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महिला दिवस विशेष: महज 8वीं पास रूमादेवी ने 22 हजार महिलाओं को दिया रोजगार, जानिए कैसे?

विश्व महिला दिवस 2019 में 'नारी शक्ति अवार्ड', उसके बाद 2019 में ही 'डिजायनर ऑफ द ईयर' का अवार्ड और न जाने कितने ही अवार्ड जीत चुकी राजस्थान की रूमादेवी. जिन्होंने 75 गांवों की 22 हजार महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाया और साथ ही राजस्थान के हस्तशिल्प उत्पादों को इंटरनेशनल स्तर पर पहुंचाया है.

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8वीं पास रूमादेवी की कहानी
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Published : Mar 8, 2020, 8:03 PM IST

बाड़मेर. जिस राजस्थान में लड़कियों को पैदा होते ही मार दिया जाता था. वह राजस्थान अब समय के साथ बदल रहा है. यहां की महिलाएं रोज ऊंचाइयों के नए शिखर को छू रही हैं. रूमा देवी और उनकी ग्रामीण विकास और चेतना संस्थान ने पूरे विश्व में देश राजस्थान में बाड़मेर का नाम गर्व से ऊंचा किया है. रूमा देवी राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के हाथों से नारी शक्ति अवॉर्ड से सम्मानित हो चुकी है. हाल ही में विश्व की सबसे बड़ी यूनिवर्सिटी हावर्ड यूनिवर्सिटी में भी रूमा देवी अपना वक्तव्य देकर आई हैं.

8वीं पास रूमादेवी की कहानी

महिला दिवस पर महिलाओं के लिए जिंदगी के सफर से सफल होने की बहुत सी कहानियां आपने सुनी और देखी होंगी. लेकिन जिस कहानी से आज हम आपको रू-ब-रू करवा रहे हैं. वह नाम तो कोई नया नहीं है. लेकिन उनकी कहानियों में दिन-ब-दिन देश और विदेश के नए पुरस्कार खाते में जुड़ते जा रहे हैं. रूमा देवी ने महिला दिवस पर देश की महिलाओं के साथ अपनी जिंदगी की संघर्ष कहानी को साझा करते हुए कहा है कि हमेशा अपने इरादों पर अड़े रहे और खड़े रहे.

बचपन में खोया मां का प्यार

बाड़मेर जिले के मंगला की बेड़ी गांव में जन्मी रूमादेवी की मां का बचपन में ही निधन हो गया. मां के गुजर जाने के बाद उनके पिता ने दूसरी शादी कर ली. लगभग 17 साल की उम्र में ही रूमा की भी शादी करवा दी गई. जिस वजह से वे मात्र 8वीं तक ही पड़ पाईं.

यह भी पढे़ं- International Women's Day: कविता के जरिए राष्ट्रीय कवि नरेन्द्र दाधीच ने की कन्या भ्रूण हत्या रोकने की मांग

17 की उम्र में हुई शादी

शादी के बाद छोटी सी उम्र में ही उन्हें कई कठिनाईयों का सामना करना पड़ा. इसके बाद ही रूमा ने यह तय कर लिया कि कि पहले वे खुद को आत्मनिर्भर बनाएंगी. इसके बाद वह अपनी तरह और भी महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाएंगी. उनकी सोच थी कि घर की आर्थिक तंगी को दूर करने के लिए क्यों न ही खुद काम करके कुछ कमाया जाए.

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अवार्ड लेती हुई रूमादेवी

10 हजार महिलाओं से की शुरूआत

इसी सोच के चलते साल 2006 में गांव की 10 महिलाओं के साथ जुड़कर स्वयं सहायता समूह बनाया. समूह ने कपड़ा, धागा और प्लास्टिक के पैकेट्स खरीदकर कुशन और बैग बनाने शुरू किए. शुरुआत में दिक्कतें आईं, मगर फिर समूह के कुशन और बैगों को ग्राहक मिलने शुरू हो गए.

22 हजार महिलाओं का बनीं सहारा

कपड़े पर बारीक कारीगरी और रंगों के अद्भुत संयोजन के जरिए रूमा देवी ने सात समंदर पार तक अपने काम की पहचान बनाई है. साल 2008 में शुरू किया गया सफर आज 22 हजार महिलाओं के विशाल कारवे के रूप में दुनिया के सामने है. महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के साथ-साथ बाड़मेर राजस्थान के हस्तशिल्प उत्पादों को इंटरनेशनल स्तर पर पहुंचा दिया है. साथ ही 22 हजार महिलाओं को रोजगार भी दे रही हैं.

यह भी पढ़ें- महिला दिवस विशेष : लोकसंगीत की 'मालिनी', जिनके स्वर से लोकगीत महक उठे

रूमा देवी की संस्था में काम करने वाली हप्पी देवी बताती है कि वो बाड़मेर जिला मुख्यालय से करीब 100 किलोमीटर दूर देदूसर गांव है. पिछले कई महीनों से वे इनके साथ काम कर रही हैं. रोजगार मिल गया है और अच्छी आमदनी भी हो रही है. हप्पी देवी बताती है कि जहां वह पहले 700-800 सौ महीना कमा पाती थी, अब रूमा देवी के साथ काम करती है, तो करीबन महीने के 10 हजार तक आमदनी हो जाती है. जिससे परिवार का गुजर-बसर आराम से हो जाता है.

महिलाओं को दूर करनी होगी झिझक

रुमा देवी ने महिला दिवस पर संदेश दिया है कि महिलाएं अपने लक्ष्य से पीछे नहीं हटें. हर किसी महिला में कोई ना कोई हुनर जरूर होता है और वह हुनर दबाने की जरूरत नहीं है. उसे बाहर निकाल कर काम करने की जरूरत है. रूमा देवी हमेशा महिलाओं को लेकर यह कहती नजर आती है कि जिंदगी में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं कभी ना कभी सफलता जरूर मिलती है, क्योंकि जिंदगी में अगर घर से बाहर नहीं निकलती तो शायद आज मैं इस मुकाम पर नहीं पहुंच पाती. रूमा देवी और इनकी संस्थान की हजारों महिलाओं के संघर्ष और जज्बे ने विश्व की कई और महिलाओं को प्रेरित कर रही हैं. अब वह भी अपने हुनर तराशने और आगे बढ़ कर देश का नाम रोशन करें.

बाड़मेर. जिस राजस्थान में लड़कियों को पैदा होते ही मार दिया जाता था. वह राजस्थान अब समय के साथ बदल रहा है. यहां की महिलाएं रोज ऊंचाइयों के नए शिखर को छू रही हैं. रूमा देवी और उनकी ग्रामीण विकास और चेतना संस्थान ने पूरे विश्व में देश राजस्थान में बाड़मेर का नाम गर्व से ऊंचा किया है. रूमा देवी राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के हाथों से नारी शक्ति अवॉर्ड से सम्मानित हो चुकी है. हाल ही में विश्व की सबसे बड़ी यूनिवर्सिटी हावर्ड यूनिवर्सिटी में भी रूमा देवी अपना वक्तव्य देकर आई हैं.

8वीं पास रूमादेवी की कहानी

महिला दिवस पर महिलाओं के लिए जिंदगी के सफर से सफल होने की बहुत सी कहानियां आपने सुनी और देखी होंगी. लेकिन जिस कहानी से आज हम आपको रू-ब-रू करवा रहे हैं. वह नाम तो कोई नया नहीं है. लेकिन उनकी कहानियों में दिन-ब-दिन देश और विदेश के नए पुरस्कार खाते में जुड़ते जा रहे हैं. रूमा देवी ने महिला दिवस पर देश की महिलाओं के साथ अपनी जिंदगी की संघर्ष कहानी को साझा करते हुए कहा है कि हमेशा अपने इरादों पर अड़े रहे और खड़े रहे.

बचपन में खोया मां का प्यार

बाड़मेर जिले के मंगला की बेड़ी गांव में जन्मी रूमादेवी की मां का बचपन में ही निधन हो गया. मां के गुजर जाने के बाद उनके पिता ने दूसरी शादी कर ली. लगभग 17 साल की उम्र में ही रूमा की भी शादी करवा दी गई. जिस वजह से वे मात्र 8वीं तक ही पड़ पाईं.

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17 की उम्र में हुई शादी

शादी के बाद छोटी सी उम्र में ही उन्हें कई कठिनाईयों का सामना करना पड़ा. इसके बाद ही रूमा ने यह तय कर लिया कि कि पहले वे खुद को आत्मनिर्भर बनाएंगी. इसके बाद वह अपनी तरह और भी महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाएंगी. उनकी सोच थी कि घर की आर्थिक तंगी को दूर करने के लिए क्यों न ही खुद काम करके कुछ कमाया जाए.

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अवार्ड लेती हुई रूमादेवी

10 हजार महिलाओं से की शुरूआत

इसी सोच के चलते साल 2006 में गांव की 10 महिलाओं के साथ जुड़कर स्वयं सहायता समूह बनाया. समूह ने कपड़ा, धागा और प्लास्टिक के पैकेट्स खरीदकर कुशन और बैग बनाने शुरू किए. शुरुआत में दिक्कतें आईं, मगर फिर समूह के कुशन और बैगों को ग्राहक मिलने शुरू हो गए.

22 हजार महिलाओं का बनीं सहारा

कपड़े पर बारीक कारीगरी और रंगों के अद्भुत संयोजन के जरिए रूमा देवी ने सात समंदर पार तक अपने काम की पहचान बनाई है. साल 2008 में शुरू किया गया सफर आज 22 हजार महिलाओं के विशाल कारवे के रूप में दुनिया के सामने है. महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के साथ-साथ बाड़मेर राजस्थान के हस्तशिल्प उत्पादों को इंटरनेशनल स्तर पर पहुंचा दिया है. साथ ही 22 हजार महिलाओं को रोजगार भी दे रही हैं.

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रूमा देवी की संस्था में काम करने वाली हप्पी देवी बताती है कि वो बाड़मेर जिला मुख्यालय से करीब 100 किलोमीटर दूर देदूसर गांव है. पिछले कई महीनों से वे इनके साथ काम कर रही हैं. रोजगार मिल गया है और अच्छी आमदनी भी हो रही है. हप्पी देवी बताती है कि जहां वह पहले 700-800 सौ महीना कमा पाती थी, अब रूमा देवी के साथ काम करती है, तो करीबन महीने के 10 हजार तक आमदनी हो जाती है. जिससे परिवार का गुजर-बसर आराम से हो जाता है.

महिलाओं को दूर करनी होगी झिझक

रुमा देवी ने महिला दिवस पर संदेश दिया है कि महिलाएं अपने लक्ष्य से पीछे नहीं हटें. हर किसी महिला में कोई ना कोई हुनर जरूर होता है और वह हुनर दबाने की जरूरत नहीं है. उसे बाहर निकाल कर काम करने की जरूरत है. रूमा देवी हमेशा महिलाओं को लेकर यह कहती नजर आती है कि जिंदगी में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं कभी ना कभी सफलता जरूर मिलती है, क्योंकि जिंदगी में अगर घर से बाहर नहीं निकलती तो शायद आज मैं इस मुकाम पर नहीं पहुंच पाती. रूमा देवी और इनकी संस्थान की हजारों महिलाओं के संघर्ष और जज्बे ने विश्व की कई और महिलाओं को प्रेरित कर रही हैं. अब वह भी अपने हुनर तराशने और आगे बढ़ कर देश का नाम रोशन करें.

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