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SPECIAL: ब्रह्मा भूल गए तो महादेव ने की थी यहां विचित्र लीला, तब से अटमटेश्वर कहलाए

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Published : Jul 31, 2023, 7:45 AM IST

Updated : Jul 31, 2023, 10:30 AM IST

जगतपिता ब्रह्मा की नगरी पुष्कर है. यही वजह है कि पुष्कर हिंदुओ की आस्था का बड़ा केंद्र है. यहां के अध्यात्म माहौल और तपोभूमि से आकर्षित होकर देश से ही नही विदेशों से भी श्रद्धालु पुष्कर आते हैं. लेकिन यह कम ही लोग जानते है कि तीर्थ गुरु पुष्कर सरोवर में स्नान के बाद जगतपिता ब्रह्मा के दर्शन करने से पहले उन्हें महादेव के इस स्थान के दर्शन करना आवश्यक होता है. जानते है पुष्कर के अटमटेश्वर महादेव के दर्शन के साथ विचित्र लीला की कथा....

अटमटेश्वर शिव लिंग
अटमटेश्वर शिव लिंग
महादेव ने की थी यहां विचित्र लीला

अजमेर. भगवान शिव को श्रावण मास प्रिय है. श्रावण मास में भगवान भोलेनाथ की आराधना की जाती है. ईटीवी भारत आपको पुष्कर के अटमटेश्वर महादेव की विचित्र लीला के बारे में बता रहा है. जिसका संबंध जगतपिता ब्रह्मा की एक भूल से है. जिस कारण महादेव को विचित्र वेश में आकर विचित्र लीला करनी पड़ी. पुष्कर में आने वाले श्रद्धालू कम ही जानते है कि पुष्कर सरोवर और जगतपिता के दर्शन से पहले उन्हें अटमटेश्वर महादेव के दर्शन करने से तीर्थ का पूर्ण फल प्राप्त होता है.

जगतपिता ब्रह्मा की नगरी पुष्कर है. यही वजह है कि पुष्कर हिंदुओ की आस्था का बड़ा केंद्र है. यहां के अध्यात्म माहौल और तपोभूमि से आकर्षित होकर देश से ही नही विदेशों से भी श्रद्धालु पुष्कर आते हैं. लेकिन यह कम ही लोग जानते है कि तीर्थ गुरु पुष्कर सरोवर में स्नान के बाद जगतपिता ब्रह्मा के दर्शन करने से पहले उन्हें महादेव के इस स्थान के दर्शन करना आवश्यक होता है. अन्यथा पुष्कर तीर्थ का फल तीर्थयात्री को नही मिलता है. ऐसी मान्यता है कि जगतपिता ब्रह्मा ने सृष्ठि की रचना से पहले पुष्कर में यज्ञ किया था. यज्ञ में उचित स्थान नही मिलने से कुपित महादेव ने जगतपिता ब्रह्मा की भूल सुधारने के लिए ऐसी विचित्र लीला रची की यज्ञ में शामिल सभी देवी देवताओं में हड़कंप मच गया. शिव की लीला से यज्ञ स्थल पर ही नही बल्कि पूरे पुष्कर में कपाल ही कपाल (नर मुंड) हो गए. जब भगवान ब्रह्मा को अपनी भूल का भान हुआ. तब से हर यज्ञ और अनुष्ठान में महादेव को विशेष भाग देना अनिवार्य हो गया जो आज भी अनवरत जारी है. वराह घाट के नजदीक अटमटेश्वर महादेव का मंदिर सबसे प्राचीन शिव मंदिरों में से एक है. वर्षो से अटमटेश्वर महादेव का मंदिर शिव भक्तों के लिए आस्था का बड़ा केंद्र रहा है. यू तो हर रोज महादेव की नियमित रूप से पूजा अर्चना होती है लेकिन श्रवण मास में मंदिर में शिव भक्तों का तांता लगा रहता है.धरती से 15 फुट नीचे है मंदिर : पुष्कर के वराह घाट के नजदीक प्राचीन अटमटेश्वर महादेव का मंदिर है. यहां मंदिर में शिवलिंग स्वयंभू है और आदिकाल से यही बिराजमान है. मंदिर के ठीक ऊपर महादेव का एक और मंदिर है जो सर्वेश्वर महादेव के नाम से विख्यात है. दोनों स्थान शिव भक्तों के लिए विशेष है.

पढ़ें Keoladeo Shiv Temple : 350 साल पहले स्वयंभू शिवलिंग मिला, यहां गाय करती थी दुग्धाभिषेक...आज भी दर्शन करने आते हैं नागदेव

यह है अटमटेश्वर महादेव की कथा : पुष्कर के पवित्र सरोवर में वराह घाट के प्रधान पंडित रवि शर्मा ने बताया कि जगतपिता ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना से पहले यज्ञ किया था. यज्ञ में सभी देवी देवताओं का आह्वान हुआ. लेकिन महादेव को आमंत्रित करना भगवान ब्रह्मा देव भूल गए. बल्कि उनके लिए यज्ञ में उचित स्थान भी नहीं रखा गया. इससे कुपित होकर महादेव ने विचित्र लीला की. यज्ञ में शामिल होने के लिए महादेव एक हाथ में खपर और दूसरे हाथ में कपाल (नरमुंड) लेकर पहुच गए. अटपटे रूप में महादेव को कोई पहचान नहीं सका. यज्ञ स्थल के मुख्य द्वारपाल इंद्र और कुबेर ने विचित्र रूप में आए महादेव को रोक दिया. यज्ञ में शामिल सभी विप्रजन ने भी विरोध करते हुए कहा कि तामसी वस्तुओं और अघोर वेष में यज्ञ में शामिल नहीं हो सकते. इस पर महादेव ने कपाल यज्ञ स्थल के बाहर रखा और खुद सरोवर में स्नान के लिए चले गए.

कपाल को देख एक विप्र ने डंडे से उसे दूर फ़ैक दिया. इसी तरह कपाल को डंडे से लोग आगे फैकते रहे. जितनी बार भी कपाल को फेंका गया उतने ही कपाल प्रकट होते गए. हालात ऐसे बन गए कि पुष्कर में जहां देखो वहां कपाल नजर आने लगे. यज्ञ स्थल पर भी कपाल ही कपाल हो गए. पंडित शर्मा बताते है कि यज्ञ स्थल श्मशान सा प्रतीत होने लगा और हर तरफ कपाल से भय व्याप्त हो गया. तब इस घटना को यज्ञ में मौजूद देवता और विप्र किसी मायावी का कृत्य मान रहे थे. किसी को समझ नहीं आ रहा था आखिर यह सब क्यों हो रहा है. जगतपिता ब्रह्मा ने जब ध्यान लगाकर देखा तो उन्हें समझते देर नहीं लगी कि यह कोई मायावी नहीं बल्कि महादेव की लीला है. ब्रह्मा को अपनी भूल का भान हो गया और उन्होंने चंद्रशेखर स्त्रोत गाकर महादेव को प्रसन्न किया. तब जाकर कपाल यज्ञ स्थल से ही नहीं बल्कि पुष्कर से गायब हो गए.

ब्रह्मा ने महादेव को यज्ञ के सफल होने एवं उसकी सुरक्षा का आग्रह किया. बताया जाता है कि जगतपिता ब्रह्मा ने यज्ञ, हवन एवं धार्मिक अनुष्ठानों में महादेव का भाग नहीं होने पर उसके पूर्ण नहीं होने का वचन दिया. तब से आज तक हर यज्ञ, हवन और अनुष्ठान में महादेव का विशेष भाग रहता है. बताया जाता है कि ब्रह्मा के वचनों के अनुसार ब्रह्मा नगरी में सरोवर में स्नान कर जगतपिता ब्रह्मा के दर्शन करने से पूर्व अटमटेश्वर के दर्शन करने से ही पुष्कर तीर्थ का फल मिलता है. पंडित रवि शर्मा बताते हैं कि अटमटेश्वर महादेव के ठीक ऊपर सर्वेश्वर महादेव का मंदिर है जो अति प्राचीन है. मुगलों की ओर से जब हिंदू मंदिर तोड़े गए थे तब सर्वेश्वर मंदिर को भी क्षति पहुंचाई गई थी. बाद में अजमेर में मराठों का राज आने पर मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया गया. वहीं पंचमुखी शिवलिंग की स्थापना भी मंदिर की गई. बताया जाता है कि इस मंदिर का निर्माण अजमेर के चौहान वंश के राजा अर्णोराज ने 1100 ईसवी से पूर्व करवाया था. पंडित शर्मा बताते है कि वर्षो पहले अटपटेश्वर के नाम से महादेव जाने जाते थे. लेकिन धीरे धीरे महादेव यहां अटमटेश्वर के नाम से विख्यात हुए.

गर्मी में ठंडक और सर्दी में गर्म रहता है मंदिर : पंडित रवि शर्मा बताते हैं कि अटमटेश्वर महादेव का मंदिर अति प्राचीन है और जमीन तल से करीब 10 फीट नीचे है. मंदिर गर्भ में गर्मियों में ठंडक रहती है. जबकि सर्दियों में यहां गर्मी का अहसास होता है. पुष्कर के लोगों में ही नही तीर्थ यात्रियों में भी मंदिर को लेकर गहरी आस्था है. उन्होंने बताया कि मंदिर में लोग रोज पूजा अर्चना करते हैं लेकिन सावन में यहां विशेष अनुष्ठान अभिषेक होते हैं वहीं शाम को सावन में हर दिन अटमटेश्वर महादेव का नयनाभिराम श्रृंगार किया जाता है.

जती ने उतारा था मंदिर : अटमटेश्वर महादेव के महंत बंशीधर जती बताते है कि सदियों पूर्व तंत्र साधना से राक्षस मंदिरों को हवा में उड़ाकर ले जाते थे. पुष्कर में ऐसे 6 मंदिर है जिनके बारे में बताया जाता है कि वह हवा में उड़ाका ले जाए जा रहे थे तब उनके पूर्वज जती ने अपनी तंत्र विद्या से मंदिरों को पुष्कर की धरती पर उतारा. उनमें से एक सर्वेश्वर महादेव का मंदिर है. मंदिर के महंत पुत्र गुलाब गिरी बताते है कि अटमटेश्वर महादेव आदिकाल से यहां विराजे हैं वही सर्वेश्वर महादेव का मंदिर बीस वर्षों से है. बाद में मुगल बादशाह ओरंगजेब ने हिन्दू मंदिर तुड़वाए तक सर्वेश्वर महादेव मंदिर को भी क्षति पहुचाई थी। लेकिन वह मंदिर को विध्वंस नही कर पाए. बाद में मराठाओ ने मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया.

महादेव ने की थी यहां विचित्र लीला

अजमेर. भगवान शिव को श्रावण मास प्रिय है. श्रावण मास में भगवान भोलेनाथ की आराधना की जाती है. ईटीवी भारत आपको पुष्कर के अटमटेश्वर महादेव की विचित्र लीला के बारे में बता रहा है. जिसका संबंध जगतपिता ब्रह्मा की एक भूल से है. जिस कारण महादेव को विचित्र वेश में आकर विचित्र लीला करनी पड़ी. पुष्कर में आने वाले श्रद्धालू कम ही जानते है कि पुष्कर सरोवर और जगतपिता के दर्शन से पहले उन्हें अटमटेश्वर महादेव के दर्शन करने से तीर्थ का पूर्ण फल प्राप्त होता है.

जगतपिता ब्रह्मा की नगरी पुष्कर है. यही वजह है कि पुष्कर हिंदुओ की आस्था का बड़ा केंद्र है. यहां के अध्यात्म माहौल और तपोभूमि से आकर्षित होकर देश से ही नही विदेशों से भी श्रद्धालु पुष्कर आते हैं. लेकिन यह कम ही लोग जानते है कि तीर्थ गुरु पुष्कर सरोवर में स्नान के बाद जगतपिता ब्रह्मा के दर्शन करने से पहले उन्हें महादेव के इस स्थान के दर्शन करना आवश्यक होता है. अन्यथा पुष्कर तीर्थ का फल तीर्थयात्री को नही मिलता है. ऐसी मान्यता है कि जगतपिता ब्रह्मा ने सृष्ठि की रचना से पहले पुष्कर में यज्ञ किया था. यज्ञ में उचित स्थान नही मिलने से कुपित महादेव ने जगतपिता ब्रह्मा की भूल सुधारने के लिए ऐसी विचित्र लीला रची की यज्ञ में शामिल सभी देवी देवताओं में हड़कंप मच गया. शिव की लीला से यज्ञ स्थल पर ही नही बल्कि पूरे पुष्कर में कपाल ही कपाल (नर मुंड) हो गए. जब भगवान ब्रह्मा को अपनी भूल का भान हुआ. तब से हर यज्ञ और अनुष्ठान में महादेव को विशेष भाग देना अनिवार्य हो गया जो आज भी अनवरत जारी है. वराह घाट के नजदीक अटमटेश्वर महादेव का मंदिर सबसे प्राचीन शिव मंदिरों में से एक है. वर्षो से अटमटेश्वर महादेव का मंदिर शिव भक्तों के लिए आस्था का बड़ा केंद्र रहा है. यू तो हर रोज महादेव की नियमित रूप से पूजा अर्चना होती है लेकिन श्रवण मास में मंदिर में शिव भक्तों का तांता लगा रहता है.धरती से 15 फुट नीचे है मंदिर : पुष्कर के वराह घाट के नजदीक प्राचीन अटमटेश्वर महादेव का मंदिर है. यहां मंदिर में शिवलिंग स्वयंभू है और आदिकाल से यही बिराजमान है. मंदिर के ठीक ऊपर महादेव का एक और मंदिर है जो सर्वेश्वर महादेव के नाम से विख्यात है. दोनों स्थान शिव भक्तों के लिए विशेष है.

पढ़ें Keoladeo Shiv Temple : 350 साल पहले स्वयंभू शिवलिंग मिला, यहां गाय करती थी दुग्धाभिषेक...आज भी दर्शन करने आते हैं नागदेव

यह है अटमटेश्वर महादेव की कथा : पुष्कर के पवित्र सरोवर में वराह घाट के प्रधान पंडित रवि शर्मा ने बताया कि जगतपिता ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना से पहले यज्ञ किया था. यज्ञ में सभी देवी देवताओं का आह्वान हुआ. लेकिन महादेव को आमंत्रित करना भगवान ब्रह्मा देव भूल गए. बल्कि उनके लिए यज्ञ में उचित स्थान भी नहीं रखा गया. इससे कुपित होकर महादेव ने विचित्र लीला की. यज्ञ में शामिल होने के लिए महादेव एक हाथ में खपर और दूसरे हाथ में कपाल (नरमुंड) लेकर पहुच गए. अटपटे रूप में महादेव को कोई पहचान नहीं सका. यज्ञ स्थल के मुख्य द्वारपाल इंद्र और कुबेर ने विचित्र रूप में आए महादेव को रोक दिया. यज्ञ में शामिल सभी विप्रजन ने भी विरोध करते हुए कहा कि तामसी वस्तुओं और अघोर वेष में यज्ञ में शामिल नहीं हो सकते. इस पर महादेव ने कपाल यज्ञ स्थल के बाहर रखा और खुद सरोवर में स्नान के लिए चले गए.

कपाल को देख एक विप्र ने डंडे से उसे दूर फ़ैक दिया. इसी तरह कपाल को डंडे से लोग आगे फैकते रहे. जितनी बार भी कपाल को फेंका गया उतने ही कपाल प्रकट होते गए. हालात ऐसे बन गए कि पुष्कर में जहां देखो वहां कपाल नजर आने लगे. यज्ञ स्थल पर भी कपाल ही कपाल हो गए. पंडित शर्मा बताते है कि यज्ञ स्थल श्मशान सा प्रतीत होने लगा और हर तरफ कपाल से भय व्याप्त हो गया. तब इस घटना को यज्ञ में मौजूद देवता और विप्र किसी मायावी का कृत्य मान रहे थे. किसी को समझ नहीं आ रहा था आखिर यह सब क्यों हो रहा है. जगतपिता ब्रह्मा ने जब ध्यान लगाकर देखा तो उन्हें समझते देर नहीं लगी कि यह कोई मायावी नहीं बल्कि महादेव की लीला है. ब्रह्मा को अपनी भूल का भान हो गया और उन्होंने चंद्रशेखर स्त्रोत गाकर महादेव को प्रसन्न किया. तब जाकर कपाल यज्ञ स्थल से ही नहीं बल्कि पुष्कर से गायब हो गए.

ब्रह्मा ने महादेव को यज्ञ के सफल होने एवं उसकी सुरक्षा का आग्रह किया. बताया जाता है कि जगतपिता ब्रह्मा ने यज्ञ, हवन एवं धार्मिक अनुष्ठानों में महादेव का भाग नहीं होने पर उसके पूर्ण नहीं होने का वचन दिया. तब से आज तक हर यज्ञ, हवन और अनुष्ठान में महादेव का विशेष भाग रहता है. बताया जाता है कि ब्रह्मा के वचनों के अनुसार ब्रह्मा नगरी में सरोवर में स्नान कर जगतपिता ब्रह्मा के दर्शन करने से पूर्व अटमटेश्वर के दर्शन करने से ही पुष्कर तीर्थ का फल मिलता है. पंडित रवि शर्मा बताते हैं कि अटमटेश्वर महादेव के ठीक ऊपर सर्वेश्वर महादेव का मंदिर है जो अति प्राचीन है. मुगलों की ओर से जब हिंदू मंदिर तोड़े गए थे तब सर्वेश्वर मंदिर को भी क्षति पहुंचाई गई थी. बाद में अजमेर में मराठों का राज आने पर मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया गया. वहीं पंचमुखी शिवलिंग की स्थापना भी मंदिर की गई. बताया जाता है कि इस मंदिर का निर्माण अजमेर के चौहान वंश के राजा अर्णोराज ने 1100 ईसवी से पूर्व करवाया था. पंडित शर्मा बताते है कि वर्षो पहले अटपटेश्वर के नाम से महादेव जाने जाते थे. लेकिन धीरे धीरे महादेव यहां अटमटेश्वर के नाम से विख्यात हुए.

गर्मी में ठंडक और सर्दी में गर्म रहता है मंदिर : पंडित रवि शर्मा बताते हैं कि अटमटेश्वर महादेव का मंदिर अति प्राचीन है और जमीन तल से करीब 10 फीट नीचे है. मंदिर गर्भ में गर्मियों में ठंडक रहती है. जबकि सर्दियों में यहां गर्मी का अहसास होता है. पुष्कर के लोगों में ही नही तीर्थ यात्रियों में भी मंदिर को लेकर गहरी आस्था है. उन्होंने बताया कि मंदिर में लोग रोज पूजा अर्चना करते हैं लेकिन सावन में यहां विशेष अनुष्ठान अभिषेक होते हैं वहीं शाम को सावन में हर दिन अटमटेश्वर महादेव का नयनाभिराम श्रृंगार किया जाता है.

जती ने उतारा था मंदिर : अटमटेश्वर महादेव के महंत बंशीधर जती बताते है कि सदियों पूर्व तंत्र साधना से राक्षस मंदिरों को हवा में उड़ाकर ले जाते थे. पुष्कर में ऐसे 6 मंदिर है जिनके बारे में बताया जाता है कि वह हवा में उड़ाका ले जाए जा रहे थे तब उनके पूर्वज जती ने अपनी तंत्र विद्या से मंदिरों को पुष्कर की धरती पर उतारा. उनमें से एक सर्वेश्वर महादेव का मंदिर है. मंदिर के महंत पुत्र गुलाब गिरी बताते है कि अटमटेश्वर महादेव आदिकाल से यहां विराजे हैं वही सर्वेश्वर महादेव का मंदिर बीस वर्षों से है. बाद में मुगल बादशाह ओरंगजेब ने हिन्दू मंदिर तुड़वाए तक सर्वेश्वर महादेव मंदिर को भी क्षति पहुचाई थी। लेकिन वह मंदिर को विध्वंस नही कर पाए. बाद में मराठाओ ने मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया.

Last Updated : Jul 31, 2023, 10:30 AM IST
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