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VIDEO: भीलवाड़ा में 406 पुरानी अनोखी परंपरा...रंगतेरस के दिन झूमे नाहर कलाकार

भीलवाड़ा में 16वीं शताब्दी की एक परंपरा आज भी जीवित है. यहां नाहर नृत्य की परंपरा आज भी बदस्तूर जारी है.

नाहर नृत्य करते कलाकार.
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Published : Apr 4, 2019, 4:52 AM IST

भीलवाड़ा. राजस्थान के हर एक क्षेत्र में अलग- अलग खूबसूरत परंपराएं है. यही रंगीले प्रदेश की पहचान है. मरुभूमि होने के बावजूद यहां राजधानी के गुलाबी रंग का असर प्रदेश में दिखता है. भीलवाड़ा में 406 पुरीनी परंपरा इस बात को बल देती है.

देखें वीडियो.

दरअसल बात भीलवाड़ा के मांडल कस्बे की है. जहां 16वीं शताब्दी की एक परंपरा आज भी जीवित है. यहां के नाहर नृत्य की परंपरा का मुगल सम्राट शाहजहां के मनोरंजन के लिए सन 1614 में शुरू हुई थी. वह आज भी बदस्तूर जारी है. इस बार चुनाव के कारण नाहर नृत्य से पूर्व एक नाटक का भी मंचन किया गया. जिसके माध्यम से मतदान करने के लिए लोगों को प्रेरित किया गया.

इस नृत्य साल में एक बार किया जाता है और यह राम और राजा के सामने ही होता है. भीलवाड़ा जिले के मांडल कस्बे में 406 सालों से चली आ रही है. यहां रंगतेरस के दिन होने वाला नाहर नृत्य समारोह दिवाली से कम में महत्व नहीं है. मांडल से देश के विभिन्न हिस्सों में गए लोग आज के दिन मांडल आना नहीं भूलते हैं.

मुगल बादशाह शाहजहां के 1614 में मांडल पड़ाव के दौरान उनके मनोरंजन के लिए मृतकों के शरीर पर रोई लपेटकर शेर के रूप में शुरू हुए नाहर नृत्य की परंपरा आज भी जारी है. इस नृत्य की यह विशेषता यह है कि यह राम और राजा के सामने ही होता है. मांडल में यह नृत्य भगवान चारभुजा नाथ मंदिर के प्रांगण और कचरी मैदान पर होता है. पिछली तीन पीढ़ियों से नाहर नृत्य करने वाले कलाकारों को इस दिन का इंतजार रहता है.

आयोजन में पहुंचे मांडल एसडीएम कृष्ण गोपाल सिंह चौहान ने कहा है कि लोकसभा चुनाव में अधिक से अधिक मतदान को लेकर प्रेरित कर रहे हैं. हमने नाहर नृत्य के अवसर पर एक नाटक का मंचन किया है. जिसमें भारी संख्या में आए लोगों को अधिक से अधिक मतदान करने के लिए प्रेरित किया गया है. पूरे देश में वर्ष में एक बार होने वाले इस अनूठे नृत्य के कलाकारों ने मांडल कस्बे की सीमाएं लांघ कर देश की कई रंगमंचो पर अपनी प्रस्तुतियां दी है. वहीं आज भी मांडल के इस नाहर नृत्य के कलाकार अपने इस हुनर को जिंदा रखने की जद्दोजहद में जुटे हुए हैं.

भीलवाड़ा. राजस्थान के हर एक क्षेत्र में अलग- अलग खूबसूरत परंपराएं है. यही रंगीले प्रदेश की पहचान है. मरुभूमि होने के बावजूद यहां राजधानी के गुलाबी रंग का असर प्रदेश में दिखता है. भीलवाड़ा में 406 पुरीनी परंपरा इस बात को बल देती है.

देखें वीडियो.

दरअसल बात भीलवाड़ा के मांडल कस्बे की है. जहां 16वीं शताब्दी की एक परंपरा आज भी जीवित है. यहां के नाहर नृत्य की परंपरा का मुगल सम्राट शाहजहां के मनोरंजन के लिए सन 1614 में शुरू हुई थी. वह आज भी बदस्तूर जारी है. इस बार चुनाव के कारण नाहर नृत्य से पूर्व एक नाटक का भी मंचन किया गया. जिसके माध्यम से मतदान करने के लिए लोगों को प्रेरित किया गया.

इस नृत्य साल में एक बार किया जाता है और यह राम और राजा के सामने ही होता है. भीलवाड़ा जिले के मांडल कस्बे में 406 सालों से चली आ रही है. यहां रंगतेरस के दिन होने वाला नाहर नृत्य समारोह दिवाली से कम में महत्व नहीं है. मांडल से देश के विभिन्न हिस्सों में गए लोग आज के दिन मांडल आना नहीं भूलते हैं.

मुगल बादशाह शाहजहां के 1614 में मांडल पड़ाव के दौरान उनके मनोरंजन के लिए मृतकों के शरीर पर रोई लपेटकर शेर के रूप में शुरू हुए नाहर नृत्य की परंपरा आज भी जारी है. इस नृत्य की यह विशेषता यह है कि यह राम और राजा के सामने ही होता है. मांडल में यह नृत्य भगवान चारभुजा नाथ मंदिर के प्रांगण और कचरी मैदान पर होता है. पिछली तीन पीढ़ियों से नाहर नृत्य करने वाले कलाकारों को इस दिन का इंतजार रहता है.

आयोजन में पहुंचे मांडल एसडीएम कृष्ण गोपाल सिंह चौहान ने कहा है कि लोकसभा चुनाव में अधिक से अधिक मतदान को लेकर प्रेरित कर रहे हैं. हमने नाहर नृत्य के अवसर पर एक नाटक का मंचन किया है. जिसमें भारी संख्या में आए लोगों को अधिक से अधिक मतदान करने के लिए प्रेरित किया गया है. पूरे देश में वर्ष में एक बार होने वाले इस अनूठे नृत्य के कलाकारों ने मांडल कस्बे की सीमाएं लांघ कर देश की कई रंगमंचो पर अपनी प्रस्तुतियां दी है. वहीं आज भी मांडल के इस नाहर नृत्य के कलाकार अपने इस हुनर को जिंदा रखने की जद्दोजहद में जुटे हुए हैं.

Intro:
एक ऐसा नृत्य जो साल में एक बार राम और राजा के सामने ही होता है। जी हां हम बात कर रहे हैं भीलवाड़ा जिले के मांडल कस्बे में 406 सालों से चली आ रही नाहर नृत्य की परंपरा का मुगल सम्राट शाहजहां के मनोरंजन के लिए सन 1614 में शुरू हुई नाहर नृत्य की परंपरा आज भी बेदस्तूर जारी है । इस बार चुनाव के कारण नाहर नृत्य से पूर्व एक नाटक का भी मंचन किया गया । जिसमें मतदान करने के लिए वहां उपस्थित लोगों को प्रेरित किया गया।


Body:भीलवाड़ा जिले के मांडल कस्बे में रंगतेरस के दिन होने वाला नाहर नृत्य समारोह दिवाली से कम में महत्व नहीं है । मांडल से देश के विभिन्न हिस्सों में गए लोग आज के दिन मांडल आना नहीं भूलते है । मुगल बादशाह शाहजहां के 1614 में मांडल पड़ाव के दौरान उनके मनोरंजन के लिए मृतकों के शरीर पर रोई लपेटकर शेर के रूप में शुरू हुए नाहर नृत्य की परंपरा आज भी जारी है। इस नृत्य की यह विशेषता है। कि यह साल में एक बार राम और राजा के सामने ही होता है। मांडल में यह नृत्य भगवान चारभुजा नाथ मंदिर के प्रांगण और कचरी मैदान पर होता है। पिछली तीन पीढ़ियों से नाहर नृत्य करने वाले कलाकारों को इस दिन का इंतजार रहता है।

वहीं मंडल एसडीम कृष्ण गोपाल सिंह चौहान ने कहा है कि लोकसभा चुनाव में अधिक से अधिक मतदान को लेकर प्रेरित कर रहे हैं। हमने नाहर नृत्य के अवसर पर एक नाटक का मंचन किया है। जिसमें भारी संख्या में आए लोगों को अधिक से अधिक मतदान करने के लिए प्रेरित किया गया है

पूरे देश में वर्ष में एक बार होने वाले इस अनूठे नृत्य के कलाकारों ने मांडल कस्बे की सीमाएं लांघ कर देश की कई रंगमंचो पर अपनी प्रस्तुतियां दी है। मगर आज भी मांडल के इस नाहर नृत्य के कलाकार अपने इस हुनर को जिंदा रखने की जबोदजहद में जुटे हुए है।

बाइट - कालू लाल माली नाहर, नृतक
कृष्ण पाल सिंह चौहान, एसडीएम


Conclusion:
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