श्रीमाधोपुर (सीकर). राजस्थान में अब कई शहर ऐसे हैं, जहां की संस्कृति में कुछ साल पहले की तुलना में काफी ज्यादा बदलाव आ गया है. बदलते वक्त के साथ कुछ लोग पुरानी लोक संस्कृति को संजोए रखने की जतन तो करते हैं, लेकिन ये इतना आसान नहीं होता. लोक संस्कृति के कई नजारों के साथ ही लोक संस्कृति के पकवानों की महक भी लुप्त हो जा रही है.
लोक संस्कृति के पकवान अलग ही तरह के अहसास कराते हैं. इन्हीं पकवानों में मालपुए, जलेबी और कंगन भी है. सीकर के श्रीमाधोपुर मे एक दशक पहले तक मालपुए, जलेबी और कंगन की दुकानों का बाजार लगता था. मालपुओं और गर्मागर्म जलेबी की महक लोगों को इनकी दुकानों की ओर खींच लाती थी और अक्सर लोग बड़े ही चाव से इन्हें खाते थे. लेकिन, मावे के मिठाईयों का चलन बढ़ने के साथ ही ये बाजार से गायब हो गए. अब शहर में मालपुओं और जलेबी की इक्का-दुक्का दुकाने रह गई हैं. अब सिर्फ सोलह दिन तक चलने वाले पितृपक्ष (श्राद्ध पक्ष) में ही मालपुए, जलेबी और कंगन की महक आती है.
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हलवाई हीरालाल सैनी ने बताया कि एक दशक पहले तक मालपुए और जलेबी ही पहली पसंद हुआ करते थे. सुबह से शाम तक मालपुए और जलेबी की दुकानों पर भीड़ लगी रहती थी, लेकिन अब कुछ ही लोग ही इन दोनों की मांग करते हैं. इसलिए सिर्फ श्राद्ध पक्ष में ही मालपुए और कंगन बनते हैं.