जयपुर. राज्यपाल कलराज मिश्र ने कहा है कि पं. दीनदयाल उपाध्याय का एकात्ममानववाद आज भी प्रासंगिक है. भारतीयता पर आधारित समाज की व्यवस्था के लिए एकात्ममानववाद का होना आवश्यक है. इस वाद को व्यावहारिक तरीके से धरातल पर लागू करना आज की जरूरत है. राज्यपाल ने कहा कि जिस प्रकार व्यक्ति को स्वस्थ रहने के लिए प्राणायाम की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार समाज की स्वस्थता के लिए अर्थायाम का होना आवश्यक है. पंडित दीनदयाल कहते थे कि अर्थ से कोई व्यक्ति वंचित नहीं होना चाहिए. समाज में सभी का विकास होना आवश्यक है. इसके लिए समाज में सभी को अर्थ मिले ऐसे स्वरूप का निर्माण होना चाहिए, उन्होंने कहा कि अन्त्योदय की संकल्पना ही वास्तविक मानवीयता है.
राज्यपाल मिश्र शुक्रवार को यहां राजभवन से सीकर के पं. दीनदयाल उपाध्याय शेखावाटी विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित पं. दीनदयाल उपाध्याय के सामाजिक और आर्थिक चिन्तन पर वेबिनार को वीडियो कान्फ्रेन्स के माध्यम से संबोधित कर रहे थे. राज्यपाल ने इस अवसर पर संविधान की प्रस्तावना और कर्तव्यों का वाचन भी कराया है. राज्यपाल ने कहा कि दीनदयाल की प्रसिद्धि का एक कारण ओर भी रहा, जब उन्होंने एकात्ममानववाद की अवधारणा दी तो उस पर खूब चर्चा हुई. विश्वविद्यालयों में, बौद्विक संस्थानों में यह गर्मागर्म बहस का विषय बना. सहमत होना या न होना अलग बात थी, लेकिन एकात्ममानववाद की अवेहलना करना बौद्विक जगत के लिए मुश्किल था. दीनदयाल उपाध्याय ने मानव व्यवहार, व्यक्ति और समाज, मानव विकास के मौलिक प्रश्नों पर चिन्तन करके एकात्ममानववाद की अवधारणा स्थापित की थी.
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मिश्र ने कहा कि पं. दीनदयाल उपाध्याय का जन्म आज से 104 वर्ष पूर्व आज ही के दिन हुआ था. पंडित दीनदयाल जी को मैं श्रद्वाजंलि अर्पित करता हूं. वे बहुआयामी प्रतिभाओं के धनी थे. उनमें शिक्षाविद्, राजनीतिज्ञ, प्रखर वक्ता, लेखक एवं पत्रकार की प्रतिभाएं कूट-कूट कर भरी हुई थीं. पंडित जी ने विश्व में प्रचलित अनेक वादों के ऊपर एक नया वाद दिया. उन्होंने सर्वांगपूर्णवाद ‘एकात्ममानववाद‘ का सिद्वांत प्रतिपादित किया. यह व्यावहारिक और दार्शनिक सिद्वांत है. इसमें हम मानव को सम्पूर्णता और समग्रता में देख सकते हैं. पंडित दीनदयाल के आदर्शों को आत्मसात कर समाज सेवा में सक्रिय भागीदारी निभा कर ही हम उन्हें सच्ची श्रद्वांजलि दे सकते हैं. उनका सादगी से भरा भारतीय मूल्य आधारित जीवन शैली हम सभी के लिए प्रेरणास्रोत है. उनका राष्ट्रहित और व्यक्ति निर्माण पर गहन सामाजिक चिंतन था.
मिश्र ने कहा कि मानव को लेकर विश्वभर के चिन्तकों में आदिकाल से चिन्तन होता रहा है. सभी चिन्तक मानव के विकास और उसके सुख के लिए समर्पित होने का दावा करते हैं, लेकिन इस दिशा में चिन्तन करने से पहले यह भी जरूरी है कि मानव के मन को समझ लिया जाए. यदि मानव का मन ठीक समझ में आ जाए, तो उसके सुख और विकास के लिए रास्ते तय किए जा सकते हैं. यह काम पंडित दीनदयाल ही कर पाए. राज्यपाल कलराज मिश्र ने कहा कि दीनदयाल उपाध्याय ने एकात्ममानववाद की अवधारणा स्थापित की. यह अवधारणा भारत के युगयुगीन सांस्कृतिक चिन्तन पर आधारित है. मूल अवधारणा मानववाद की होनी चाहिए और अन्य सभी वाद या सिद्धांत मानव को केन्द्र में रखकर ही रचे जाने चाहिए.