नागौर. हमारी गाड़ियां और उनके साथ जीवन का सफर चलता रहे, इसके लिए मैकेनिक अपने हाथ और कपड़ों की परवाह किए बिना काम करते हैं. लेकिन लॉकडाउन में करीब 57 दिनों तक दुकान बंद रहने से अब इन मैकेनिकों के जीवन गाड़ी जैसे अटक सी गई है. हालांकि, कुछ दिन से राज्य सरकार ने मैकेनिकों को दुकान खोलने की छूट दे दी है, लेकिन अभी भी ग्राहक नहीं आ रहे हैं.
बता दें कि जो मैकेनिक कैसे भी जुगाड़ करके हमारी अटकी हुई गाड़ी को दौड़ा देते हैं, अब इनके सामने परिवार के लिए दो जून की रोटी का जुगाड़ करना भारी पड़ रहा है. कोरोना वायरस के संक्रमण के खतरे को देखते हुए नागौर में 19 मार्च से ही दुकानें बंद होने लग गई थी, इनमें ये मैकेनिक की दुकानें भी शामिल थी. अब कुछ दिनों पहले सरकार ने इन्हें दुकान खोलने की छूट दी है.
परिवार का गुजारा करना मुश्किल...
बख्तसागर तालाब के पास बाइक सर्विस और रिपेयरिंग की दुकान करने वाले मजीद अकरम का कहना है कि लॉकडाउन से पहले रोज 10 से 15 गाड़ियां सर्विस और रिपेयर होने आती थी. इससे गुजारा हो जाता था. उनका कहना है कि अब दिनभर में मुश्किल से एक-दो गाड़ी आती है, ऐसे में परिवार का गुजारा करना मुश्किल है.
पुराना पावर हाउस के पास दुकान करने वाले ज्ञानीराम का कहना है कि परिवार चलाना तो दूर दुकान का किराया और बाकी खर्चे निकलना भी मुश्किल है. जब दुकान बंद थी तो जैसे-तैसे दिन निकाले, लेकिन अब दुकान खोलने पर भी ग्राहक नहीं आ रहे हैं. कमोबेश यही हालत बाइक मैकेनिक रामावतार की भी है. वह हरिमा गांव से नागौर आता है. उनके लिए तो गांव से नागौर आना भी बड़ी चुनौती है.
आमदनी का जरिया बंद...
एक अन्य मैकेनिक कलाम अंसारी का कहना है कि दो महीने दुकान बंद रही तो आमदनी का जरिया भी बंद हो गया. उनका कहना है कि इस दौरान जैसे-तैसे गुजारा करना पड़ा. पुरानी बचत खत्म हो गई तो भामाशाहों की मदद से परिवार के लिए रोटी का इंतजाम करना पड़ा.
बहरहाल, इन मैकेनिकों को दुकान खोलने की छूट तो सरकार ने दे दी है. लेकिन हालात सामान्य नहीं होने के कारण ग्राहक नहीं आ रहे हैं. ऐसे में सुबह दुकान आना और दिनभर खाली टाइम बिताकर शाम को वापस घर लौट जाना ही इनकी दिनचर्या है.