जयपुर : मकर संक्रांति के मौके पर मंगलवार सुबह से ही गुलाबी शहर का आसमान रंग-बिरंगा नजर आया. एक तरफ जहां रंग-बिरंगी पतंग उड़ती हुई दिखाई दी, तो दूसरी ओर मकर संक्रांति के पर्व पर छोटी काशी में दान पुण्य का दौर भी देखने को मिला. इस मौके पर छतों पर म्यूजिक सिस्टम के साथ डीजे की धुन सुनाई दी. त्यौहार पर महिलाओं और बच्चों सहित पूरा परिवार एक साथ संक्रांति का पर्व मनाते हुए देखे गए. वहीं, शाम को पतंगबाजी के बाद शहर में जमकर आतिशबाजी हुई. इस नजारे को देखकर हर कोई अभिभूत हो गया.
संक्रांति के इस पर्व पर गुलाबी नगर में बॉलीवुड स्टार अक्षय कुमार पतंगबाजी करते नजर आए. सिसोदिया रानी गार्डन की छत से काफी देर तक उन्होंने पतंग उड़ाई. खुद अक्षय कुमार ने इंस्टाग्राम पर पतंगबाजी की तस्वीर शेयर की और खुद को जयपुर की पतंगबाजी का भी कायल बताया. अक्षय कुमार की पतंगबाजी के दौरान हास्य अभिनेता परेश रावल उनकी चरखी थामे रहे.
गरीब बच्चों के बीच पहुंचे पुलिस कमिश्नर : जयपुर पुलिस ने झालना कच्ची बस्ती में बच्चों संग मकर संक्रांति मनाई. पुलिस कमिश्नर बीजू जॉर्ज जोसेफ, अतिरिक्त पुलिस कमिश्नर योगेश दाधीच, डीसीपी तेजस्विनी गौतम और अन्य अधिकारियों ने पतंग, मांझे और लड्डू बांटे. इस मौके पर बच्चे भी पुलिस अंकल से पीली पतंग और ब्लू चकरी की फरमाइश करते हुए देखे गए. पुलिसिंग विद ए सोशल कॉज़ के तहत बच्चों की मुस्कान ने माहौल को खुशनुमा बना दिया. पुलिस आयुक्त ने सभी को इस मौके पर शुभकामनाएं दीं.
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ठाकुर जी ने उड़ाई सोने की पतंग : एक तरफ गुलाबी शहर मकर संक्रांति के जोश-खरोश में सराबोर नजर आया, तो दूसरी ओर जयपुर के आराध्य ठाकुर श्री गोविंद देव जी मंदिर में भी पतंगबाजी की धूम देखने को मिली. गोविंद देव जी ने इस मौके पर ऐतिहासिक 200 साल पुरानी रियासत कालीन सोने की पतंग उड़ाई, तो उनकी चरखी थामे हुए राधा रानी नजर आई. इस अवसर पर ठाकुर जी को भी विशेष पोशाक धारण कराई गई और गर्भ गृह को 1100 रंग बिरंगी पतंगों से सजाया गया. भगवान को तिल गुड़ के लड्डू, गजक, घेवर और फीनी समेत परंपरागत व्यंजन का भोग अर्पित किया.
सैकड़ों साल पुराना पतंगबाजी का इतिहास : जयपुर का पतंगबाजी के साथ 400 बरस से भी ज्यादा पुराना नाता है. इतिहासकार जितेंद्र सिंह शेखावत के मुताबिक मिर्जा राजा जयसिंह के शासनकाल में भी जयपुर में 16वीं सदी के दौरान पतंगबाजी हुआ करती थी. आमेर से लेकर जयपुर के बसने तक पतंगबाजी के जोश में कोई कमी नहीं आई. महराजा सवाई रामसिंह ने भी जयपुर में पतंगों के कारखाने तैयार करवाए थे. इसके अलावा देश के अलग-अलग हिस्सों से उन्होंने पतंगें मंगवाकर संग्रह की थी. स्वयं सवाई रामसिंह पतले मखमली कपड़े की चांदी-सोने के घुंघरू लगी पतंगें चन्द्रमहल की छत से उड़ाते थे, पतंग लूटने वालों को इनाम देते थे. इस परंपरा को माधोसिंह द्वितीय और मानसिंह द्वितीय के दौर में भी जारी रखा गया. यहां तक की आज भी जयपुर के सिटी पैलेस म्यूजियम में 200 साल पुरानी महाराजा राम सिंह की चरखी और पतंग को नुमाइश के लिए रखा गया है.
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वहीं, शाम होते-होते शहर में आतिशबाजी का दौर शुरू हुआ. आसमान में रंग-बिरंगी रोशनी फैल गई और शहरवासियों ने विश लैंप (लालटेन) जलाकर अपनी शुभकामनाएं दीं. यह दृश्य विशेष रूप से आकर्षक था, क्योंकि आतिशबाजी और विश लैंप की रोशनी से आसमान सतरंगी हो गया. लोग इस दृश्य को अपने कैमरों में कैद कर रहे थे और आकाश रंग-बिरंगी रोसनी से अट गया. इस उत्सव को लेकर शहरवासियों का कहना था कि यह परंपरा उनके लिए खास है और बचपन से वे इसी तरह से मकर संक्रांति का जश्न मनाते आए हैं. पतंगबाजी के साथ-साथ विश लैंप जलाने की परंपरा भी बहुत पुरानी है. वे बताते हैं कि पहले इन लालटेन को 'लालटेन' कहा जाता था, लेकिन अब लोग इन्हें अपनी शुभकामनाओं के साथ जलाते हैं.
इस दिन को बच्चों ने भी बहुत एन्जॉय किया. उनका कहना था कि उन्होंने पूरे दिन पतंगबाजी की, शाम को आतिशबाजी का आनंद लिया और विश लैंप जलाए. हालांकि, वे कहते हैं कि वे अपनी विश को सार्वजनिक रूप से नहीं बता सकते, लेकिन उनके दिलों में एक विशेष खुशी थी.