अजमेर. तीर्थ नगरी पुष्कर हिंदुओं का सबसे बड़ा धार्मिक स्थल है. यहां का सियासी हाल देखें तो पुष्कर विधानसभा सीट को कांग्रेस का गढ़ माना जाता रहा है, लेकिन साल 2013 के बाद से पुष्कर में राजनीतिक स्थिति बदल गई. यहां गुटबाजी के कारण कांग्रेस कमजोर हुई तो भाजपा की पकड़ मतदाताओं में मजबूत हुई. कांग्रेस को 2013 और 2018 के चुनाव में लगातार शिकस्त मिली. यहां निकाय चुनाव तक में विगत दो बार से कांग्रेस का प्रदर्शन काफी कमजोर रहा है.
जगतपिता ब्रह्मा की नगरी पुष्कर धार्मिक पर्यटन स्थली है. हिंदुओं का सबसे बड़ा तीर्थ स्थल होने के कारण पुष्कर में चुनाव परिणाम पर देश भर की नजर रहती है. पुष्कर के शहरी क्षेत्र में लोगों की आजीविका पर्यटन उद्योग पर निर्भर है. होटल, रेस्टोरेंट, धर्मशालाएं, टेक्सटाइल, नर्सरी समेत कई पर्यटन उद्योग यहां पर्यटकों के आने से फल फूल रहे हैं. वहीं, पुष्कर के ग्रामीण अंचल में रहने वाले लोगों की आजीविका कृषि और बागवानी पर आधारित है. पुष्कर की सीमाएं एक ओर अजमेर शहर तो दूसरी ओर किशनगढ़ से मिलती है. वहीं, पुष्कर का कुछ हिस्सा नागौर जिले को भी छूता है.
पुष्कर के धार्मिक महत्व और यहां की लोक संस्कृति सदियों से देशी-विदेशी पर्यटकों को आकर्षित करती आई है. सियासी तौर पर देखें तो पुष्कर सीट राजनीतिक पार्टियों के लिए काफी महत्वपूर्ण मानी जाती है. पुष्कर में 1957 से 2018 तक 14 विधानसभा चुनाव हुए. इससे पहले पुष्कर विधानसभा सीट पर 8 बार कांग्रेस और 6 बार भाजपा की जीत हुई है. साल 1977 में पुष्कर में भाजपा की पहली बार जीत हुई थी. विगत 20 वर्षों में पुष्कर में जिस पार्टी का एमएलए जीता है, प्रदेश में सरकार उस पार्टी की ही बनी है. हालांकि, वर्तमान में पुष्कर विधानसभा सीट पर भाजपा का कब्जा है. सुरेश सिंह रावत दूसरी बार पुष्कर से विधायक हैं. 2018 से पहले रावत 2013 में पहली बार पुष्कर सीट पर भाजपा से चुनाव जीते थे.
पुष्कर में राजनीतिक समीकरण : पुष्कर के सियासी हाल को समझने के लिए जातीय समीकरण समझना भी आवश्यक है. पुष्कर में भाजपा और कांग्रेस के अपने-अपने परंपरागत मतदाता हैं. भाजपा का परंपरागत मतदाता रावत, ब्राह्मण, राजपूत, वैश्य हैं, जिनकी संख्या 1 लाख 10 हजार के करीब है. जबकि कांग्रेस का परंपरागत मतदाता मुस्लिम, गुर्जर, जाट और एससी मतदाता हैं. इनकी संख्या लगभग 1 लाख 20 हजार के ऊपर है. हालांकि, इस जातीय समीकरण में विगत 2013 चुनाव के बाद से गुर्जर, जाट और एससी मतदाताओं में भाजपा ने सेंध लगाई है. इसका कारण मोदी फैक्टर भी है. मोदी लहर आने के बाद कांग्रेस के वोट बैंक में जबरदस्त सेंध लगी है. पुष्कर के शहरी क्षेत्र में भाजपा मजबूत है. वहीं, ग्रामीण अंचल में कांग्रेस मजबूत है.
यह है जातीय समीकरण : पुष्कर के जातीय समीकरण की बात करें तो 240 मतदान केंद्रों में 2 लाख 45 हजार 431 मतदाता हैं. इनमें से 45 हजार के लगभग रावत, 42 हजार के लगभग मुस्लिम, 32 हजार एससी, 24 हजार जाट, 17 हजार ब्राह्मण, 9 हजार वैश्य, 18 हजार गुर्जर, 16 हजार राजपूत और शेष अन्य जाति के मतदाता हैं.
2003 से 2018 तक सियासी हाल :
2003 में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा के दिग्गज नेता रमजान खान और कांग्रेस के डॉ श्रीगोपाल बाहेती के बीच मुकाबला हुआ था. इस चुनाव में कुल 10 उम्मीदवार मैदान में थे. चुनाव में कांग्रेस ने बाजी मारी. कांग्रेस के उम्मीदवार डॉ श्रीगोपाल बाहेती को 40 हजार 833 और रमजान खान को 33 हजार 735 मत मिले थे. बता दें कि भैरव सिंह शेखावत की सरकार में रमजान खान मंत्री रहे हैं.
2008 के चुनाव में कांग्रेस की जीत हुई. कांग्रेस से नसीम अख्तर और भाजपा से भंवर सिंह पलाड़ा और निर्दलीय प्रत्याशी श्रवण सिंह रावत के बीच त्रिकोणीय मुकाबला हुआ. इस चुनाव में पांच उम्मीदवार मैदान में थे. चुनाव में कांग्रेस को 42 हजार 881 और बीजेपी को 36 हजार 347 वोट मिले. जबकि निर्दलीय उम्मीदवार श्रवण सिंह रावत ने 27 हजार 612 मत हासिल किए थे. 1 लाख 63 हजार 908 कुल मतदाता पुष्कर में थे.
2013 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को करारी शिकस्त मिली थी. मोदी लहर में कांग्रेस को पुष्कर में जबरदस्त झटका लगा. कांग्रेस उम्मीदवार नसीम अख्तर और बीजेपी से सुरेश सिंह रावत के बीच मुकाबला हुआ. इस चुनाव में 8 उम्मीदवार मैदान में थे. इस चुनाव में कांग्रेस को 48 हजार 723 और भाजपा को 90 हजार 23 मत मिले. कुल 1 लाख 95 हजार 51 मतदाता थे.
2018 के विधानसभा चुनाव में पुष्कर में कांग्रेस ने एक बार फिर नसीम अख्तर को मैदान में उतारा. वहीं, भाजपा ने सुरेश सिंह रावत को दोबारा टिकट दिया. इस चुनाव में भाजपा के सुरेश सिंह रावत को 84 हजार 860 मत और कांग्रेसी नसीम अख्तर को 75 हजार 471 मत मिले. चुनाव में कुल 12 उम्मीदवार मैदान में थे. कुल 2 लाख 30 हजार 462 मतदाता पुष्कर विधानसभा क्षेत्र में थे. उस वक्त पुष्कर विधानसभा क्षेत्र में 2 लाख 30 हजार 462 मतदाता थे. इनमें से 1 लाख 72 हजार 944 मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया था. 75.04 प्रतिशत पोलिंग हुई थी. बीजेपी से सुरेश रावत को 49.07 प्रतिशत और कांग्रेस से नसीम अख्तर को 43.64 प्रतिशत मत मिले थे.
चुनाव के लिए यह हैं दावेदार : पुष्कर विधानसभा चुनाव 2023 के लिए भाजपा और कांग्रेस में कई दावेदार है। बात करें कांग्रेस की तो नसीम अख्तर टिकट के लिये दावा ठोंक रही है। साथ ही नसीम अपने बेटे कर लिए भी टिकट देने की पार्टी से हिमायत कर रही है। पूर्व विधायक श्रीगोपाल बाहेती, धर्मेंद्र सिंह राठौड़, इकबाल छिपा, दामोदर शर्मा, विवेक पाराशर, राजेंद्र सिंह रावत आदि हैं. वहीं, बीजेपी से सुरेश सिंह रावत तीसरी बार अपना भाग्य आजमाने का प्रयास कर रहे हैं. इनके अलावा कपालेश्वर महादेव मंदिर के महंत सर्वानंद गिरी, पूर्व प्रधान अशोक सिंह रावत, डॉ. शैतान सिंह, मदन सिंह रावत, राजेंद्र महावर, जितेंद्र सिंह नोसल, कपालेश्वर महादेव मंदिर के महंत सेवानंद गिरी, सुदर्शन इंदौरिया शामिल हैं. बता दें कि सुदर्शन इंदौरिया सलेमाबाद निंबार्क पीठ के महंत श्रीजी श्याम शरण देवाचार्य के भाई हैं.
पुष्कर के चुनावी मुद्दे : पुष्कर विधानसभा क्षेत्र में पेयजल का मुद्दा हमेशा से रहा है. शहरी क्षेत्र में बीसलपुर परियोजना से जल पहुंच गया है, लेकिन पुष्कर क्षेत्र के कई गांव में आज भी पेयजल की समस्या बनी हुई है. पेयजल के अलावा सिंचाई के लिए भी नहर से पुष्कर में पानी लाने की मांग चुनाव में उठती रही है. पुष्कर के पवित्र सरोवर में सीवरेज का पानी जाने, घाटों की मरम्मत, पुष्कर को टेंपल टाउन घोषित करने, पुष्कर-मेड़ता रेल लाइन जोड़ने समेत कई क्षेत्रीय मुद्दे हैं. इस बार गहलोत सरकार ने पुष्कर के विकास के लिए पुष्कर विकास प्राधिकरण की घोषणा की है. जगतपिता ब्रह्मा मंदिर का पहली बार जीर्णोद्धार हुआ है. वहीं, सरोवर में सीवरेज का पानी जाने से रोकने पर भी काम हो रहा है. ऐसे में कांग्रेस अपने विकास कार्यों के दम पर पुष्कर की सीट जीतने के लिए आशान्वित है. जबकि बीजेपी गहलोत सरकार की विफलता को मुद्दा बनाकर मोदी सरकार के कार्य के बूते चुनाव मैदान में उतर चुकी है.