जयपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने जयपुर में दो नगर निगम बनाए जाने के राज्य सरकार के फैसले पर राज्य निर्वाचन आयोग से जवाब मांगा है. मुख्य न्यायाधीश इन्द्रजीत महांति और न्यायाधीश महेन्द्र गोयल ने यह आदेश सतीश शर्मा और अन्य की याचिकाओं पर दिए हैं.
याचिकाकर्ता की ओर से राजदीपक रस्तौगी ने अदालत को बताया कि राज्य सरकार ने गत 18 अक्टूबर को जयपुर नगर निगम को बांटकर दो निगम बना दिए. एक ग्रेटर जयपुर नगर निगम और दूसरा जयपुर हैरिटेज नगर निगम. इसके लिए वार्ड की संख्या भी 150 से बढ़ाकर 250 कर दी गई है.
सरकार का यह कृत्य संविधान के अनुच्छेद 243 यू के विपरीत है, इसके अनुसार पालिका चुनाव किसी भी दशा में उसके गठन के पांच साल तक ही वैध रहेगें और इस अवधि को किसी भी प्रकार से बढ़ाया नहीं जाएगा. जयपुर नगर निगम का गठन 26 नवंबर 2014 को हुआ था और इसके पांच साल 25 नवंबर 2019 को पूरे हो रहे हैं.
सुप्रीम कोर्ट भी तय कर चुका है कि यह चुनाव किसी भी दशा में पांच साल से ज्यादा अवधि के लिए नहीं हो सकते. राज्य में अन्य पालिकाओं में चुनाव करवाए जा रहे हैं, लेकिन जयपुर सहित जोधपुर और कोटा में चुनाव नहीं करवाना सरकार की दुर्भावनापूर्ण कार्रवाई है.
याचिका में कहा गया कि राज्य सरकार ने 10 जून 2019 को अधिसूचना जारी कर जयपुर नगर निगम में वार्ड संख्या 91 से बढ़ाकर 150 कर दी थी. इसके अनुसार ही सीमांकन और वर्गीकरण भी हो गया था और वोटर लिस्ट भी तैयार हो गई थी. इसके बावजूद 18 अक्टूबर 2019 के आदेश से जयपुर नगर निगम को दो भाग में बांट दिया. सरकार ने मनमाने तरीके से वार्ड संख्या बढ़ाकर कभी 150 तो कभी 250 कर दी और इसके लिए कानूनी प्रावधानों की पालना नहीं की गई.
यह कार्रवाई केवल जयपुर, जोधपुर और कोटा के नगर निगमों के चुनाव को येन-केन तरीके से टालने के लिए की गई है. जबकि, संविधान और राज्य नगर पालिका कानून इसकी अनुमति नहीं देता. वहीं दूसरी और महाधिवक्ता महेन्द्र सिंह सिंघवी ने राज्य सरकार की ओर से पूरी कार्रवाई को कानून सम्मत बताया. याचिकाकर्ता ने जयपुर नगर निगम के तत्काल चुनाव करवाने की गुहार की है. अदालत ने राज्य निर्वाचन आयोग को जवाब देने को कहा है और अगली सुनवाई 15 नवंबर को तय की है.