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Special: घोड़े सी ताकत और फुर्ती के धनी नागौरी बैल, दूध और तेल पिलाते हैं पशुपालक, कीमत लाखों में

नागौर के श्रीरामदेव पशु मेले को देशभर में अलग पहचान दिलाने में नागौरी नस्ल के बैलों की अपनी अलग भूमिका है. घोड़े जैसी ताकत और फुर्ती और तगड़े डील-डौल के के कारण नागौरी नस्ल के बैलों को देखते ही पहचाना जा सकता है. पशुपालक भी इन्हें अपने बच्चों की तरह नाज से पालते हैं. नागौरी नस्ल के बैलों की इन तमाम खूबियों को जानिए आज की खास पेशकश में...

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घोड़े सी ताकत और फुर्ती के धनी नागौरी बैल
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Published : Jan 31, 2020, 6:39 PM IST

नागौर. पशुओं की खरीद-फरोख्त के लिए देश ही नहीं दुनिया में भी नागौर के श्रीरामदेव पशु मेले की अपनी अलग ही पहचान है. इसीलिए सरकारी रिकॉर्ड में भी इसे अंतरराष्ट्रीय ख्याति का बताया जाता है. इस मेले को देश और दुनिया मशहूर बनाने में नागौरी नस्ल के बैलों का भी कम योगदान नहीं है. मजबूत कद-काठी, गजब की ताकत और उससे भी ज्यादा फुर्ती नागौरी नस्ल के बैलों को अन्य नस्लों से अलग करती है.

घोड़े सी ताकत और फुर्ती के धनी नागौरी बैल

इस नस्ल के बछड़े बचपन से होते हैं मजबूत...

नागौरी नस्ल का एक डेढ़ साल का बछड़ा खेत जोतने में सक्षम होता है. आज अत्याधुनिक तकनीक के कारण खेती का अधिकतर काम मशीन से होता है, लेकिन देश के एक बड़े इलाके में कम जोत वाले किसान आज भी बैलों से ही खेत जोतते हैं. इनमें से अधिकतर किसानों की पहली पसंद नागौरी बैल ही हैं. यही कारण है कि नागौर के पशु मेले में प्रदेश के साथ ही दिल्ली, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, पंजाब और गुजरात तक से किसान आते हैं और नागौरी नस्ल के बैल खरीद ले जाते हैं.

यह भी पढे़ं- Special: जिस वर्ग को सबसे ज्यादा फायदा पहुंचाना चाहते हैं PM मोदी, उसे ही बजट के बारे में कुछ नहीं पता

खाना में पिलाया जाता है दूध-तेल...

नागौरी नस्ल के बैलों को पालने वाले किसान बताते हैं कि वे इन्हें अपने बच्चों की तरह पालते हैं. रोज इन्हें दूध-तेल पिलाया जाता है और खास तौर पर बना दलिया खिलाया जाता है.एक और खास बात है कि पशुपालक नियमित रूप से अपने हाथों से इन्हें नहलाते भी हैं.

बदलते समय के साथ मशीनों ने ले ली जगह...

हालांकि, तीन साल से छोटे बछड़ों की बिक्री पर लगी रोक के बाद पशुपालकों के लिए नागौरी नस्ल के बैलों को पालना काफी महंगा पड़ रहा है. इसके चलते कई पशुपालकों ने इनसे मुंह भी मोड़ लिया है और मशीनों का इस्तेमाल किया जाने लगा है, लेकिन अभी भी इस नस्ल के बैलों के मुरीद कई किसान और पशुपालक हैं.

यह भी पढ़ें- स्पेशल: बड़ी मुश्किल से पढ़ाई का खर्चा पाने वाले 'चंद्रपाल' में गजब का हुनर, हूबहू चित्रकारी करने में माहिर

नागौरी नस्ल के तीन साल से छोटे बछड़ों की बिक्री पर लगी रोक को हटवाने की मांग किसान लंबे समय से उठा रहे हैं, लेकिन अभी यह मामला कानूनी पेचीदगियों में उलझा हुआ है. अब देखना यह है कि किसानों की यह मांग कब पूरी होती है. किसानों की यह मांग पूरी होने के बाद एक बार फिर न केवल नागौरी नस्ल के बैलों की मांग बढ़ने की उम्मीद है, बल्कि किसानों और पशुपालकों को भी लगता है कि इसके बाद एक बार फिर उनके दिन फिरेंगे.

नागौर. पशुओं की खरीद-फरोख्त के लिए देश ही नहीं दुनिया में भी नागौर के श्रीरामदेव पशु मेले की अपनी अलग ही पहचान है. इसीलिए सरकारी रिकॉर्ड में भी इसे अंतरराष्ट्रीय ख्याति का बताया जाता है. इस मेले को देश और दुनिया मशहूर बनाने में नागौरी नस्ल के बैलों का भी कम योगदान नहीं है. मजबूत कद-काठी, गजब की ताकत और उससे भी ज्यादा फुर्ती नागौरी नस्ल के बैलों को अन्य नस्लों से अलग करती है.

घोड़े सी ताकत और फुर्ती के धनी नागौरी बैल

इस नस्ल के बछड़े बचपन से होते हैं मजबूत...

नागौरी नस्ल का एक डेढ़ साल का बछड़ा खेत जोतने में सक्षम होता है. आज अत्याधुनिक तकनीक के कारण खेती का अधिकतर काम मशीन से होता है, लेकिन देश के एक बड़े इलाके में कम जोत वाले किसान आज भी बैलों से ही खेत जोतते हैं. इनमें से अधिकतर किसानों की पहली पसंद नागौरी बैल ही हैं. यही कारण है कि नागौर के पशु मेले में प्रदेश के साथ ही दिल्ली, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, पंजाब और गुजरात तक से किसान आते हैं और नागौरी नस्ल के बैल खरीद ले जाते हैं.

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खाना में पिलाया जाता है दूध-तेल...

नागौरी नस्ल के बैलों को पालने वाले किसान बताते हैं कि वे इन्हें अपने बच्चों की तरह पालते हैं. रोज इन्हें दूध-तेल पिलाया जाता है और खास तौर पर बना दलिया खिलाया जाता है.एक और खास बात है कि पशुपालक नियमित रूप से अपने हाथों से इन्हें नहलाते भी हैं.

बदलते समय के साथ मशीनों ने ले ली जगह...

हालांकि, तीन साल से छोटे बछड़ों की बिक्री पर लगी रोक के बाद पशुपालकों के लिए नागौरी नस्ल के बैलों को पालना काफी महंगा पड़ रहा है. इसके चलते कई पशुपालकों ने इनसे मुंह भी मोड़ लिया है और मशीनों का इस्तेमाल किया जाने लगा है, लेकिन अभी भी इस नस्ल के बैलों के मुरीद कई किसान और पशुपालक हैं.

यह भी पढ़ें- स्पेशल: बड़ी मुश्किल से पढ़ाई का खर्चा पाने वाले 'चंद्रपाल' में गजब का हुनर, हूबहू चित्रकारी करने में माहिर

नागौरी नस्ल के तीन साल से छोटे बछड़ों की बिक्री पर लगी रोक को हटवाने की मांग किसान लंबे समय से उठा रहे हैं, लेकिन अभी यह मामला कानूनी पेचीदगियों में उलझा हुआ है. अब देखना यह है कि किसानों की यह मांग कब पूरी होती है. किसानों की यह मांग पूरी होने के बाद एक बार फिर न केवल नागौरी नस्ल के बैलों की मांग बढ़ने की उम्मीद है, बल्कि किसानों और पशुपालकों को भी लगता है कि इसके बाद एक बार फिर उनके दिन फिरेंगे.

Intro:नागौर के श्रीरामदेव पशु मेले को देशभर में अलग पहचान दिलाने में नागौरी नस्ल के बैलों की अपनी अलग भूमिका है। घोड़े जैसी ताकत और फुर्ती और तगड़े डील-डौल के के कारण नागौरी नस्ल के बैलों को देखते ही पहचाना जा सकता है। पशुपालक भी इन्हें अपने बच्चों की तरह नाज से पालते हैं। नागौरी नस्ल के बैलों की इन तमाम खूबियों को जानिए आज की खास पेशकश में...


Body:नागौर. पशुओं की खरीद-फरोख्त के लिए देश ही नहीं दुनिया में भी नागौर के श्रीरामदेव पशु मेले की अपनी अलग ही पहचान है। इसीलिए सरकारी रिकॉर्ड में भी इसे अंतरराष्ट्रीय ख्याति का बताया जाता है। इस मेले को देश और दुनिया मशहूर बनाने में नागौरी नस्ल के बैलों का भी कम योगदान नहीं है। मजबूत कद-काठी, गजब की ताकत और उससे भी ज्यादा फुर्ती नागौरी नस्ल के बैलों को अन्य नस्लों से अलग करती है।
नागौरी नस्ल का एक डेढ़ साल का बछड़ा खेत जोतने में सक्षम होता है। आज अत्याधुनिक तकनीक के कारण खेती का अधिकतर काम मशीन से होता है। लेकिन देश के एक बड़े इलाके में कम जोत वाले किसान आज भी बैलों से ही खेत जोतते हैं। इनमें से अधिकतर किसानों की पहली पसंद नागौरी बैल ही हैं। यही कारण है कि नागौर के पशु मेले में प्रदेश के साथ ही दिल्ली, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, पंजाब और गुजरात तक से किसान आते हैं और नागौरी नस्ल के बैल खरीद ले जाते हैं।
नागौरी नस्ल के बैलों को पालने वाले किसान बताते हैं कि वे इन्हें अपने बच्चों की तरह पालते हैं। रोज इन्हें दूध-तेल पिलाया जाता है और खास तौर पर बना दलिया खिलाया जाता है। एक और खास बात है कि पशुपालक नियमित रूप से अपने हाथों से इन्हें नहलाते भी हैं।
हालांकि, तीन साल से छोटे बछड़ों की बिक्री पर लगी रोक के बाद पशुपालकों के लिए नागौरी नस्ल के बैलों को पालना काफी महंगा पड़ रहा है। इसके चलते कई पशुपालकों ने इनसे मुंह भी मोड़ लिया है। लेकिन अभी भी इस नस्ल के बैलों के मुरीद कई किसान और पशुपालक हैं।


Conclusion:नागौरी नस्ल के तीन साल से छोटे बछड़ों की बिक्री पर लगी रोक को हटवाने की मांग किसान लंबे समय से उठा रहे हैं। लेकिन अभी यह मामला कानूनी पेचीदगियों में उलझा हुआ है। अब देखना यह है कि किसानों की यह मांग कब पूरी होती है। किसानों की यह मांग पूरी होने के बाद एक बार फिर न केवल नागौरी नस्ल के बैलों की मांग बढ़ने की उम्मीद है। बल्कि किसानों और पशुपालकों को भी लगता है कि इसके बाद एक बार फिर उनके दिन फिरेंगे।
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बाईट 01- भगवानाराम, पशुपालक, नागौर।
बाईट 02-दीपक भाई, किसान, गुजरात।
बाईट 03-भगवानाराम, पशुपालक, नागौर।
बाईट 04-भगवानाराम, पशुपालक, नागौर।
बाईट 05- हनुमान बेनीवाल, सांसद, नागौर।
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