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पुष्कर में है कार्तिक स्नान का विशेष महत्व, एकादशी से पूर्णिमा तक समस्त देवी देवता बिराजते हैं यहां, जानिए क्यों

अंतर्राष्ट्रीय कार्तिक मेला 2022 भी पुष्कर की एक पहचान है. ब्रह्मनगरी में देश विदेश के साधकों, श्रद्धालुओं और सैलानियों का जमावड़ा लगता है. मान्यता है कि कार्तिक एकादशी से पूर्णिमा तक अन्य देवी देवताओं संग त्रिदेवों का भी निवास होता है.

Pushkar Kartik Snan 2022
कार्तिक स्नान का विशेष महत्व
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Published : Oct 30, 2022, 1:50 PM IST

Updated : Nov 4, 2022, 7:16 AM IST

अजमेर. ब्रह्मनगरी में अंतर्राष्ट्रीय कार्तिक मेला 2022 का शुभारंभ हो गया है (Pushkar Kartik Snan 2022). यूं तो कार्तिक माह में पुष्कर तीर्थ में स्थित पवित्र सरोवर में स्नान का विशेष महत्व है लेकिन एकादशी से पूर्णिमा तक पंच तीर्थ स्नान शुभ फल दायक माना गया है. बताया जाता है कि सभी तीर्थ, सभी नदियां और सभी देवी देवता और त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश का पांच दिन पुष्कर में वास होता है. इन पांच दिनों में पुष्कर की दिव्यता और आध्यात्मिक माहौल चरम पर होता है.

तीर्थ गुरु पुष्कर सदियों से हिंदुओं की आस्था का बड़ा केंद्र रहा है. सर्वविदित है कि यहां इकलौते जगतपिता ब्रह्मा का मंदिर है. सरोवर को ब्रह्म कमंडल से निकला पवित्र जल मानकर पूजा अर्चना की जाती है. सदियों से पुष्कर में देश के कोने-कोने से श्रद्धालु यहां आते रहे हैं और सैलानियों के आगमन ने ही पुष्कर के लोगों को आजीविका का एक नया जरिया मुहैया कराया है. कार्तिक मेले में बहुत कुछ होता है पशु मेला भी आकर्षण का केन्द्र रहा है. 70 बरस पहले जब लोगों के पास परिवहन के संसाधन नहीं थे. तब पशु ही एकमात्र साधन और धन था जिसे लेकर श्रद्धालु पुष्कर आया करते थे. यही वजह है कि पुष्कर कार्तिक मेले के साथ धीरे-धीरे पुष्कर पशु मेला का भी आयोजन पुष्कर में होने लगा.

वर्तमान में अंतरराष्ट्रीय पुष्कर कार्तिक मेले की पहचान विश्व पटल पर है. देसी ही नहीं विदेशी मेहमान भी पुष्कर मेले में यहां के अध्यात्म, नैसर्गिक सौंदर्य और लोक संस्कृति से प्रभावित होकर खींचे चले आते हैं. 2 वर्षों से पुष्कर मेले की रंगत फीकी पड़ी हुई थी लेकिन इस बार अंतरराष्ट्रीय पुष्कर कार्तिक मेला आयोजन हो रहा है मगर लम्पी बीमारी की वजह से पशु मेले को राज्य सरकार ने स्वीकृति नहीं दी है. यानी इस बार पुष्कर मेला अध्यात्म और लोक संस्कृति से जुड़ा होगा. विश्व में पुष्कर एक ऐसा स्थान है जहां से हर बार सृष्टि का प्रारंभ हुआ है.

कार्तिक स्नान का विशेष महत्व

ब्रह्म की नगरी में तीन पुष्कर- जगतपिता ब्रह्मा की नगरी पुष्कर का संबंध संपूर्ण दृष्टि से है. जगतपिता ब्रह्मा ने पृथ्वी से पहले त्रिपुष्कर बनाया था. इसके लिए ब्रह्मा ने अपने हाथ का कमल ब्रह्मलोक से नीचे फेंका वो कमल यहां आकर गिरा. उसे जेष्ठ पुष्कर कहते हैं. वहीं कमल का पुष्प दो अन्य स्थानों पर भी गिरा जिसे बूढ़ा और कनिष्क पुष्कर कहा जाता है. तीनों ही पुष्कर आस पास हैं. ज्यादातर श्रद्धालु मध्य पुष्कर पर ही आते है. इस कारण ये बड़ा है और इसका जल नारायण स्वरूप माना गया है. बताया जाता है कि पुष्कर में पूर्वजों के निमित्त श्राद्ध करने से घर में सुख शांति बनी रहती है और पूर्वजों को भी बैकुंठ में जगह मिलती है.

ये भी पढ़ें-Special : ऊंट पालकों का ETV Bharat पर छलका दर्द...बोले- सरकार भगा रही है, अब कहां जाएं

पुष्कर का सृष्टि निर्माण से नाता- धार्मिक मान्यता के अनुसार जगत पिता ब्रह्मा ने सृष्टि निर्माण से पहले पुष्कर में सृष्टि यज्ञ किया था. यह यज्ञ कार्तिक माह में एकादशी से पूर्णिमा तक किया गया था. त्रिदेव समेत सभी देवी देवता यज्ञ में शामिल हुए थे. उन्होंने पुष्कर के पवित्र सरोवर में स्नान किया था. यही नही सभी तीर्थ और नदियों ने भी ब्रह्मा के यज्ञ में शामिल हुई थी. ऐसे में पुष्कर सरोवर के जल को पवित्र माना जाता है. माना जाता है कि पंच तीर्थ स्नान के दिनों में त्रिदेव समेत सभी देवी देवता, सभी तीर्थ और नदियां पुष्कर में रहते है औऱ किसी ना किसी रूप में सरोवर में स्नान करने आते हैंं. यही वजह है कि पुष्कर में कार्तिक स्नान का काफी महत्व है.

तीर्थ पुरोहित पंडित अनिल शर्मा बताते हैं कि प्रयाग में वैशाख के महीने में स्नान का महत्व है एक ही प्रकार कार्तिक माह में पुष्कर में स्नान का महत्व है. यहां कार्तिक माह में स्नान करने से कई गुना पुण्य फल की प्राप्ति होती है, वही पापों का हनन होता है. उन्होंने बताया कि यूं तो पूरे कार्तिक महीने में स्नान का महत्व है लेकिन एकादशी से पूर्णिमा तक पुष्कर में स्नान करने से दिव्यता और पवित्रता व्यक्तित्व में आती है वही मनवांछित फल की प्राप्ति होती है.

पांच दिन पूर्ण शक्ति- तीर्थ पुरोहित पंडित रवि शर्मा बताते हैं कि वर्ष में 365 दिन होते हैं इनमें 5 दिन पुष्कर राज यहां रहते है शेष दिन वह अंतरिक्ष में रहते हैं यानी इन 5 दिनों में पुष्कर राज का आह्वान पूजा अर्चना के दौरान नहीं किया जाता है. जबकि 360 दिन पुष्कर के पवित्र सरोवर में पूजा अर्चना के दौरान पुष्कर राज का आह्वान किया जाता है. उन्होंने बताया कि पदम पुराण में उल्लेख है कि कार्तिक माह में इन 5 दिनों में पुष्कर के पवित्र सरोवर में स्नान करने से व्यक्ति अपने पूर्व जन्म से लेकर अब तक के पाप भी धो लेता है. उन्होंने बताया कि इन 5 दिनों में सभी सनातनी आकर स्नान, ध्यान, जप और दान करते हैं. पुष्कराज ( पवित्र सरोवर ) की चार परिक्रमा का विधान है. जिसे मौन रहकर किया जाता है. इससे पुष्कराज के आशीर्वाद से व्यक्ति कई गुना पुण्य फल मिलता है.

कार्तिक माह में स्नान की परंपरा- कार्तिक माह में स्नान का महत्व है. सुबह 4 बजे शीतल जल से स्नान फिर व्रत और उपवास भी किया जाता है. पुष्कर में कार्तिक स्नान के लिए श्रद्धालुओं की प्रत्येक दिन आवक बढ़ती जा रही है. सुबह 4 बजे से दोपहर तक पुष्कर पवित्र सरोवर में स्नान, पूजा- अर्चना का दौर जारी है. परिवार के साथ राजस्थान से ही नही अन्य राज्यों से भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु आ रहे हैं.

अजमेर. ब्रह्मनगरी में अंतर्राष्ट्रीय कार्तिक मेला 2022 का शुभारंभ हो गया है (Pushkar Kartik Snan 2022). यूं तो कार्तिक माह में पुष्कर तीर्थ में स्थित पवित्र सरोवर में स्नान का विशेष महत्व है लेकिन एकादशी से पूर्णिमा तक पंच तीर्थ स्नान शुभ फल दायक माना गया है. बताया जाता है कि सभी तीर्थ, सभी नदियां और सभी देवी देवता और त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश का पांच दिन पुष्कर में वास होता है. इन पांच दिनों में पुष्कर की दिव्यता और आध्यात्मिक माहौल चरम पर होता है.

तीर्थ गुरु पुष्कर सदियों से हिंदुओं की आस्था का बड़ा केंद्र रहा है. सर्वविदित है कि यहां इकलौते जगतपिता ब्रह्मा का मंदिर है. सरोवर को ब्रह्म कमंडल से निकला पवित्र जल मानकर पूजा अर्चना की जाती है. सदियों से पुष्कर में देश के कोने-कोने से श्रद्धालु यहां आते रहे हैं और सैलानियों के आगमन ने ही पुष्कर के लोगों को आजीविका का एक नया जरिया मुहैया कराया है. कार्तिक मेले में बहुत कुछ होता है पशु मेला भी आकर्षण का केन्द्र रहा है. 70 बरस पहले जब लोगों के पास परिवहन के संसाधन नहीं थे. तब पशु ही एकमात्र साधन और धन था जिसे लेकर श्रद्धालु पुष्कर आया करते थे. यही वजह है कि पुष्कर कार्तिक मेले के साथ धीरे-धीरे पुष्कर पशु मेला का भी आयोजन पुष्कर में होने लगा.

वर्तमान में अंतरराष्ट्रीय पुष्कर कार्तिक मेले की पहचान विश्व पटल पर है. देसी ही नहीं विदेशी मेहमान भी पुष्कर मेले में यहां के अध्यात्म, नैसर्गिक सौंदर्य और लोक संस्कृति से प्रभावित होकर खींचे चले आते हैं. 2 वर्षों से पुष्कर मेले की रंगत फीकी पड़ी हुई थी लेकिन इस बार अंतरराष्ट्रीय पुष्कर कार्तिक मेला आयोजन हो रहा है मगर लम्पी बीमारी की वजह से पशु मेले को राज्य सरकार ने स्वीकृति नहीं दी है. यानी इस बार पुष्कर मेला अध्यात्म और लोक संस्कृति से जुड़ा होगा. विश्व में पुष्कर एक ऐसा स्थान है जहां से हर बार सृष्टि का प्रारंभ हुआ है.

कार्तिक स्नान का विशेष महत्व

ब्रह्म की नगरी में तीन पुष्कर- जगतपिता ब्रह्मा की नगरी पुष्कर का संबंध संपूर्ण दृष्टि से है. जगतपिता ब्रह्मा ने पृथ्वी से पहले त्रिपुष्कर बनाया था. इसके लिए ब्रह्मा ने अपने हाथ का कमल ब्रह्मलोक से नीचे फेंका वो कमल यहां आकर गिरा. उसे जेष्ठ पुष्कर कहते हैं. वहीं कमल का पुष्प दो अन्य स्थानों पर भी गिरा जिसे बूढ़ा और कनिष्क पुष्कर कहा जाता है. तीनों ही पुष्कर आस पास हैं. ज्यादातर श्रद्धालु मध्य पुष्कर पर ही आते है. इस कारण ये बड़ा है और इसका जल नारायण स्वरूप माना गया है. बताया जाता है कि पुष्कर में पूर्वजों के निमित्त श्राद्ध करने से घर में सुख शांति बनी रहती है और पूर्वजों को भी बैकुंठ में जगह मिलती है.

ये भी पढ़ें-Special : ऊंट पालकों का ETV Bharat पर छलका दर्द...बोले- सरकार भगा रही है, अब कहां जाएं

पुष्कर का सृष्टि निर्माण से नाता- धार्मिक मान्यता के अनुसार जगत पिता ब्रह्मा ने सृष्टि निर्माण से पहले पुष्कर में सृष्टि यज्ञ किया था. यह यज्ञ कार्तिक माह में एकादशी से पूर्णिमा तक किया गया था. त्रिदेव समेत सभी देवी देवता यज्ञ में शामिल हुए थे. उन्होंने पुष्कर के पवित्र सरोवर में स्नान किया था. यही नही सभी तीर्थ और नदियों ने भी ब्रह्मा के यज्ञ में शामिल हुई थी. ऐसे में पुष्कर सरोवर के जल को पवित्र माना जाता है. माना जाता है कि पंच तीर्थ स्नान के दिनों में त्रिदेव समेत सभी देवी देवता, सभी तीर्थ और नदियां पुष्कर में रहते है औऱ किसी ना किसी रूप में सरोवर में स्नान करने आते हैंं. यही वजह है कि पुष्कर में कार्तिक स्नान का काफी महत्व है.

तीर्थ पुरोहित पंडित अनिल शर्मा बताते हैं कि प्रयाग में वैशाख के महीने में स्नान का महत्व है एक ही प्रकार कार्तिक माह में पुष्कर में स्नान का महत्व है. यहां कार्तिक माह में स्नान करने से कई गुना पुण्य फल की प्राप्ति होती है, वही पापों का हनन होता है. उन्होंने बताया कि यूं तो पूरे कार्तिक महीने में स्नान का महत्व है लेकिन एकादशी से पूर्णिमा तक पुष्कर में स्नान करने से दिव्यता और पवित्रता व्यक्तित्व में आती है वही मनवांछित फल की प्राप्ति होती है.

पांच दिन पूर्ण शक्ति- तीर्थ पुरोहित पंडित रवि शर्मा बताते हैं कि वर्ष में 365 दिन होते हैं इनमें 5 दिन पुष्कर राज यहां रहते है शेष दिन वह अंतरिक्ष में रहते हैं यानी इन 5 दिनों में पुष्कर राज का आह्वान पूजा अर्चना के दौरान नहीं किया जाता है. जबकि 360 दिन पुष्कर के पवित्र सरोवर में पूजा अर्चना के दौरान पुष्कर राज का आह्वान किया जाता है. उन्होंने बताया कि पदम पुराण में उल्लेख है कि कार्तिक माह में इन 5 दिनों में पुष्कर के पवित्र सरोवर में स्नान करने से व्यक्ति अपने पूर्व जन्म से लेकर अब तक के पाप भी धो लेता है. उन्होंने बताया कि इन 5 दिनों में सभी सनातनी आकर स्नान, ध्यान, जप और दान करते हैं. पुष्कराज ( पवित्र सरोवर ) की चार परिक्रमा का विधान है. जिसे मौन रहकर किया जाता है. इससे पुष्कराज के आशीर्वाद से व्यक्ति कई गुना पुण्य फल मिलता है.

कार्तिक माह में स्नान की परंपरा- कार्तिक माह में स्नान का महत्व है. सुबह 4 बजे शीतल जल से स्नान फिर व्रत और उपवास भी किया जाता है. पुष्कर में कार्तिक स्नान के लिए श्रद्धालुओं की प्रत्येक दिन आवक बढ़ती जा रही है. सुबह 4 बजे से दोपहर तक पुष्कर पवित्र सरोवर में स्नान, पूजा- अर्चना का दौर जारी है. परिवार के साथ राजस्थान से ही नही अन्य राज्यों से भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु आ रहे हैं.

Last Updated : Nov 4, 2022, 7:16 AM IST
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