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अजमेर की मीठा नीम का पेड़ पीर बाबा की जिंदा करामत, दरगाह पर जाते हैं अकीदतमंद जायरीन - special story about peer ali baba gaib in ajmer

अजमेर को पीरों फकीरों की धरती कहा जाता है जहां आज भी उनके करामात और करिश्मा के किस्से मशहूर हैं. आज हम आपको एक ऐसी ही वली की दरगाह ले चलते हैं जहां आज भी बाबा की करामात एक नीम के पेड़ में मानी जाती है.

अजमेर मीठा नीम का पेड़ पीर वाले बाबा की जिंदा करामत दरगाह पर जाते हैं अकीदतमंद जायरीन
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Published : Jul 8, 2019, 9:52 PM IST

अजमेर. इस दरगाह में ऐसा एक नीम का पेड़ है, जिसके पत्ते खाने में मीठे हैं और ऐसा माना जाता है कि इन पत्तों को खाने से कई तरह की बीमारियां भी दूर हो जाती है. यही वजह है कि इस दरगाह की मान्यता सभी धर्मों के लोगं में है और देशभर में कौने-कौने से जायरीन यहां आते हैं.

दरअसल, यहां एक मीठा नीम का पेड़ है. इस पेड़ की खासियत है जो डाली मजार की ओर झुकी हुई है, वह मीठी है. वहीं जो दूसरी और झुकी है वह कड़वी है. एक पेड़ में दो तासीर अपने आप में खास बात है. हर रोज यहां ज़ायरीनों का तांता लगा रहता है. पीर बाबा के मजार पर आने वाले ज़ायरीन इस नीम के पेड़ की पत्तियां अपनी बीमारी से शिफा पाने के लिए ले जाते हैं. खास बात यह है कि इस नीम के पत्ते को खाने से मुंह कड़वा नहीं होता बल्कि मीठा हो जाता है.

अजमेर मीठा नीम का पेड़ पीर वाले बाबा की जिंदा करामत दरगाह पर जाते हैं अकीदतमंद जायरीन
कहा जाता है कि यह करामात गैब पीर बाबा की है, जो अजमेर की तारागढ़ पहाड़ी के नीचे जग जाहिर है. ऐसा कहा जाता है कि मोहम्मद गौरी के समय गैब पीर बाबा लश्कर के सिपहसालार थे. एक जंग के वक्त उनकी तलवार ने दुश्मन की सैना को पस्त कर दिया था. तभी एक दुश्मन ने उनके सर को ज़िस्म से अलग कर दिया. बावजूद इसके जंग के मैदान में बाबा की तलवार तब भी दुश्मनों को खून से लाल कर रही थी. तभी एक दुश्मन की निगाह उनकी तरफ पड़ी.

बताया जाता है कि वे सिर कटने के बावजूद भी घोड़े पर सवार होकर दुश्मनों को शिकस्त दे रहे थे. हालांकि जंग के दौरान पीर बाबा घोड़े से नीचे गिर पड़े और शहीद हो गए थे. इसी बहादुरी के चलते उनकी मजार को यहां बनवाया गया था. जहां इस मजार पर देश के कोने- कोने से ज़ायरीन हाजिरी लगाने आते हैं और साथ ही अपनी जिस्मानी बीमारियों से निजात के लिए दरगाह के मीठी नीम को खाते और अपने रिश्तेदारों के लिए भी ले जाते हैं

अजमेर. इस दरगाह में ऐसा एक नीम का पेड़ है, जिसके पत्ते खाने में मीठे हैं और ऐसा माना जाता है कि इन पत्तों को खाने से कई तरह की बीमारियां भी दूर हो जाती है. यही वजह है कि इस दरगाह की मान्यता सभी धर्मों के लोगं में है और देशभर में कौने-कौने से जायरीन यहां आते हैं.

दरअसल, यहां एक मीठा नीम का पेड़ है. इस पेड़ की खासियत है जो डाली मजार की ओर झुकी हुई है, वह मीठी है. वहीं जो दूसरी और झुकी है वह कड़वी है. एक पेड़ में दो तासीर अपने आप में खास बात है. हर रोज यहां ज़ायरीनों का तांता लगा रहता है. पीर बाबा के मजार पर आने वाले ज़ायरीन इस नीम के पेड़ की पत्तियां अपनी बीमारी से शिफा पाने के लिए ले जाते हैं. खास बात यह है कि इस नीम के पत्ते को खाने से मुंह कड़वा नहीं होता बल्कि मीठा हो जाता है.

अजमेर मीठा नीम का पेड़ पीर वाले बाबा की जिंदा करामत दरगाह पर जाते हैं अकीदतमंद जायरीन
कहा जाता है कि यह करामात गैब पीर बाबा की है, जो अजमेर की तारागढ़ पहाड़ी के नीचे जग जाहिर है. ऐसा कहा जाता है कि मोहम्मद गौरी के समय गैब पीर बाबा लश्कर के सिपहसालार थे. एक जंग के वक्त उनकी तलवार ने दुश्मन की सैना को पस्त कर दिया था. तभी एक दुश्मन ने उनके सर को ज़िस्म से अलग कर दिया. बावजूद इसके जंग के मैदान में बाबा की तलवार तब भी दुश्मनों को खून से लाल कर रही थी. तभी एक दुश्मन की निगाह उनकी तरफ पड़ी.

बताया जाता है कि वे सिर कटने के बावजूद भी घोड़े पर सवार होकर दुश्मनों को शिकस्त दे रहे थे. हालांकि जंग के दौरान पीर बाबा घोड़े से नीचे गिर पड़े और शहीद हो गए थे. इसी बहादुरी के चलते उनकी मजार को यहां बनवाया गया था. जहां इस मजार पर देश के कोने- कोने से ज़ायरीन हाजिरी लगाने आते हैं और साथ ही अपनी जिस्मानी बीमारियों से निजात के लिए दरगाह के मीठी नीम को खाते और अपने रिश्तेदारों के लिए भी ले जाते हैं

Intro:अजमेर/ पीरों फखिरो की बारगाह आज भी अपनी करामातो और करिश्मा से मशहूर है आज हम आपको ऐसी ही एक वली की दरगाह ले चलते हैं जहां आज भी बाबा की करामात एक नीम के पेड़ से जारी है जी हाँ हम आपको बता दें इस दरगाह में ऐसा एक नीम का पेड़ है जिसके पत्ते खाने में मीठे हैं और इन पत्तों को खाने से कई तरह की बीमारियां भी दूर भाग जाती है


Body:हिंदुस्तान में सबसे ज्यादा वली अल्लाह की दरगाह और मजारात होना आप और हमारे लिए बड़े नसीब की बात है इन बारगाहो पर अकीदत मंद जायरीन अपनी गमजदा जिंदगी को खुशियों से भरने पहुंचते हैं ऐसी ही एक दरगाह पीर वाले बाबा की अजमेर में हैं


जहां एक मीठा नीम का पेड़ है इस पेड़ की खासियत है जो पेड़ की डाली मजाक की ओर झुकी हुई है वह मीठी है और जो दूसरी और झुकी है वह कड़वी है एक पेड़ में दो तासीर है हर रोज यहां जायरीन का ताता लगा रहता है ग़ैब पीर बाबा के मजार पर आने वाले जायरीन इस नीम के पेड़ की पत्तियां अपनी बीमारी से शिफा पाने के लिए ले जाते हैं और खाते भी हैं


खास बात यह है कि इस नीम के पत्ति को खाने से मुंह कड़वा नहीं होता बल्कि मीठा हो जाता है यह करामात गैब पीर वाले बाबा की है जो अजमेर की तारागढ़ पहाड़ी के नीचे जगजाहिर है


Conclusion:ऐसा कहा जाता है कि मोहम्मद गौरी के वक्त के समय मे गेब पीर बाबा लश्कर के सिपहसालार थे तभी काफिरों से जंग के वक्त आप की तलवार ने कसीर काफिरों को जननुम नसीब कर दिया तब एक दुश्मन ने आप के सरे मुबारक को जिस्म से अलग कर दिया जंग के मैदान में तब भी बाबा की तलवार दुश्मनों को खून से लाल कर रही थी


तभी एक दुश्मन की निगाह आपकी तरफ बड़ी दुश्मन ने देखा कि एक शख्स घोड़े पर सवार बगैर सर के दुश्मनों को शिकस्त दे रहा है तभी उस शक्स ने आवाज लगाई अरे यह क्या यह कैसा मुस्लिम है जो बगैर सर के जंग के मैदान में हमारे आदमियों को शिखस्त दे रहा है तभी ग्रैब पीर बाबा घोड़े से नीचे गिर गया और शहीद हो गए


आपका सर मुबारक जिस्म के मजार से 1 किलोमीटर की दूरी पर ख्वाजा साहब की दरगाह के नजदीक है जबकि जिस मुबारक तारागढ़ की पहाड़ी के नीचे का यह वाक्य है इस मजार पर मुल्क़ के कोने-कोने से जायरीन हाजिरी लगाने आते हैं साथ ही अपनी जिस्मानी बीमारियों से निजात के लिए दरगाह के मीठी नीम को खाते और अपने रिश्तेदारों के लिए भी ले जाते हैं


बाईट- चांद मिया चिश्ती ख़ादिम

बाईट-उस्मान खान

बाईट-फखरुद्दीन नागोरी
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