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बांसवाड़ा में गरीबी का भयावह चेहरा: चंद रुपयों के लिए बच्चों को रखना पड़ रहा गिरवी

गरीबी किस हद तक विकराल रूप ले चुकी है, इसका भयावह चेहरा उजागर हुआ है. भू माफिया जिला मुख्यालय से सुदूर गांव में परिवार का पेट पालने के लिए मां-पिता ही अपने बच्चों को चंद रुपयों की खातिर गडरियों के यहां गिरवी रख रहे हैं.

बांसवाड़ा में गरीबी का भयावह चेहरा उजागर
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Published : Jun 16, 2019, 5:27 PM IST

बांसवाड़ा. पिछले 15 दिनों में ही इस प्रकार के दो मामले सामने आ चुके हैं. 12 साल का कल्पेश हो या 8 साल का राजू. इनके माता-पिता ने ही इन्हें बाल श्रम के लिए गडरिया के हवाले कर दिया. जहां इन बच्चों से हार्ड वर्क करवाया जा रहा था. हालांकि बाल कल्याण समिति बांसवाड़ा ने इन दोनों ही बच्चों की बेहतर परवरिश के लिए राजकीय किशोर गृह में रखने का निर्देश दिया है. लेकिन पुलिस और प्रशासन गहराई से पड़ताल करवाए तो बड़ी संख्या में ऐसे बच्चों को गडरियों के चंगुल से मुक्त कराया जा सकता है.

एक अनुमान के अनुसार बांसवाड़ा और प्रतापगढ़ जिले की सीमा पर स्थित गांव में हालात और भी बदतर है जहां करीब 500 परिवारों के बच्चों को कभी ना कभी गडरियों के यहां गिरवी रखा जा चुका है. पता चला है कि इन गांव से करीब दो दर्जन बच्चे गडरिया के यहां गिरवी रहकर भेड़ों के रेवड चला रहे हैं. बताया जाता है कि इन गांव के 14 बच्चे बेड मालिकों के कब्जे में थे, जिनमें से 8 बच्चे यात्राओं से तंग आकर भागकर घर लौट आए. इनमें से अधिकांश बच्चे चुंडाई और बोर तलाव गांव के हैं.

बांसवाड़ा में चंद रुपयों के लिए मां-पिता बच्चों को रखना पड़ रहा गिरवी

ये गडरिया मारवाड़ से आते हैं-
ग्रीष्म काल के दौरान जोधपुर, जैसलमेर, सिरोही और पाली सहित आसपास के जिलों से ये भेड़ों को लेकर मध्य प्रदेश की ओर पलायन करते हैं. इनके पास सैकड़ों भेड़े और ऊंट आदि होते हैं, जो प्रतापगढ़ से होकर मध्यप्रदेश में प्रवेश करते हैं. ऊंट और भेड़ों को चलाने के लिए यह लोग बांसवाड़ा और प्रतापगढ़ जिले की सीमा पर स्थित गांव से सस्ते में बच्चों को मजदूरी के लिए ले जाते हैं. इसके लिए वह लोग बच्चों को गिरवी तक रख लेते हैं जहां ना केवल उन्हे प्रताड़ित किया जाता है, बल्कि समय पर खाना भी नहीं दिया जाता. इन बच्चों को गडरिया डेढ़ हजार से 2000 रुपये प्रति माह में 12 महीने के लिए गिरवी रखते हैं.


दलाल भी सक्रिय-
इस काम के लिए बाकायदा दलाल भी सक्रिय हो गए हैं. यह दलाल गडरिया और संबंधित परिवार के बीच एजेंसी का काम करते हैं और दोनों ही पार्टियों को मिलाकर सौदेबाजी ताई करवाते हैं. बाल कल्याण समिति बांसवाड़ा की रिपोर्ट पर पुलिस ने चुंडाई गांव से दलाल चौक लाल को गिरफ्तार किया है. इसी प्रकार समिति की शक्ति के बाद पुलिस ने 8 साल के राजू को गिरवी रखने वाले उसके पिता मोहन तथा गडरिया तुलसीराम को गिरफ्तार कर लिया. बाल कल्याण समिति के सदस्य मधुसूदन व्यास के अनुसार इस वर्ष अब तक हमारे पास इस प्रकार के 2 मामले सामने आ चुके हैं. हमें जैसे ही कोई सूचना मिलती है हम बाल श्रम पर तत्काल कार्रवाई करते हैं. इन दोनों ही मामलों में 3 जनों की गिरफ्तारी हो चुकी है.

बांसवाड़ा. पिछले 15 दिनों में ही इस प्रकार के दो मामले सामने आ चुके हैं. 12 साल का कल्पेश हो या 8 साल का राजू. इनके माता-पिता ने ही इन्हें बाल श्रम के लिए गडरिया के हवाले कर दिया. जहां इन बच्चों से हार्ड वर्क करवाया जा रहा था. हालांकि बाल कल्याण समिति बांसवाड़ा ने इन दोनों ही बच्चों की बेहतर परवरिश के लिए राजकीय किशोर गृह में रखने का निर्देश दिया है. लेकिन पुलिस और प्रशासन गहराई से पड़ताल करवाए तो बड़ी संख्या में ऐसे बच्चों को गडरियों के चंगुल से मुक्त कराया जा सकता है.

एक अनुमान के अनुसार बांसवाड़ा और प्रतापगढ़ जिले की सीमा पर स्थित गांव में हालात और भी बदतर है जहां करीब 500 परिवारों के बच्चों को कभी ना कभी गडरियों के यहां गिरवी रखा जा चुका है. पता चला है कि इन गांव से करीब दो दर्जन बच्चे गडरिया के यहां गिरवी रहकर भेड़ों के रेवड चला रहे हैं. बताया जाता है कि इन गांव के 14 बच्चे बेड मालिकों के कब्जे में थे, जिनमें से 8 बच्चे यात्राओं से तंग आकर भागकर घर लौट आए. इनमें से अधिकांश बच्चे चुंडाई और बोर तलाव गांव के हैं.

बांसवाड़ा में चंद रुपयों के लिए मां-पिता बच्चों को रखना पड़ रहा गिरवी

ये गडरिया मारवाड़ से आते हैं-
ग्रीष्म काल के दौरान जोधपुर, जैसलमेर, सिरोही और पाली सहित आसपास के जिलों से ये भेड़ों को लेकर मध्य प्रदेश की ओर पलायन करते हैं. इनके पास सैकड़ों भेड़े और ऊंट आदि होते हैं, जो प्रतापगढ़ से होकर मध्यप्रदेश में प्रवेश करते हैं. ऊंट और भेड़ों को चलाने के लिए यह लोग बांसवाड़ा और प्रतापगढ़ जिले की सीमा पर स्थित गांव से सस्ते में बच्चों को मजदूरी के लिए ले जाते हैं. इसके लिए वह लोग बच्चों को गिरवी तक रख लेते हैं जहां ना केवल उन्हे प्रताड़ित किया जाता है, बल्कि समय पर खाना भी नहीं दिया जाता. इन बच्चों को गडरिया डेढ़ हजार से 2000 रुपये प्रति माह में 12 महीने के लिए गिरवी रखते हैं.


दलाल भी सक्रिय-
इस काम के लिए बाकायदा दलाल भी सक्रिय हो गए हैं. यह दलाल गडरिया और संबंधित परिवार के बीच एजेंसी का काम करते हैं और दोनों ही पार्टियों को मिलाकर सौदेबाजी ताई करवाते हैं. बाल कल्याण समिति बांसवाड़ा की रिपोर्ट पर पुलिस ने चुंडाई गांव से दलाल चौक लाल को गिरफ्तार किया है. इसी प्रकार समिति की शक्ति के बाद पुलिस ने 8 साल के राजू को गिरवी रखने वाले उसके पिता मोहन तथा गडरिया तुलसीराम को गिरफ्तार कर लिया. बाल कल्याण समिति के सदस्य मधुसूदन व्यास के अनुसार इस वर्ष अब तक हमारे पास इस प्रकार के 2 मामले सामने आ चुके हैं. हमें जैसे ही कोई सूचना मिलती है हम बाल श्रम पर तत्काल कार्रवाई करते हैं. इन दोनों ही मामलों में 3 जनों की गिरफ्तारी हो चुकी है.

Intro:बांसवाड़ा में किस हद तक गरीबी विकराल रूप ले चुकी है इसका भयावह चेहरा उजागर हुआ हैl जिला मुख्यालय से सुदूर गांव में परिवार का पेट पालने के लिए मां बाप ही अपने बच्चों को चंद रुपयों की खातिर गडरियों के यहां गिरवी रख रहे हैंl


Body:पिछले 15 दिनों में ही इस प्रकार के दो मामले सामने आ चुके हैंl 12 साल का कल्पेश हो या 8 साल का राजूl इनके माता-पिता ने ही इन्हें बाल श्रम के लिए गडरिया के हवाले कर दिया जहां इन बच्चों से हार्ड वर्क करवाया जा रहा थाl हालांकि बाल कल्याण समिति बांसवाड़ा द्वारा इन दोनों ही बच्चों की बेहतर परवरिश के लिए राजकीय किशोर गृह में रखने का निर्देश दिया है लेकिन पुलिस और प्रशासन गहराई से पड़ताल करवाए तो बड़ी संख्या में ऐसे बच्चों को गडरियों के चंगुल से मुक्त कराया जा सकता है। एक अनुमान के अनुसार बांसवाड़ा और प्रतापगढ़ जिले की सीमा पर स्थित गांव में हालात और भी बदतर है जहां करीब 500 परिवारों के बच्चों को कभी ना कभी गडरियों के यहां गिरवी रखा जा चुका है। पता चला है कि इन गांव से करीब दो दर्जन बच्चे गडरिया के यहां गिरवी रहकर भेड़ों के रेवड चला रहे हैं। बताया जाता है कि इन गांव के 14 बच्चे बेड मालिकों के कब्जे में थे जिनमें से 8 बच्चे यात्राओं से तंग आकर भागकर घर लौट आए। इनमें से अधिक आस बच्चे चुंडाई और बोर तलाव गांव के हैं।
मारवाड़ से आते हैं गडरिया
ग्रीष्म काल के दौरान जोधपुर जैसलमेर सिरोही और पाली सहित आसपास के जिलों से गदर यह भेड़ों का रिवर लेकर मध्य प्रदेश की ओर पलायन करते हैं। इनके पास सैकड़ों भेड़े ऊंट आदि होते हैं जो प्रतापगढ़ से होकर मध्यप्रदेश में प्रवेश करते हैं। ऊंट और भेड़ों को चलाने के लिए यह लोग बांसवाड़ा और प्रतापगढ़ जिले की सीमा पर स्थित गांव से सस्ते में बच्चों को मजदूरी के लिए ले जाते हैं। इसके लिए वे लोग बच्चों को गिरवी तक रख लेते हैं जहां न केवल ने प्रताड़ित किया जाता है बल्कि समय पर खाना भी नहीं दिया जाता। इन बच्चों को गडरिया डेढ़ हजार से ₹2000 प्रति माह में 12 महीने के लिए गिरवी रखते हैं।


Conclusion:दलाल भी सक्रिय
इस काम के लिए बाकायदा दलाल भी सक्रिय हो गए हैं। यह दलाल गडरिया और संबंधित परिवार के बीच एजेंसी का काम करते हैं और दोनों ही पार्टियों को मिलाकर सौदेबाजी ताई करवाते हैं। बाल कल्याण समिति बांसवाड़ा की रिपोर्ट पर पुलिस ने चुंडाई गांव से दलाल चौक लाल को गिरफ्तार किया है। इसी प्रकार समिति की शक्ति के बाद पुलिस ने 8 साल के राजू को गिरवी रखने वाले उसके पिता मोहन तथा गडरिया तुलसीराम को गिरफ्तार कर लिया। बाल कल्याण समिति के सदस्य मधुसूदन व्यास के अनुसार इस वर्ष अब तक हमारे पास इस प्रकार के 2 मामले सामने आ चुके हैं। हमें जैसे ही कोई सूचना मिलती है हम बाल श्रम पर तत्काल कार्रवाई करते हैं। इन दोनों ही मामलों में 3 जनों की गिरफ्तारी हो चुकी है।

बाइट...... मधुसूदन व्यास सदस्य बाल कल्याण समिति बांसवाड़ा

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