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स्पेशल स्टोरी: अलवर का 62 साल पुराना भर्तृहरि नाटक का मंचन शुरू, 7 घंटे तक देखकर भी नहीं होगें बोर

अलवर में राजर्षि अभय समाज के 62 साल पुराने रंगमंच पर महाराजा भर्तृहरि नाटक का मंचन शुरू हो गया है. इस पुराने रंगमंच पर इस नाटक के एक हजार से ज्यादा मंचन हो चुके हैं. हर साल 16 से 18 दिन तक खेले जाने वाला यह नाटक न केवल अनूठा है, बल्कि पूरी दुनिया में अकेला भी है. रोज एक जैसा नाटक 7 घंटे तक देखकर लोग न तो थकते हैं और न ही बोर होते हैं, खासियत है कि हर दिन वह नए रूप में दिखाई देता है.

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Published : Oct 11, 2019, 7:29 PM IST

Updated : Oct 12, 2019, 12:46 PM IST

अलवर. राजर्षि अभय समाज रंगमंच पर गुरुवार रात से महाराजा भर्तृहरि नाटक का मंचन शुरू हो गया है. भर्तृहरि जी नाटक के दृश्य को देखकर लोग भाव विभोर हुए, तो कई बार हंस-हंस कर लोटपोट भी हुए. नाटक का उद्घाटन अलवर के सांसद बाबा बालकनाथ ने किया. जबकि कार्यक्रम की अध्यक्षता संस्था के अध्यक्ष पंडित धर्मवीर शर्मा ने की.

62 साल पुराने भर्तहरि नाटक का मंचन हुआ शुरू

महाराजा भर्तृहरि का मंचन देखने के लिए राजर्षि अभय समाज के बाहरी हिस्से में बनी विंडो पर रोज लंबी कतार लगती है. यहां टिकट की कीमत 30 रुपए से लेकर 200 रुपए तक है. इस टिकट से मिलने वाली राशि का उपयोग भर्तृहरि नाटक के शुरु होने से पहले विजयदशमी तक निःशुल्क मंचित किए जाने वाली रामलीला पर खर्च किया जाता है. प्रतिदिन करीब ढाई हजार दर्शक इस नाटक को देखते हैं.

पढ़ें- पॉलीथिन छोड़ो अभियानः गरीब परिवारों को एक महीने का निःशुल्क राशन, कपड़े का कैरी बैग भी किया गया वितरित

  • राजर्षि अभय समाज रंगमंच पर पारसी शैली से महाराजा भर्तृहरि के नाटक का मंचन होता है.
  • उज्जैन के महाराजा भर्तृहरि ने अलवर में आकर तपस्या की थी और उसके बाद अलवर में ही समाधि ले ली थी.
  • उनके जीवन पर आधारित यह नाटक दशहरे के 2 दिन बाद शुरू होता है.
  • यहां काम करने वाले कलाकारों की अपनी कहानी है और मंच की अलग कहानी है.
  • इस नाटक को देखने के लिए राजस्थान के अलावा उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, दिल्ली, हरियाणा सहित उत्तर भारत के राज्यों से लोग आते हैं.

पढ़ें- जयपुर में हुई रावण के तीये की बैठक, अस्थि विसर्जन के लिए दल हरिद्वार रवाना, ताकि समाज को रावण रूपी बुराइयों से मिल सके मुक्ति

400 से 500 किलो वजन के होते हैं पर्दे

पारसी शैली थिएटर रंगमंच की सबसे प्राचीन शैली है. इस रंगमंच पर ऐसे पर्दे लगे हुए हैं जो ऊपर से नीचे की ओर गिरते हैं. इनका वजन 400 से 500 किलो तक है. जिन्हें खोलने के लिए ऊपर खींचते वक्त दोनों ओर चार-चार लोगों का उपयोग किया जाता है. यही स्थिति उन्हें ऊपर से नीचे गिराने यानी बंद करने के लिए बनती है. इन पर्दों को तैयार करने में कई-कई माहिने लगते हैं. इसके लिए विशेष कलाकार प्राकृतिक रंगों का उपयोग कर डिजाइन तैयार करते हैं. ये पर्दे न केवल पीछे के दृश्य को छिपाते हैं, बल्कि आगे की ओर एक नया दृश्य भी बनाते हैं.

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भर्तहरि नाटक का मंचन करते कलाकार

पढ़ें- अजमेर: जब नशे में धुत रावण ने राम के हाथों मरने से कर दिया इंकार और तलवार लेकर दौड़ पड़ा राम के पीछे...पढ़ें पूरी खबर

दृश्यों का होता है थ्री-डी आभास

  • पर्दों के आगे मंचित किए जाने वाले दृश्यों से पूरी तरह आभास थ्री-डी की तरह लगता है.
  • अंदाज लगाना मुश्किल होता है कि ये पर्दे हैं या वास्तविक सीन.
  • इस मंच की यह भी खास बात है कि इस पर लगा सिंहासन अचानक चलने लगता है. कभी आगे तो कभी पीछे दौड़ता है.
  • यही नहीं, सिंहासन के नीचे मंच की जमीन भी अचानक फट जाती है और उसमें से राजा प्रकट हो जाते हैं.
  • ये किसी प्रकार का जादू नहीं, बल्कि मंच की बनावट कुछ इसी तरह की है कि ये सब वास्तविक सा लगता है.

अलवर. राजर्षि अभय समाज रंगमंच पर गुरुवार रात से महाराजा भर्तृहरि नाटक का मंचन शुरू हो गया है. भर्तृहरि जी नाटक के दृश्य को देखकर लोग भाव विभोर हुए, तो कई बार हंस-हंस कर लोटपोट भी हुए. नाटक का उद्घाटन अलवर के सांसद बाबा बालकनाथ ने किया. जबकि कार्यक्रम की अध्यक्षता संस्था के अध्यक्ष पंडित धर्मवीर शर्मा ने की.

62 साल पुराने भर्तहरि नाटक का मंचन हुआ शुरू

महाराजा भर्तृहरि का मंचन देखने के लिए राजर्षि अभय समाज के बाहरी हिस्से में बनी विंडो पर रोज लंबी कतार लगती है. यहां टिकट की कीमत 30 रुपए से लेकर 200 रुपए तक है. इस टिकट से मिलने वाली राशि का उपयोग भर्तृहरि नाटक के शुरु होने से पहले विजयदशमी तक निःशुल्क मंचित किए जाने वाली रामलीला पर खर्च किया जाता है. प्रतिदिन करीब ढाई हजार दर्शक इस नाटक को देखते हैं.

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  • राजर्षि अभय समाज रंगमंच पर पारसी शैली से महाराजा भर्तृहरि के नाटक का मंचन होता है.
  • उज्जैन के महाराजा भर्तृहरि ने अलवर में आकर तपस्या की थी और उसके बाद अलवर में ही समाधि ले ली थी.
  • उनके जीवन पर आधारित यह नाटक दशहरे के 2 दिन बाद शुरू होता है.
  • यहां काम करने वाले कलाकारों की अपनी कहानी है और मंच की अलग कहानी है.
  • इस नाटक को देखने के लिए राजस्थान के अलावा उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, दिल्ली, हरियाणा सहित उत्तर भारत के राज्यों से लोग आते हैं.

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400 से 500 किलो वजन के होते हैं पर्दे

पारसी शैली थिएटर रंगमंच की सबसे प्राचीन शैली है. इस रंगमंच पर ऐसे पर्दे लगे हुए हैं जो ऊपर से नीचे की ओर गिरते हैं. इनका वजन 400 से 500 किलो तक है. जिन्हें खोलने के लिए ऊपर खींचते वक्त दोनों ओर चार-चार लोगों का उपयोग किया जाता है. यही स्थिति उन्हें ऊपर से नीचे गिराने यानी बंद करने के लिए बनती है. इन पर्दों को तैयार करने में कई-कई माहिने लगते हैं. इसके लिए विशेष कलाकार प्राकृतिक रंगों का उपयोग कर डिजाइन तैयार करते हैं. ये पर्दे न केवल पीछे के दृश्य को छिपाते हैं, बल्कि आगे की ओर एक नया दृश्य भी बनाते हैं.

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भर्तहरि नाटक का मंचन करते कलाकार

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दृश्यों का होता है थ्री-डी आभास

  • पर्दों के आगे मंचित किए जाने वाले दृश्यों से पूरी तरह आभास थ्री-डी की तरह लगता है.
  • अंदाज लगाना मुश्किल होता है कि ये पर्दे हैं या वास्तविक सीन.
  • इस मंच की यह भी खास बात है कि इस पर लगा सिंहासन अचानक चलने लगता है. कभी आगे तो कभी पीछे दौड़ता है.
  • यही नहीं, सिंहासन के नीचे मंच की जमीन भी अचानक फट जाती है और उसमें से राजा प्रकट हो जाते हैं.
  • ये किसी प्रकार का जादू नहीं, बल्कि मंच की बनावट कुछ इसी तरह की है कि ये सब वास्तविक सा लगता है.
Intro:अलवर। अलवर के राजर्षि अभय समाज के रंगमंच पर 100 साल पुराने महाराजा भर्तहरि के नाटक की शुरुआत हो चुकी है। 62 साल से लगातार अभय समाज के रंगमंच पर इस नाटक को 1200 से ज्यादा बार खेला जा चुका है। हर साल 18 दिनों तक यह नाटक का मंचन होता है। रात 10 बजे से सुबह 5 बजे तक प्रतिदिन 7 घंटे नाटक का मंचन किया जाता है। हर दिन एक नाटक पेश होता है। उसको देखने के लिए भी कई शहरों व राज्य से लोग अलवर आते हैं।


Body:अलवर के राजर्षि अभय समाज रंगमंच पर गुरुवार रात से महाराजा भर्तहरि नाटक का मंचन शुरू हो गया। भर्तहरि जी नाटक के दृश्य को देखकर लोग भाव विभोर हो गए। तो कई बार हंस हंस कर लोटपोट हो गए। नाटक का उद्घाटन अलवर के सांसद बाबा बालकनाथ ने किया। जबकि कार्यक्रम की अध्यक्षता संस्था के अध्यक्ष पंडित धर्मवीर शर्मा ने की। नाटक के पहले दृश्य माया मछंदर नाथ का आश्रम का मंच दिखाया गया। जिसमें 3 दुने ने लगे थे। जिन्हें देख गुरु गोरखनाथ ने अपने गुरु माया मछंदर नाथ से प्रश्न पूछा कि यह तीसरा किसके लिए है। इस पर माया मच्छिंद्रनाथ ने जवाब दिया कि यह पूरा तुम्हारे गुरु भाई भर्तहरि का है। जो अभी उज्जैन नगरी के महाराज है। भर्तहरि को मोहमाया से निकालकर वैराग्य जीवन में लाने के लिए गोरखनाथ को भेजा गया है। गोरखनाथ ने 4 चोरों के रूप में वेश बदलकर रात्रि को उज्जैन नगरी में प्रवेश किया। उन्हें महाराजा भर्तहरि ने पकड़ लिया। भर्तहरि ने उन्हें नीतिगत शिक्षा दी और उन्हें अपने दरबार में नौकरी पर रख लिया। फिर गोरखनाथ ने क्रूर सिंह का रूप धर महारानी पिंगला से प्रेमाला का दृश्य दर्शाया। जिसे महाराजा भारती जी ने छोटे भाई विक्रम ने देख लिया। विक्रम ने यह बात अपने भाई महाराजा भर्तहरि को बताई। तो महाराजा भर्तहरि ने मन में वैराग्य पैदा हो गया और वो राजपाट छोड़कर वैरागी बन गए। भर्तहरि नाटक के इन दृश्यों को कलाकारों नहीं देखा व कलाकार मन मुक्त हो गए।


Conclusion:राजर्षि अभय समाज रंगमंच पर पारसी शैली से महाराजा भर्तहरि के नाटक का मंचन होता है। उज्जैन के महाराजा भर्तहरि ने अलवर में आकर तपस्या की थी और उसके बाद अलवर में ही समाधि ले ली थी। उनके जीवन पर आधारित यह नाटक दशहरे के 2 दिन बाद शुरू होता है। यहां काम करने वाले कलाकारों की अपनी कहानी है और मंच की अलग कहानी है। पारसी शैली को खुद पारसी भूल चुके हैं। लेकिन इस शैली से आज भी अलवर में इस नाटक का मंचन किया जाता है। सबसे पुरानी व अनूठी इस शैली में कई तरह की विशेषता है। देश का एकमात्र राजर्षि अभय समाज रंगमंच है। जो इस शैली को जीवित रखे हुए हैं। इस नाटक को देखने के लिए राजस्थान के अलावा उत्तर प्रदेश मध्य प्रदेश दिल्ली हरियाणा सहित उत्तर भारत के राज्यों से लोग अलवर आते हैं। पारसी शैली थिएटर रंगमंच की सबसे प्राचीन शैली है। इसमें रंगमंच के पर्दे भारी भरकम होते हैं। इन पदों में 400 से 500 किलो तक का वजन होता है। जिन्हें खोलने के लिए तीन से चार आदमी लगे होते हैं। इन पदों को तैयार करने में कई माह का समय लगता है। इसके लिए विशेष कलाकार प्राकृतिक रंगों का उपयोग कर पदों पर डिजाइन बनाते हैं। यह पर्दे न केवल पीछे के दृश्य को छुपाते हैं। बल्कि आगे की ओर एक नया दृश्य क्रिएट करते हैं। पर्दों के आगे मंचित किए जाने वाले दृश्यों से पूरी तरह आभास 3डी का होता है। इस मंच पर लगा सिंहासन अचानक चलने लगता है। कभी आगे तो कभी पीछे दौड़ता है। यही नहीं सिंहासन के नीचे मंच की जमीन भी अचानक फट जाती है और उसमें राजा प्रकट हो जाते हैं। यह किसी प्रकार का जादू नहीं बल्कि मंच की बनावट कुछ इसी तरह की है। बाइट- पंडित धर्मवीर शर्मा, अध्यक्ष, राजर्षि अभय समाज रंगमंच
Last Updated : Oct 12, 2019, 12:46 PM IST
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