बाड़मेर. जिले में कृषि राज्यमंत्री कैलाश चौधरी ने कहा कि, किसानों और केंद्र सरकार के संयुक्त प्रयासों से देश में 1082.22 लाख हेक्टेयर क्षेत्र कवर हुआ है जो साल 2019 की तुलना में 13 लाख हेक्टेयर अधिक बुवाई हुई है. जिसके बाद कैलाश चौधरी ने इसका श्रेय किसानों को देते हुए कहा कि, किसानों की उन्नति ही सरकार का लक्ष्य है. इसके लिए तमाम योजनाएं और कार्यक्रम लागू किए गए हैं. साथ ही उन्होंने कहा कि, कृषि क्षेत्र के विकास के लिए सरकार कोई कसर बाकी नहीं रखेगी.
कैलाश चौधरी ने बताया कि, वर्तमान खरीफ की फसल के दौरान रिकॉर्ड 1082.22 लाख हेक्टेयर क्षेत्र को कवर किया गया है, जो 2019 की तुलना में 13 लाख हेक्टेयर से अधिक है. खरीफ 2019 के दौरान कुल कवरेज 1069.5 लाख हेक्टेयर था, जबकि पिछला रिकॉर्ड कवरेज खरीफ 2016 के दौरान 1075.71 लाख हेक्टेयर था. वहीं चावल की बुवाई कुछ राज्यों में अभी भी जारी है, जबकि दलहन, मोटे अनाज, बाजरा और तिलहन की बुवाई खत्म हो गई है.
जिसके बाद केंद्रीय मंत्री कैलाश चौधरी ने कहा कि हम आश्वस्त हैं कि, 2020-21 के दौरान कुल खाद्यान्न उत्पादन का आंकड़ा 298.32 मिलियन टन पार कर जाएगा. इसमें खरीफ मौसम से प्राप्त किया जाने वाला 149.92 मिलियन टन है. उन्होंने कहा कि, मोटे तौर पर खरीफ सीजन की फसल बारिश आधारित होती है. इस वर्ष अच्छे मानसून और किसानों की मेहनत से यह प्रगति मिली है.
कोरोना काल में भी केंद्र सरकार ने दी किसानों को छूट..
कैलाश चौधरी ने बताया कि, खरीफ फसलों के कवरेज की प्रगति पर कोविड-19 का प्रभाव नहीं पड़ा. साथ ही उन्होंने कहा कि, हमारे देश की अर्थव्यवस्था कृषि पर आधारित है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का फोकस कृषि क्षेत्र की प्रगति पर है. प्रधानमंत्री के मार्गदर्शन में कृषि मंत्रालय व राज्य सरकारों ने मिशन कार्यक्रमों व फ्लैगशीप स्कीमों के सफलतापूर्वक कार्यान्वयन के लिए सभी प्रयास किए गए हैं.
भारत सरकार की ओर से आवश्यक छूट दिए जाने के कारण कृषि मंत्रालय ने कोरोना महामारी के चलते लॉकडाउन के दौरान भी बीज, कीटनाशक, उर्वरकों, मशीनरी, ऋण जैसे आदानों की समय पर व्यवस्था कराई. इससे फसल कटाई अच्छी तरह हुई और ग्रीष्मकालीन बुवाई पिछली बार से लगभग 40 प्रतिशत ज्यादा हुई है और खरीफ की भी सर्वाधिक बुवाई हुई है. किसानों की ओर से समय पर कार्रवाई करने, प्रौद्योगिकियों को अपनाने व सरकारी स्कीमों का लाभ लेने का श्रेय किसानों को जाता है. साथ ही कृषि वैज्ञानिकों का योगदान भी इसमें रहा है.