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मजदूरों को तीन वक्त तो दूर एक वक्त का भोजन भी नसीब नहीं हो रहा, कैसे आत्म निर्भर बनेगा भारत ? - वित्त मंत्री का राहत पैकेज

केंद्र सरकार ने कोरोना संकट के समय प्रवासी मजदूरों को राहत और संबल देने के लिए कई घोषणा की, लेकिन मजदूरों के हितों में काम करने वाले सामाजिक संगठनों का आरोप है कि मजदूरों को तीन वक्त का खाना तो दूर एक वक्त का भोजन भी नसीब नहीं हो रहा है. हृदयहीन सरकार को मजदूरों का दर-बदर होना नहीं दिख रहा है. केंद्र सरकार 2 महीने के राशन की बजाय प्रत्येक मजदूर के 7500 रुपये महीने खाते में डाले.

Package for Laborers, Relief Package of Finance Minister
वित्त मंत्री के राहत पैकेज को लेकर किसान नेता की राय
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Published : May 14, 2020, 9:16 PM IST

जयपुर. केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने गुरुवार को प्रवासी मजदूरों को लेकर कई बड़ी घोषणाएं की. साथ ही मजदूरों को मिल रही सुविधाओं के बारे में भी जानकारी दी. लेकिन प्रवासी मजदूरों के लिए काम कर रहे सामाजिक कर्तकर्ताओं की मानें तो केंद्र सरकार की ओर से की जा रही घोषणाएं सिर्फ दिखावा हैं, हृदय हीन सरकार को कोरोना की वजह से दरबदर हुए मजदूरों के हाल दिखाई नहीं दे रहे हैं. तीन वक्त खाने और राशि उपलब्ध कराने की बात कही जा रही है, लेकिन तीन वक्त तो छोड़ो एक वक्त का खाना भी इन मजदूरों को नसीब नहीं हो रहा है.

वित्त मंत्री के राहत पैकेज को लेकर किसान नेता की राय

इसको लेकर किसान नेता संजय माधव ने कहा कि मजदूरों को न्यूनतम वेतन के रूप में 18,000 मिलें, ये सरकार को सुनिश्चित करना चाहिए. साथ ही जो कोरोना वायरस की वजह से मजदूर दर-बदर हुए हैं, उन्हें राहत देने के लिए प्रत्येक मजदूर के खाते में 75,00 रुपये प्रतिमाह डाले जाएं, ताकि वह अपने परिवार का पेट पालने में सक्षम हो सके. उन्होंने कहा कि सरकार जिस राशन सामग्री को उपलब्ध कराने की बात कह रही है, उससे इन मजदूरों का परिवार नहीं चलने वाला. सरकार ने 2 महीने का राशन उपलब्ध कराने की बात कही है, लेकिन जो 2 महीने गुजर गए हैं, उनमें किस दौर से यह मजदूर निकले उसका अंदाजा सरकार को नहीं है. आने वाले 2 महीने के भोजन से क्या होगा. मजदूरों को अपना जीवन पटरी पर लाने में 6 महीने से अधिक लगेगा. ऐसे में सरकार को चाहिए कि वह हर महीने प्रत्येक मजदूर के खाते में 7500 रुपये डाले.

पढ़ें- SPECIAL: किसानों को खरीफ फसली ऋण का वितरण जारी, लेकिन लॉकडाउन में आ रही परेशानी

उन्होंने कहा कि सरकार की मंशा कुछ अलग है और सरकार दिखावा कुछ अलग कर रही है. खाद्य सुरक्षा की बात करने वाली सरकार सरकारी खरीद को बंद करने पर तुली हुई है. नव अवधारणावाद की विचारधारा पर सरकार काम कर रही है. फिर कैसे वह मजदूरों को लाभ देगी. सरकार की मंशा कुछ अलग है और सरकार दिखावा कुछ अलग कर रही है. उन्होंने कहा कि इस समय देश का मजदूर सड़कों पर है. उसका रोजगार छिन गया है. वह परिवार सहित पैदल निकल पड़ा है, लेकिन सरकार का इस ओर कोई ध्यान नहीं है.

जब तक सरकार मजदूरों के लिए न्यूनतम वेतन 18000 लागू नहीं कर देती, तब तक मजदूरों का उत्थान नहीं हो सकता. देश के प्रधानमंत्री आत्मनिर्भर भारत बनाने की बात करते हैं, लेकिन जो सरकार की योजनाएं हैं. उनसे ऐसा नहीं लगता कि सरकार की इच्छा शक्ति देश को आत्मनिर्भर बनाने की है. देश को अगर आत्मनिर्भर बनाना है तो सबसे पहले किसान को उसकी फसल का उचित मूल्य मिले.

पढ़ें- आत्मनिर्भर भारत की कल्पना में किसानों के लिए की गई घोषणा ऊंट के मुंह में जीरे के समान: किसान नेता

साथ ही कहा कि जो देश की बड़ी आबादी का तबका निम्न वर्ग में जी रहा है, उस मजदूर को उसकी मजदूरी उसके काम के आधार पर न्यूनतम 18000 रुपये मिले. उसके बाद ही हम देश के विकास और आत्मनिर्भर की बात कर सकते हैं, नहीं तो यह सब बेमानी सा है.

जयपुर. केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने गुरुवार को प्रवासी मजदूरों को लेकर कई बड़ी घोषणाएं की. साथ ही मजदूरों को मिल रही सुविधाओं के बारे में भी जानकारी दी. लेकिन प्रवासी मजदूरों के लिए काम कर रहे सामाजिक कर्तकर्ताओं की मानें तो केंद्र सरकार की ओर से की जा रही घोषणाएं सिर्फ दिखावा हैं, हृदय हीन सरकार को कोरोना की वजह से दरबदर हुए मजदूरों के हाल दिखाई नहीं दे रहे हैं. तीन वक्त खाने और राशि उपलब्ध कराने की बात कही जा रही है, लेकिन तीन वक्त तो छोड़ो एक वक्त का खाना भी इन मजदूरों को नसीब नहीं हो रहा है.

वित्त मंत्री के राहत पैकेज को लेकर किसान नेता की राय

इसको लेकर किसान नेता संजय माधव ने कहा कि मजदूरों को न्यूनतम वेतन के रूप में 18,000 मिलें, ये सरकार को सुनिश्चित करना चाहिए. साथ ही जो कोरोना वायरस की वजह से मजदूर दर-बदर हुए हैं, उन्हें राहत देने के लिए प्रत्येक मजदूर के खाते में 75,00 रुपये प्रतिमाह डाले जाएं, ताकि वह अपने परिवार का पेट पालने में सक्षम हो सके. उन्होंने कहा कि सरकार जिस राशन सामग्री को उपलब्ध कराने की बात कह रही है, उससे इन मजदूरों का परिवार नहीं चलने वाला. सरकार ने 2 महीने का राशन उपलब्ध कराने की बात कही है, लेकिन जो 2 महीने गुजर गए हैं, उनमें किस दौर से यह मजदूर निकले उसका अंदाजा सरकार को नहीं है. आने वाले 2 महीने के भोजन से क्या होगा. मजदूरों को अपना जीवन पटरी पर लाने में 6 महीने से अधिक लगेगा. ऐसे में सरकार को चाहिए कि वह हर महीने प्रत्येक मजदूर के खाते में 7500 रुपये डाले.

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उन्होंने कहा कि सरकार की मंशा कुछ अलग है और सरकार दिखावा कुछ अलग कर रही है. खाद्य सुरक्षा की बात करने वाली सरकार सरकारी खरीद को बंद करने पर तुली हुई है. नव अवधारणावाद की विचारधारा पर सरकार काम कर रही है. फिर कैसे वह मजदूरों को लाभ देगी. सरकार की मंशा कुछ अलग है और सरकार दिखावा कुछ अलग कर रही है. उन्होंने कहा कि इस समय देश का मजदूर सड़कों पर है. उसका रोजगार छिन गया है. वह परिवार सहित पैदल निकल पड़ा है, लेकिन सरकार का इस ओर कोई ध्यान नहीं है.

जब तक सरकार मजदूरों के लिए न्यूनतम वेतन 18000 लागू नहीं कर देती, तब तक मजदूरों का उत्थान नहीं हो सकता. देश के प्रधानमंत्री आत्मनिर्भर भारत बनाने की बात करते हैं, लेकिन जो सरकार की योजनाएं हैं. उनसे ऐसा नहीं लगता कि सरकार की इच्छा शक्ति देश को आत्मनिर्भर बनाने की है. देश को अगर आत्मनिर्भर बनाना है तो सबसे पहले किसान को उसकी फसल का उचित मूल्य मिले.

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साथ ही कहा कि जो देश की बड़ी आबादी का तबका निम्न वर्ग में जी रहा है, उस मजदूर को उसकी मजदूरी उसके काम के आधार पर न्यूनतम 18000 रुपये मिले. उसके बाद ही हम देश के विकास और आत्मनिर्भर की बात कर सकते हैं, नहीं तो यह सब बेमानी सा है.

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