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कोरोना के खिलाफ लड़ाई में मास्क बनाकर योगदान दे रहीं निराश्रित बालिकाएं

कोरोना संक्रमण से निपटने के लिए समाज का हर वर्ग सहायता अपने-अपने तरीके से कर रहा है. इसी कड़ी में आश्रय सेवा संस्थान की निराश्रित बालिकाएं भी गरीब लोगों के लिए मास्क बनाकर अपना योगदान दे रही हैं. इन बालिकाओं ने अब तक करीब 3 हजार मास्क बनाकर बांटे हैं.

Girls of Shelter Service Institute, बांसवाड़ा न्यूज
कोरोना के खिलाफ लड़ाई में मास्क बनाकर योगदान दे रहीं निराश्रित बालिकाएं
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Published : Apr 4, 2020, 8:42 PM IST

बांसवाड़ा. कोरोना महामारी को लेकर पूरी दुनिया चिंतित है. वायरस से निपटने के लिए सरकारों के साथ-साथ समाज का हर वर्ग अपने प्रयासों में जुटा है. कोई सरकार को फंड मुहैया करा रहा है तो कोई खाना. कुल मिलाकर हर शख्स मदद के लिए आगे आ रहा है. आश्रय सेवा संस्थान की निराश्रित बालिकाएं भी संकट के इस दौर में गरीब लोगों के लिए संबल बनकर आगे आई हैं. बालिकाएं गरीब और जरूरतमंद लोगों के लिए मास्क बना रही हैं.

कोरोना के खिलाफ लड़ाई में मास्क बनाकर योगदान दे रहीं निराश्रित बालिकाएं

वर्तमान में यहां करीब एक दर्जन छात्राएं निवासरत हैं, जिन्हें पढ़ाई के साथ-साथ जिंदगी में अपने सपने पूरे करने के लिए सिलाई की ट्रेनिंग भी दी गई थी. संकट की इस घड़ी में इन बालिकाओं ने गूगल से मास्क बनाना सीखा और अपने मिशन में जुट गईं, लेकिन आवश्यक सामग्री राह में रोड़ा बन गई.

संस्थान के संस्थापक सचिव नरोत्तम पंड्या से सभी बालिकाओं ने अपनी इच्छा जताई तो पंड्या ने व्यक्तिगत स्तर पर कपड़ा और रबर आदि की व्यवस्था करवा दी. ईटीवी भारत संस्थान पहुंचा तो बालिकाओं का समाज के प्रति जज्बा देखने लायक था. कोई मास्क के लिए कपड़े की कटाई कर रही थी तो कोई मशीन से मास्क तैयार कर रही थी. संस्थान के पास एक ही मशीन थी. ऐसे में चार मशीनें इधर उधर से जुटाई गईं.

पढ़ें- सरस घी के दाम में 10 रुपये की कमी, रविवार से से लागू होंगी नई दरें

बालिकाएं प्रतिदिन ढाई सौ से लेकर 300 मास्क तैयार कर रही हैं. अब तक कच्ची बस्तियों में जरूरतमंद लोगों को ढाई हजार से 3000 मास्क निशुल्क बांट दिए गए हैं. जब कुछ बालिकाओं से बातचीत की गई तो उनका कहना था कि गरीबी और बीमारी से उनके माता-पिता अकाल मौत के मुंह में समा गए, लेकिन वह नहीं चाहती कि और कोई बच्चा अपने सर से पिता का साया और माता की ममता खोए. इसीलिए हम रात दिन मास्क तैयार कर रही हैं.

संस्थापक सचिव पंड्या के अनुसार हमारे पास संसाधनों का अभाव है, लेकिन बालिकाओं के जज्बे को देखते हुए इधर उधर से सिलाई मशीनों का जुगाड़ किया गया. यदि हमें कच्चा माल उपलब्ध करा दिया जाए तो हम मास्क बनाने के काम को और भी तेज कर सकते हैं. फिलहाल बच्चों की जिद को देखते हुए वे व्यक्तिगत तौर पर कपड़ा और रबड़ आदि की व्यवस्था कर रहे हैं और अब तक ढाई से 3000 मास्क कच्ची बस्तियों में वितरित कर दिए हैं.

बांसवाड़ा. कोरोना महामारी को लेकर पूरी दुनिया चिंतित है. वायरस से निपटने के लिए सरकारों के साथ-साथ समाज का हर वर्ग अपने प्रयासों में जुटा है. कोई सरकार को फंड मुहैया करा रहा है तो कोई खाना. कुल मिलाकर हर शख्स मदद के लिए आगे आ रहा है. आश्रय सेवा संस्थान की निराश्रित बालिकाएं भी संकट के इस दौर में गरीब लोगों के लिए संबल बनकर आगे आई हैं. बालिकाएं गरीब और जरूरतमंद लोगों के लिए मास्क बना रही हैं.

कोरोना के खिलाफ लड़ाई में मास्क बनाकर योगदान दे रहीं निराश्रित बालिकाएं

वर्तमान में यहां करीब एक दर्जन छात्राएं निवासरत हैं, जिन्हें पढ़ाई के साथ-साथ जिंदगी में अपने सपने पूरे करने के लिए सिलाई की ट्रेनिंग भी दी गई थी. संकट की इस घड़ी में इन बालिकाओं ने गूगल से मास्क बनाना सीखा और अपने मिशन में जुट गईं, लेकिन आवश्यक सामग्री राह में रोड़ा बन गई.

संस्थान के संस्थापक सचिव नरोत्तम पंड्या से सभी बालिकाओं ने अपनी इच्छा जताई तो पंड्या ने व्यक्तिगत स्तर पर कपड़ा और रबर आदि की व्यवस्था करवा दी. ईटीवी भारत संस्थान पहुंचा तो बालिकाओं का समाज के प्रति जज्बा देखने लायक था. कोई मास्क के लिए कपड़े की कटाई कर रही थी तो कोई मशीन से मास्क तैयार कर रही थी. संस्थान के पास एक ही मशीन थी. ऐसे में चार मशीनें इधर उधर से जुटाई गईं.

पढ़ें- सरस घी के दाम में 10 रुपये की कमी, रविवार से से लागू होंगी नई दरें

बालिकाएं प्रतिदिन ढाई सौ से लेकर 300 मास्क तैयार कर रही हैं. अब तक कच्ची बस्तियों में जरूरतमंद लोगों को ढाई हजार से 3000 मास्क निशुल्क बांट दिए गए हैं. जब कुछ बालिकाओं से बातचीत की गई तो उनका कहना था कि गरीबी और बीमारी से उनके माता-पिता अकाल मौत के मुंह में समा गए, लेकिन वह नहीं चाहती कि और कोई बच्चा अपने सर से पिता का साया और माता की ममता खोए. इसीलिए हम रात दिन मास्क तैयार कर रही हैं.

संस्थापक सचिव पंड्या के अनुसार हमारे पास संसाधनों का अभाव है, लेकिन बालिकाओं के जज्बे को देखते हुए इधर उधर से सिलाई मशीनों का जुगाड़ किया गया. यदि हमें कच्चा माल उपलब्ध करा दिया जाए तो हम मास्क बनाने के काम को और भी तेज कर सकते हैं. फिलहाल बच्चों की जिद को देखते हुए वे व्यक्तिगत तौर पर कपड़ा और रबड़ आदि की व्यवस्था कर रहे हैं और अब तक ढाई से 3000 मास्क कच्ची बस्तियों में वितरित कर दिए हैं.

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