कोटा. लॉकडाउन के चलते आर्थिक गतिविधियां पूरी तरह से प्रभावित हुई हैं. इसके साथ ही सामाजिक सरोकार के कामों में भी रुकावट आई है. साथ ही सरकारी ऑफिसों का कामकाज भी ठप हुआ था. ऐसे में गोद जाने वाले बच्चों का काम भी प्रभावित हुआ है. कोटा में वर्ष 2018 और 19 के 2 सालों में 39 बच्चे गोद गए थे. इस साल महज 6 बच्चे ही 7 महीने में गोद जा पाए हैं. दूसरी तरफ कोटा में संचालित दो शिशुगृह में अब भी 8 बच्चे हैं.
विदेशों में भी गोद दिए गए बच्चे...
कोटा से बीते 3 साल की बात की जाए तो 6 बच्चे विदेशों में गोद दिए गए हैं. इनमें 4 लड़के और 2 बालिकाएं शामिल हैं. यह बच्चे माल्टा, फ्रांस, यूएस और इटली के दंपतियों को सौंपे गए हैं, जिनकी परवरिश भी अच्छी तरह से हो रही है. लड़के-लड़कियों की बात की जाए तो 3 साल में जहां 19 बच्चियों को गोद दिया गया है, जबकि कुल 26 लड़के गोद गए हैं.
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80 लोग गोद लेने के इच्छुक...
बाल कल्याण समिति के सदस्य अरुण भार्गव बच्चों को गोद लेने के लिए बाल कल्याण समिति से संपर्क कर सकते हैं. हम उन्हें पूरा प्रोसीजर बता देते हैं. ऑनलाइन आवेदन ही इसके लिए किया जा सकता है. कोटा के निवासियों ने अभी तक 80 से ज्यादा आवेदन ऑनलाइन किए हुए हैं. इसमें कौन सा बच्चा किस व्यक्ति को गोद दिया जा रहा है, यह सारी बात गुप्त रखी जाती है.
पालना घरों के जरिए आते हैं नवजात...
अरुण भार्गव का कहना है कि पालनाघर के जरिए ही शिशुगृहों में बच्चे आते हैं. कोटा में श्री करणी नगर विकास समिति और राजकीय विशेष दत्तक ग्रहण इकाई नांता में लगे पालना घरों के जरिए शिशु हमारे पास आते हैं. इसके अलावा जेके लोन अस्पताल में भी पालना गृह लगा हुआ है. कोई भी व्यक्ति जो बच्चे को अपने पास नहीं रखना चाहता, उसमें छोड़ सकता है. इसके अलावा आर्थिक स्थिति या बीमारी के चलते भी बच्चों की परवरिश नहीं करने वाले परिजन बच्चों को हमारे सुपुर्द कर देते हैं. यह पूरी प्रक्रिया गुप्त रहती है.
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ऐसी है एडॉप्शन की प्रक्रिया...
सीडब्ल्यूसी के सदस्य विमल चंद जैन ने बताया कि एडॉप्शन की प्रक्रिया में गोद लेने वाले परिवार की आर्थिक सामाजिक स्थिति से लेकर न्यायिक निर्णय तक होता है. गोद लेने वाला जो भी व्यक्ति होता है, वह सेंट्रल एडॉप्शन रिसोर्स अथॉरिटी की ऑनलाइन वेबसाइट के जरिए आवेदन करता है. इसके लिए 3 स्टेट या फिर पूरे देश का ऑप्शन देना होगा. इसके बाद उसकी फैमिली की सामाजिक और आर्थिक रिपोर्ट बनाई जाती है. उसके बाद जब संतुष्ट हो जाने पर बच्चा गोद दिया जाता है. इसमें एक शर्त यह भी है कि पति-पत्नी दोनों की उम्र मिलाकर 95 वर्ष से कम होनी चाहिए.
प्राथमिकता के आधार पर मिलता है बच्चा गोद...
बाल कल्याण समिति के सदस्य आबिद हुसैन अब्बासी ने बताया कि प्राथमिकता के आधार पर बच्चों को गोद दिया जाता है. ऑनलाइन आवेदन के बाद आवेदक को जिस संस्था में बच्चा होता है, वहां पर बुलाया जाता है. पेरेंट्स को संस्था में उपस्थित होना पड़ता है. जहां पर संस्था के अधीक्षक डिस्ट्रिक्ट चाइल्ड प्रोटेक्शन यूनिट के मेंबर चिकित्सक बैठकर वार्ता करते हैं. इसमें तय किया जाता है कि पेरेंट्स बच्चे को रखने लायक है या नहीं. इसके बाद प्री-एडॉप्शन के लिए बच्चे को 20 दिन परिजनों को सौंप दिया जाता है.
फैमिली कोर्ट के जज देते हैं आदेश...
CWC मेंबर अब्बासी के अनुसार उसके बाद संस्था और पेरेंट्स जॉइंट पिटिशन फैमिली कोर्ट में दायर करते हैं. फैमिली कोर्ट का प्रोसेस होता है. जज के निर्णय पर एडॉप्शन प्रक्रिया पूरी होती है. साथ ही जिस बच्चे को जिस शहर में गोद दिया जाता है, वहां की संस्था को भी आदेशित किया जाता है कि हर 6 महीने में बच्चे की मॉनिटरिंग करे.