अलवर. राजर्षि अभय समाज रंगमंच पर गुरुवार रात से महाराजा भर्तृहरि नाटक का मंचन शुरू हो गया है. भर्तृहरि जी नाटक के दृश्य को देखकर लोग भाव विभोर हुए, तो कई बार हंस-हंस कर लोटपोट भी हुए. नाटक का उद्घाटन अलवर के सांसद बाबा बालकनाथ ने किया. जबकि कार्यक्रम की अध्यक्षता संस्था के अध्यक्ष पंडित धर्मवीर शर्मा ने की.
महाराजा भर्तृहरि का मंचन देखने के लिए राजर्षि अभय समाज के बाहरी हिस्से में बनी विंडो पर रोज लंबी कतार लगती है. यहां टिकट की कीमत 30 रुपए से लेकर 200 रुपए तक है. इस टिकट से मिलने वाली राशि का उपयोग भर्तृहरि नाटक के शुरु होने से पहले विजयदशमी तक निःशुल्क मंचित किए जाने वाली रामलीला पर खर्च किया जाता है. प्रतिदिन करीब ढाई हजार दर्शक इस नाटक को देखते हैं.
- राजर्षि अभय समाज रंगमंच पर पारसी शैली से महाराजा भर्तृहरि के नाटक का मंचन होता है.
- उज्जैन के महाराजा भर्तृहरि ने अलवर में आकर तपस्या की थी और उसके बाद अलवर में ही समाधि ले ली थी.
- उनके जीवन पर आधारित यह नाटक दशहरे के 2 दिन बाद शुरू होता है.
- यहां काम करने वाले कलाकारों की अपनी कहानी है और मंच की अलग कहानी है.
- इस नाटक को देखने के लिए राजस्थान के अलावा उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, दिल्ली, हरियाणा सहित उत्तर भारत के राज्यों से लोग आते हैं.
400 से 500 किलो वजन के होते हैं पर्दे
पारसी शैली थिएटर रंगमंच की सबसे प्राचीन शैली है. इस रंगमंच पर ऐसे पर्दे लगे हुए हैं जो ऊपर से नीचे की ओर गिरते हैं. इनका वजन 400 से 500 किलो तक है. जिन्हें खोलने के लिए ऊपर खींचते वक्त दोनों ओर चार-चार लोगों का उपयोग किया जाता है. यही स्थिति उन्हें ऊपर से नीचे गिराने यानी बंद करने के लिए बनती है. इन पर्दों को तैयार करने में कई-कई माहिने लगते हैं. इसके लिए विशेष कलाकार प्राकृतिक रंगों का उपयोग कर डिजाइन तैयार करते हैं. ये पर्दे न केवल पीछे के दृश्य को छिपाते हैं, बल्कि आगे की ओर एक नया दृश्य भी बनाते हैं.
दृश्यों का होता है थ्री-डी आभास
- पर्दों के आगे मंचित किए जाने वाले दृश्यों से पूरी तरह आभास थ्री-डी की तरह लगता है.
- अंदाज लगाना मुश्किल होता है कि ये पर्दे हैं या वास्तविक सीन.
- इस मंच की यह भी खास बात है कि इस पर लगा सिंहासन अचानक चलने लगता है. कभी आगे तो कभी पीछे दौड़ता है.
- यही नहीं, सिंहासन के नीचे मंच की जमीन भी अचानक फट जाती है और उसमें से राजा प्रकट हो जाते हैं.
- ये किसी प्रकार का जादू नहीं, बल्कि मंच की बनावट कुछ इसी तरह की है कि ये सब वास्तविक सा लगता है.