जयपुर. राजधानी में ईटीवी भारत लगातार ऐसे लोगों की बीच पहुंच रहा है, जो लॉकडाउन के इस दौर में परेशान हैं और उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है. हम ऐसे लोगों की आवाज बन कर सरकार और प्रशासन तक इनकी समस्याओं को पहुंचा रहे हैं. ऐसे ही हालातों के बीच ईटीवी भारत की टीम जयपुर के मानसरोवर इलाके में पहुंची, जहां पाकिस्तान के रहम यार जिले के खानपुर गांव से आए कुछ विस्थापितों से बात की. इसी क्रम में एक विस्थापित परिवार ने बताया कि वे पहले एक सिलाई बुनाई के जरिए जयपुर में अपना गुजारा कर रहे थे, लेकिन अब काम ठप है. ऐसे में परिवार के लिए खाने के लाले पड़ गए हैं. इनका कहना है कि खाने को मिल जाए और कुछ नहीं चाहिए.
ये लोग एक कमरा और रसोई लेकर किराए से रहते हैं. परिवार में बुजुर्ग और दंपत्ति हैं, जो पाकिस्तान से आकर जयपुर में अपनी गुजर-बसर कर रहा है. अब लॉकडाउन के कारण जब सिलाई का काम बंद हो गया है. ऐसे में परिवार के पास रोजी-रोटी का संकट आ खड़ा हुआ है. ऐसे हालात में पाकिस्तानी विस्थापितों के लिए काम करने वाली निमित्तकम संस्था आगे आए आई. संस्था ने इस परिवार को भी 2 हफ्ते का राशन मुहैया करवाया था. अब इस राशन में दो-तीन दिन का ही अनाज बचा है. वहीं लॉकडाउन खुलने में अभी 5 दिन हैं. ऐसे में इस परिवार के लिए स्थिति काफी विकट होने वाली है. इस परिवार की मुखिया सुनील की पत्नी कहती है कि लॉकडाउन अगर बढ़ा तो पता नहीं आगे गुजारा कैसे होगा.
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वहीं परेशानी यह भी है कि अब मकान मालिक किराया भी मांग रहा है. ऐसे हालात में जहां खाने के पैसे नहीं है. ऐसी हालत में ये लोग किराया कैसे चुकाएंगे. परिवार का कहना है कि फिलहाल कोई समाधान नजर नहीं आता. हालांकि, इस परिवार को इस बात की जानकारी है कि सरकार ने किराया नहीं लेने के लिए मकान मालिकों को पाबंद किया है लेकिन मकान मालिक भी नहीं मान रहा है. हालात से हारे इस परिवार के आगे मुश्किलों का अंबार लग गया है. वहीं इस परिवार के बुजुर्ग कहते हैं कि उधर (पाकिस्तान) जो तकलीफ थी वह निभा कर आ गए. इधर तो ठीक है पर काम धंधा बंद है तो खाने की परेशानी है.
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पाकिस्तान से आए हिंदू विस्थापित परिवार की यह एक तस्वीर है. ऐसे ही सैकड़ों परिवार राजस्थान के अलग-अलग हिस्सों में हैं. जिनमें से कई झुग्गी झोपड़ियों में कुछ सड़क किनारे तो कुछ किराए के मकानों में रहते हैं. दिहाड़ी मजदूरी या छोटा-मोटा काम करके यह लोग अपना गुजर-बसर किया करते हैं, लेकिन अब चिंता इस बात की है कि लॉकडाउन के बाद इन लोगों के लिये राशन कहां से आएगा.
सरकार राशन पहुंचाने का एलान कर चुकी है लेकिन जब इतने दिनों में इन लोगों की कोई सुध लेने नहीं पहुंचा तो अब भी इसकी उम्मीद ना के बराबर ही है. सवाल यह भी है की फिर 15 दिनों का राशन तो मिल जाएगा लेकिन काम पटरी पर लौटने में अगर वक्त लगा तो ये लोग किराया कैसे चुका पाएंगे और कैसे गुजर बसर करेगें.