नागौर. राजस्थान के नागौर के पास स्थित पीपासर गांव में स्थित गुरु जम्भेश्वर (गुरु जाम्भोजी) पैनोरमा आर्यभट्ट उपग्रह की याद दिलाता है. पैनोरमा में गुरु जम्भेश्वर के 1451 में जन्म से लेकर विभिन्न आध्यात्मिक शिक्षा तथा सामाजिक सुधार में किए कार्यों को दर्शाया गया है. गुरु जम्भेश्वर मुक्तिधाम में वर्ष में दो बार फाल्गुन और आसोज की अमावस्या को मेले लगते हैं. इसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं. वर्षों से आस्था का केंद्र रहे इस मुक्तिधाम पर अब हर अमावस्या श्रद्धालुओं का मेला सा लगता है.
गुरु जम्भेश्वर मंदिर नागौर से 45 किमी उत्तर में पीपासर गांव में स्थित है. ग्राम पीपासर में गुरु जम्भेश्वर का जन्म विक्रमी संवत् 1508 सन 1451 भादवा वदी अष्टमी को अर्धरात्रि के समय लोहट पंवार के घर हुआ था. इस घर की सीमा में एक छोटी सी गुमटी है. बताया जाता है कि उस स्थान पर गुरु जम्भेश्वर का जन्म हुआ (Guru Jambheshwar temple in Nagaur) था. अब यहां पर राज्य सरकार की ओर से एक पैनोरमा भी बनाया गया है, जिसमें गुरु जम्भेश्वर के जीवन को आधुनिक उपकरणों के माध्यम से दर्शाया गया है.
कहा जाता है कि गुरु जम्भेश्वर ने जिस कुएं से धागे से जल निकाला और इसी से दीप प्रज्जवलित किया था. वह कुंआ इसी गांव में ही है. अब वह कुआं बंंद पड़ा है. इस कुएं और मन्दिर के बीच एक पुराना खेजड़ी का वृक्ष भी मौजूद है, जहां राव दूदा मेड़तिया ने अपनी घोड़ी बांधी थी और गुरु जम्भेश्वर की शरण में आया था. इसी स्थल पर गुरु जम्भेश्वर ने राव दूदा को मेड़तापति होने का वरदान दिया और केर की तलवार (मूठ) दी थी. गुरु जम्भेश्वर के आशीर्वाद के फलस्वरूप उसे खोया राज्य पुनः प्राप्त हुआ था.
आर्यभट्ट उपग्रह का यह पैनोरमा: पीपासर गांव में स्थित गुरु जम्भेश्वर पैनोरमा उनके जन्म से लेकर विभिन्न आध्यात्मिक शिक्षा तथा सामाजिक सुधार में किए कार्यों को दर्शाता है. यह पैनोरमा देश के उपग्रह आर्यभट्ट की डिजाइन पर बनाया गया है. यह दर्शाता है कि गुरु जम्भेश्वर के बनाए गए सभी नियम वैज्ञानिक तथ्यों पर आधारित थे. वे एक वैज्ञानिक की तरह सभी बातों को प्रतिस्थापित करते थे. आर्यभट्ट की डिजाइन पर बने इस पैनोरमा में जम्भेश्वर के 29 नियमों को रंगीन और कलात्मक डिजाइन के साथ दर्शाया गया है. पैनोरमा में खेजड़ी का बलिदान तथा पशु-पक्षियों के प्रेम का संदेश भी बखूबी दर्शाया गया है.
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अकाल के उपायों की जानकारी: गुरु जम्भेश्वर के 29 नियमों में से 8 नियम जैव विविधता तथा जानवरों के लिए, 7 धर्म आदेश व समाज की रक्षा के लिए तथा 10 उपदेश खुद की सुरक्षा और अच्छे स्वास्थ्य के लिए है. चित्रों में गुरु जम्भेश्वर द्वारा जल से दीपक जलाना और प्रथम शब्द वाणी का उच्चारण, जाम्भोजी का पशु मेला और पशु प्रेम दर्शाए गए हैं. समराथल में अकाल पीड़ितों के लिए किए गए उपायों के बारे में चित्रों के माध्यम से बताया गया है.
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मुकाम धाम निज मन्दिर: गुरु जम्भेश्वर की पवित्र समाधी के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने अपने स्वर्गवास से पूर्व समाधी के लिए खेजड़ी के वृक्ष की निशानी बताई थी. उन्होंने कहा था कि 'खेजड़ी के पास 24 हाथ खोदने पर भगवान शिव का त्रिशूल और धूणां मिलेगा, वहां पर आप मेरी समाधी बनाएं.' कहा जाता है कि जब गुरु जम्भेश्वर ने अपनी देह का त्याग किया, तब वह त्रिशूल नहीं मिला. इसके चलते जम्भेश्वर की पार्थिव देह को लालासर साथरी कपडे़ में बांधकर खेजड़ी के सहारे जमीन से ऊपर रखा गया. जब वह त्रिशूल और धूंणा मिला, तब वहां पर जम्भेश्वर की समाधी बनाई गई. इस समाधी पर बने मंदिर का जीर्णोद्धार कर एक भव्य मंदिर बना दिया गया है. इस समाधी पर बने मंदिर को निज मंदिर कहा जाता है. मुक्तिधाम मुकाम में वर्ष में फाल्गुन और आसोज की अमवस्या को दो मेले लगते हैं.
फाल्गुन अमावस्या का मेला प्रारम्भ से ही चला आ रहा है, परन्तु आसोज मेला संत वील्होजी ने विक्रम सम्वत् 1648 में प्रारम्भ किया था. वर्तमान में हर अमावस्या को बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं. कई वर्षों से मुकाम में समाज की ओर से निशुल्क भण्डारे की व्यवस्था है. मुकाम में पहुंचने वाले सभी श्रद्धालु समाधि के दर्शन करते हैं और धोक लगाते हैं. सभी मेलों पर यहां बहुत बड़ा हवन होता है, जिसमें कई किलो घी एवं नारियल से हवन में आहुति दी जाती है. मुकाम के पास ही कुछ दूरी पर समराथल धोरा है जहां पर गुरु जाम्भोजी ने बहुत समय तक तपस्या की थी और जीव कल्याण किया था.