नई दिल्ली: आगामी बजट 2025-26 में सालाना 15 लाख रुपये तक की आय वाले व्यक्तियों के लिए महत्वपूर्ण टैक्स बेनेफिट लाभ पेश किए जाने की संभावना है. इन उपायों से डिस्पोजेबल आय में वृद्धि होने की उम्मीद है, जिससे शहरी क्षेत्रों में खपत बढ़ेगी, जहां अधिकांश टैक्सपेयर रहते हैं.
इंडिया टुडे ने सूत्रों के हवाले से कहा कि सरकार वित्त वर्ष 2020-21 में शुरू की गई नई आयकर व्यवस्था में बदलाव करने पर विचार कर रही है, जिसने अपनी सरल संरचना और रेगूलर इन्हांसमेंट के कारण 70 फीसदी से अधिक टैक्सपेयर्स को आकर्षित किया है.
टैक्स ढांचे में प्रस्तावित बदलाव
वर्तमान में नई व्यवस्था के तहत 3 लाख रुपये तक की इनकम टैक्स फ्री है, जबकि 3 लाख से 6 लाख रुपये के बीच की आय पर 5 प्रतिशत, 6-9 लाख रुपये पर 10, 9-12 लाख रुपये पर 15, 12-15 लाख रुपये पर 20 और 15 लाख रुपये से अधिक पर 30 फीसदी टैक्स लगता है.
रिपोर्ट बताती हैं कि मूल छूट सीमा 3 लाख रुपये से बढ़कर 4 लाख रुपये हो सकती है, साथ ही अन्य स्लैब में भी समायोजन किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, 5% स्लैब में 4 लाख रुपये से 7 लाख रुपये तक की आय शामिल हो सकती है, जिससे 14 लाख रुपये तक की आय वालों के लिए कर व्यवस्था अधिक फायदेमंद हो जाएगी. विशेषज्ञों का मानना है कि कर स्लैब में संशोधन करके सीमा को 1 लाख रुपये तक बढ़ाया जा सकता है, जिससे कर का बोझ काफी कम हो सकता है, जिससे अधिक खर्च को बढ़ावा मिलेगा.
मुद्रास्फीति के बीच खर्च करने की क्षमता बढ़ाना
सूत्रों के अनुसार सरकार का ध्यान सालाना 13-14 लाख रुपये कमाने वाले व्यक्तियों पर बोझ कम करने पर है, खासकर शहरी क्षेत्रों में जहां मुद्रास्फीति ने पर्चेजिंग पावर को कम कर दिया है. इन बदलावों का उद्देश्य शहरी टैक्सपेयर्स को राहत प्रदान करना है, जो बढ़ती मुद्रास्फीति का सामना करते हैं और उपभोग-संचालित अर्थव्यवस्था का बड़ा हिस्सा हैं.
फाइनेंशियल एक्सप्रेस से बात करते हुए ईवाई इंडिया टैक्स एंड रेगुलेटरी सर्विसेज पार्टनर सुधीर कपाड़िया ने कहा, "अधिकांश टैक्स पेयर्स शहरी क्षेत्रों में रहते हैं, जहां अधिकांश खपत भी होती है. यह देखते हुए कि मुद्रास्फीति निम्न आय वर्ग के लोगों को नुकसान पहुंचा रही है, प्रत्येक आईटी स्लैब में 1 लाख रुपये की वृद्धि की जा सकती है."
उन्होंने कहा, "खासकर शहरी क्षेत्रों में खपत को बढ़ावा देने के लिए निम्न और मध्यम आय स्तर पर स्लैब का विस्तार करने, यानी 20% तक कर ब्रैकेट पर विचार किया जाना चाहिए."
रिपोर्ट्स बताती हैं कि बेसिक छूट सीमा 3 लाख रुपये से बढ़कर 4 लाख रुपये हो सकती है, साथ ही अन्य स्लैब को एडजस्ट किया जा सकता है. उदाहरण के लिए, 5 प्रतिशत स्लैब में 4 लाख रुपये से 7 लाख रुपये तक की आय शामिल हो सकती है, जिससे 14 लाख रुपये तक की आय वालों के लिए यह कर व्यवस्था अधिक फायदेमंद हो जाएगी.
बढ़ते टैक्स रेवेन्यु सुधारों का समर्थन करते हैं
अप्रैल-नवंबर वित्त वर्ष 25 के दौरान व्यक्तिगत इनकम टैक्स कलेक्शन 25 प्रतिशत से बढ़कर 7.41 लाख करोड़ रुपये हो गया है, जिससे सरकार इन सुधारों को लागू करने के लिए मजबूत स्थिति में है. कॉर्पोरेट टैक्स के विपरीत, व्यक्तिगत टैक्स प्राप्तियां लगातार लक्ष्यों से आगे निकल गई हैं, जिससे राहत उपायों के लिए राजकोषीय गुंजाइश बनी है.
अपेक्षित परिवर्तन गेम-चेंजर हो सकते हैं, जिससे करदाताओं को राहत मिलेगी और साथ ही आर्थिक गतिविधि को भी बढ़ावा मिलेगा. अगर इसे लागू किया जाता है, तो बजट 2025-26 व्यक्तियों और व्यापक अर्थव्यवस्था दोनों के लिए फायदेमंद हो सकता है.
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