बांसवाड़ा. जिले में कोरोना का कहर लगातार बढ़ता ही जा रहा है. शहर के साथ-साथ अब गांव में संक्रमण तेजी से फैल रहा है. इसका मुख्य कारण लोगों द्वारा कोविड-19 की गाइडलाइन की अवहेलना के साथ रोग को छुपाया जाना भी बताया जा रहा है. कोविड-19 में उपचार और वहां लगातार 10 से लेकर 14 दिन तक रखे जाने की अनिवार्यता से भी लोग काफी भयभीत देखे गए हैं.
लोगों का मानना है कि कोविड-19 के उपचार के दौरान रोगी को एक प्रकार से केयर सेंटर में रहना पड़ता है. खान-पान से लेकर उपचार तक की व्यवस्थाओं को लेकर भी कई प्रकार की भ्रांतियां और अफवाह के चलते लोग वार्ड में भर्ती होने से भी कतराते हैं.
बता दें कि महात्मा गांधी चिकित्सालय में फिलहाल मेल और फीमेल के 50-50 बेड के 2 वार्ड संचालित है, जिनमें 54 रोगियों का उपचार चल रहा है. रोगियों से की गई बातचीत के दौरान रोगी न केवल डॉक्टरों के व्यवहार से बल्कि सफाई कर्मियों के कामकाज से भी खुश नजर आए. वार्ड में डॉ. अश्विन पाटीदार, दिनेश पंड्या और मयंक शर्मा की टीम जब भी जरूरत पड़ती है, वे तुरंत वहां पहुंच जाते हैं.
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युवा चिकित्सकों की टीम के उपचार के साथ लोगों में काफी हिम्मत भी बन जाती है, जिससे वे लोग अपनी बीमारी को भूलकर खुद को स्वस्थ्य महसूस करने लगते हैं. इस दौरान एक मरीज ने बताया कि सैंपल लेने से लेकर उपचार तक उनकी पूरी तरह से ख्याल रखा जा रहा है. वार्ड की साफ-सफाई भी बहुत बेहतर है, हर समय सफाई कर्मचारी अपने काम में जुटे रहते हैं.
रोगियों से बातचीत में सामने आया कि चाय-नाश्ते और खानपान भी घर जैसा है और समय-समय पर जरूरत के हिसाब से खाने-पीने की सामग्री मिल जाती है. सबसे बड़ी बात यह है कि यदि किसी रोगी के परिवार के लोग टिफिन लाना चाहते हैं तो उन्हें भी छूट दी गई है, जिससे उन्हें हॉस्पिटल में रहने का आभास ही नहीं हो पाता.
मरीजों का कहना था कि लोगों को किसी प्रकार के सिम्टम्स आने पर तत्काल प्रभाव से जांच के लिए आगे आना चाहिए. यदि रिपोर्ट पॉजिटिव भी आई तो घबराने की जरूरत नहीं है. सिर्फ कुछ ही दिन की बात है. यदि लापरवाही बरती तो जान भी जा सकती है.