोई खास सहयोगः कारोबारी ऋषिमोहन जोशी ने बताया कि बीकानेरी भुजिया और रसगुल्ला का नाम और कारोबार (Bikaneri Rasgulla business) है जितना बड़ा है, उसके लिहाज से सरकारी स्तर पर सहयोग नहीं है. रसगुल्ला और भुजिया बीकानेर के ब्रांड हैं. यहां के व्यापारियों की बदौलत ही यह स्थिति है. सरकारी स्तर पर इस इंडस्ट्री को प्रमोट करने जैसा कोई विशेष कदम नहीं उठाया गया.

Bikaneri Bhujia and Rasgulla
550 साल पुराना बीकानेर शहर

पढ़ें- City Lifeline लालाजी की लालटेन से घूमा हैंडीक्राफ्ट का पहिया, 3 हजार करोड़ सालाना की पकड़ी रफ्तार

रसगुल्ला की कम भुजिया की ज्यादा छोटी इकाइयांः रसगुल्ला गाय के दूध से बनता है और इसको लेकर बीकानेर में बड़े स्तर पर काम करने वाले औद्योगिक इकाइयां हैं. लेकिन भुजिया बनाने के लिए रसगुल्ला के मुकाबले यूनिट स्थापित करने में खर्चा कम आता है. साथ ही जगह भी कम लगती है. यही कारण है कि बीकानेर में बड़े यूनिट को छोड़ दें तो कमोबेश शहर के हर मोहल्ले में एक दो छोटी यूनिट लगी हुई है, जो शहर में भुजिया की आवश्यकताओं की पूर्ति करती है. आसपास के शहरों और राज्यों में भी आपूर्ति करती है. ये स्थानीय लोगों के रोजगार का भी एक जरिया है.

रसगुल्ले के लिए बड़ी इंडस्ट्री लगानी पड़ती है क्योंकि छोटे दुकानदार के माल की खपत तो बीकानेर शहर में ही हो जाती है. लेकिन बड़ी इंडस्ट्री पूरे देश और दुनिया में रसगुल्ले सप्लाई करती है. वहीं भुजिया की फैक्ट्री छोटे निवेश से शुरू हो जाती है. बीकानेर में कमोबेश हर मोहल्ले में एक भुजिया फैक्ट्री है. छोटी जगह में एक भट्टी लगाकर भुजिया बनाने का काम होता है और अब तो बीकानेर में घर की महिलाएं भी भुजिया बनाने का काम करती हैं. भुजिया बनाने वाली कारीगर महिला गुड्डी कहती हैं कि शादी के बाद में जब वो ससुराल आई तो पति ने यह काम सिखाया और आज वह 60 किलो भुजिया आराम से बना लेती हैं. इसके साथ ही घर का सारा काम भी करती हैं.

Bikaneri Bhujia and Rasgulla
बीकानेर भुजिया

पढ़ें- City Lifeline अजमेर की आर्थिक रीढ़ है किशनगढ़ मार्बल मंडी, हर दिन 15 करोड़ का होता है कारोबार

1 लाख लोगों को मिलता है रोजगारः सीधे तौर पर इस इंडस्ट्री में काम करने वालों की संख्या भले ही ज्यादा नहीं हो. लेकिन फिर भी बीकानेर में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से करीब एक लाख लोग, यहां की भुजिया और रसगुल्ला की यूनिट से सीधे प्रभावित होते हैं. साथ ही प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार पाते हैं. क्योंकि भुजिया यूनिट के साथ ही पापड़ और मूंगोड़ी (बड़ी) का कारोबार भी बीकानेर में अब धीरे-धीरे विस्तार पकड़ने लगा है.

दूसरी जगह बना भुजिया बीकानेर के नाम से बिकता हैः भुजिया पापड़ मैन्युफैक्चरर एसोसिएशन के अध्यक्ष वेद प्रकाश अग्रवाल कहते हैं कि बीकानेर में भुजिया बनाने की कई फैक्ट्रियां हैं लेकिन बीकानेर के नाम से देश के अलग-अलग शहरों में भी अब भुजिया बन रहा है. जबकि भौगोलिक स्तर पर यह बात भी सिद्ध है कि बीकानेर का भुजिया केवल बीकानेर में ही बना हुआ है तो वह बेहतर है. लेकिन भुजिया कारोबार को आगे बढ़ाने के लिए सरकारी स्तर पर किसी तरह का कोई प्रोत्साहन नहीं मिलता है. खुद व्यापारी अपने स्तर पर ही इस कारोबार को आगे बढ़ा रहे हैं और आज देश की अर्थव्यवस्था में भी सहयोग कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि बीकानेर से बाहर भी रसगुल्ला और भुजिया बन रहे हैं. उनमें से कई ऐसे हैं जो अपने उत्पाद पर बीकानेरी नाम लिखते हैं. ऐसे में कहीं ना कहीं बाजार में प्रतिस्पर्धा बढ़ रही है और सीधे तौर पर यह कहा जाए कि अन्य जगह पर तैयार रसगुल्ला और भुजिया बीकानेर के कारोबार पर प्रभाव डाल रहा है तो गलत नहीं होगा.

पढ़ें- City Lifeline लाल पत्थर ने तराशा धौलपुर की किस्मत, देश से लेकर विदेश में है खास रुतबा

गरीब की थाली से लेकर अमीर के स्वाद का मिश्रणः खाने में स्वादिष्ट भुजिया गरीब की थाली से लेकर अमीर के स्वाद का एक ऐसा मिश्रण है जो अपने आप में अनूठा है. व्यापारी वेद प्रकाश अग्रवाल कहते हैं कि गरीब बिना सब्जी भी रोटी के साथ एक समय भुजिया को खाकर काम निकाल सकता है. वहीं अमीर लोग स्वाद के लिए भुजिया को खाते हैं. व्यापारी ऋषि मोहन जोशी कहते हैं कि रसगुल्ला,भुजिया और पापड़ बीकानेर की असली पहचान है. मांगलिक आयोजन में जहां रसगुल्ला जरूरी है वहीं मिठाई के साथ नमकीन के रूप में भुजिया थाली में जरूर होता है.

Bikaneri Bhujia and Rasgulla
बीकानेर रसगुल्ला

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भुजिया में बीकानेर नाम ही काफी हैः रसगुल्ला और नमकीन के कारोबारी रवि पुरोहित कहते हैं कि केवल भुजिया कोई नहीं कहता. बीकानेरी भुजिया एक पहचान है और भले ही बीकानेर से बाहर भुजिया कहीं भी बने लेकिन वे लोग भी अपने माल की बिक्री के लिए बीकानेर के नाम का इस्तेमाल करते हैं. बीकानेर को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने में मिठाई के रूप में जहां रसगुल्ला और नमकीन के रूप में भुजिया का एक अलग स्थान है.

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पहचान बड़ी विकास में पीछेः ऋषिमोहन ने बताया कि बीकानेर को भुजिया और रसगुल्ला ने एक पहचान दी है. लेकिन सरकारी उदासीनता और सिस्टम में खामियां इस इंडस्ट्री को उस रूप में बीकानेर में स्थापित नहीं कर पाई जो होनी चाहिए थी. साथ ही ना ही विकास की वह आधारभूत सुविधाएं इंडस्ट्री को मिल पाई. इस व्यवसाय को और अधिक प्रोत्साहित करने के लिए सरकारी स्तर पर भी किसी विशेष योजना के तहत पैकेज की जरूरत है. जिससे संगठित उद्योग के रूप में मान्यता मिलने से यहां के व्यापारियों और इस कारोबार में जुड़े श्रमिकों को भी इसका लाभ मिले.

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