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Rajasthan High Court: नौकरी से बर्खास्तगी से पहले जांच कर सुनवाई का मौका देना जरुरी, सरकार की अपील खारिज

राजस्थान हाईकोर्ट ने 29 साल पहले बर्खास्त किए गए तृतीय श्रेणी शिक्षक के बर्खास्तगी आदेश को रद्द करते हुए सेवा बहाल के मामले में अधीनस्थ अदालत के आदेश को सही बताया है. साथ ही इस संबंध में दायर भरतपुर कलक्टर की (government appeal dismissed) दूसरी अपील को खारिज कर दिया.

Rajasthan High Court,  government appeal dismissed
राजस्थान हाईकोर्ट .
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Published : May 19, 2022, 4:23 PM IST

जयपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने 29 साल पहले बर्खास्त किए गए (The case of the teacher who was dismissed 29 years ago ) तृतीय श्रेणी शिक्षक के बर्खास्तगी आदेश को रद्द कर पिछला वेतन अदा करते हुए सेवा में बहाल करने वाले अधीनस्थ अदालत के आदेश को सही बताते हुए दखल देने से इनकार कर दिया है. जस्टिस सुदेश बंसल ने यह आदेश भरतपुर कलक्टर की दूसरी अपील को खारिज करते हुए दिए.

अदालत ने अपने आदेश में कहा कि बर्खास्तगी बड़ी सजा होती है. सुप्रीम कोर्ट तय कर चुका है कि यदि कर्मचारी स्थाई व नियमित है तो बर्खास्तगी से पहले जांच करके सुनवाई का अवसर देकर प्राकृतिक न्याय के सिद्दांत की पालना करना जरुरी है. इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट कह चुका है कि यदि नियोक्ता ने कानून व प्राकृतिक न्याय के सिद्दांत की घोर अवहेलना की है और कर्मचारी को प्रताड़ित किया है तो,कोर्ट पिछला वेतन देने का आदेश दे सकता है. ऐसे मामलों में उच्च अदालतों को लेबर कोर्ट से पारित अवार्ड में दखल नहीं देना चाहिए.

पढ़ेंः पुलिस उप निरीक्षक भर्ती 2021: जवाब पेश करें वरना एडीजी हो अदालत में पेश- राजस्थान हाईकोर्ट

मामले के अनुसार महेशचंद्र शर्मा को 10 अप्रेल,1990 को कुम्हेर में तृतीय श्रेणी शिक्षक नियुक्त किया और 12 अक्टूबर,1992 को उसकी नियुक्ति को स्थाई कर नियमित कर दिया. इसके बाद उसके दस्तावेजों की जांच की गई तो 19 नवंबर 1992 को कानपुर युनिवर्सिटी ने बताया कि महेश ने बीएड परीक्षा पास नहीं की है. इस पत्र के आधार पर एक दिसंबर,1992 को महेश को सेवा से बर्खास्त कर दिया गया. दुबारा पूछने पर कानपुर युनिवर्सिटी ने महेश के बीएड परीक्षा पास करने की जानकारी दी.

महेश के खिलाफ फर्जी मार्कशीट के आधार पर नौकरी पाने के मामले में पुलिस में एफआईआर भी दर्ज हुई थी. पुलिस जांच में भी कानपुर युनिवर्सिटी ने उसके बीएड परीक्षा पास करना बताया था. महेश ने सिविल दावा पेश कर बर्खास्ती को चुनौती दी तो ट्रायल कोर्ट ने दावा खारिज कर दिया. इसके खिलाफ डीजे कोर्ट में अपील की थी. डीजे कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट का आदेश रद्द करते हुए शिक्षक को पिछले वेतन भत्तों के भुगतान सहित सेवा में बहाल करने के निर्देश दिए थे. सरकार ने इस आदेश को दूसरी अपील के जरिए चुनौती दी जिसे हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया है.

जयपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने 29 साल पहले बर्खास्त किए गए (The case of the teacher who was dismissed 29 years ago ) तृतीय श्रेणी शिक्षक के बर्खास्तगी आदेश को रद्द कर पिछला वेतन अदा करते हुए सेवा में बहाल करने वाले अधीनस्थ अदालत के आदेश को सही बताते हुए दखल देने से इनकार कर दिया है. जस्टिस सुदेश बंसल ने यह आदेश भरतपुर कलक्टर की दूसरी अपील को खारिज करते हुए दिए.

अदालत ने अपने आदेश में कहा कि बर्खास्तगी बड़ी सजा होती है. सुप्रीम कोर्ट तय कर चुका है कि यदि कर्मचारी स्थाई व नियमित है तो बर्खास्तगी से पहले जांच करके सुनवाई का अवसर देकर प्राकृतिक न्याय के सिद्दांत की पालना करना जरुरी है. इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट कह चुका है कि यदि नियोक्ता ने कानून व प्राकृतिक न्याय के सिद्दांत की घोर अवहेलना की है और कर्मचारी को प्रताड़ित किया है तो,कोर्ट पिछला वेतन देने का आदेश दे सकता है. ऐसे मामलों में उच्च अदालतों को लेबर कोर्ट से पारित अवार्ड में दखल नहीं देना चाहिए.

पढ़ेंः पुलिस उप निरीक्षक भर्ती 2021: जवाब पेश करें वरना एडीजी हो अदालत में पेश- राजस्थान हाईकोर्ट

मामले के अनुसार महेशचंद्र शर्मा को 10 अप्रेल,1990 को कुम्हेर में तृतीय श्रेणी शिक्षक नियुक्त किया और 12 अक्टूबर,1992 को उसकी नियुक्ति को स्थाई कर नियमित कर दिया. इसके बाद उसके दस्तावेजों की जांच की गई तो 19 नवंबर 1992 को कानपुर युनिवर्सिटी ने बताया कि महेश ने बीएड परीक्षा पास नहीं की है. इस पत्र के आधार पर एक दिसंबर,1992 को महेश को सेवा से बर्खास्त कर दिया गया. दुबारा पूछने पर कानपुर युनिवर्सिटी ने महेश के बीएड परीक्षा पास करने की जानकारी दी.

महेश के खिलाफ फर्जी मार्कशीट के आधार पर नौकरी पाने के मामले में पुलिस में एफआईआर भी दर्ज हुई थी. पुलिस जांच में भी कानपुर युनिवर्सिटी ने उसके बीएड परीक्षा पास करना बताया था. महेश ने सिविल दावा पेश कर बर्खास्ती को चुनौती दी तो ट्रायल कोर्ट ने दावा खारिज कर दिया. इसके खिलाफ डीजे कोर्ट में अपील की थी. डीजे कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट का आदेश रद्द करते हुए शिक्षक को पिछले वेतन भत्तों के भुगतान सहित सेवा में बहाल करने के निर्देश दिए थे. सरकार ने इस आदेश को दूसरी अपील के जरिए चुनौती दी जिसे हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया है.

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