जयपुर. मानसून में हादसों से बचने के लिए हेरिटेज क्षेत्र में जर्जर भवनों की मरम्मत या डिमोलिश करने के लिए भवन मालिकों को नियमित नोटिस जारी किए (Notice to owners of dilapidated buildings in Jaipur) गए. अब जोन उपायुक्त और जोन एक्सईएन को इनका रिव्यू करने के भी निर्देश दिए गए हैं. ताकि समय रहते उनकी मरम्मत कराई जा सके. इसे लेकर निगम कमिश्नर ने भी स्पष्ट कर दिया है कि निगम के पास जर्जर भवन को डिमोलिश करने की भी पावर है. लेकिन यूनेस्को के लिमिटेशंस के चलते इमारतों को डिमोलिश करने की बजाए उनके मरम्मत और रिनोवेशन का प्रयास है. यही नहीं उन्होंने बरसात में किसी जर्जर भवन के गिरने की स्थिति में उसके मलबे को हटाने के लिए टीम का गठन किए जाने की भी बात कही. हालांकि इसमें होने वाले खर्च का भुगतान संबंधित भवन मालिक से वसूल किया जायेगा.
150 से ज्यादा भवन जर्जर: देश-दुनिया में अपनी पहचान रखने वाले जयपुर शहर में करीब 150 से ज्यादा भवन जर्जर हैं, जिन्हें न तो संवारा जा रहा है और न ही ढहाया जा रहा है. ये भवन न सिर्फ स्थानीय लोगों के लिए खतरे की घंटी बने हुए हैं. बल्कि जयपुर की साख पर भी बट्टा लगा रहे हैं. पुराने शहर में नाटाणियों रास्ता, व्यास जी की गली, खेजड़ों का रास्ता, दीनानाथ जी की गली और घाटगेट के नजदीक ऐसे कई मकान देखने को मिल जाते हैं. इन मकानों की हालत जर्जर हो चुकी है. कई भवन तो चीख-चीख कर अपनी मरम्मत की दुहाई दे रहे हैं. लेकिन भवन मालिक इनकी संभाल नहीं कर रहे. हालांकि हेरिटेज नगर निगम के जोन कार्यालयों की ओर से क्षेत्र में करीब 150 मकानों को चिह्नित कर उनके भवन मालिकों को नोटिस दिए जा चुके हैं. हवामहल आमेर जोन में 35, आदर्श नगर जोन में 55, किशनपोल जोन में 60 मकानों को जर्जर चिह्नित किया गया है. वहीं कार्रवाई के नाम पर पिछले साल 4 भवनों को ध्वस्त किया गया था.
पढ़ें: Special : जयपुर के परकोटा क्षेत्र में सैकड़ों भवन जर्जर हालत में...दुर्घटना को दे रहे न्योता
यूनेस्को की भी लिमिटेशंस: वहीं जर्जर इमारतों को लेकर हेरिटेज निगम कमिश्नर अवधेश मीणा ने कहा कि चूंकि परकोटा क्षेत्र काफी पुराना बसा हुआ है. ऐसे में कई बिल्डिंग पुरानी होकर जर्जर हो चुकी हैं. लगातार इस तरह की इमारतों के भवन मालिकों को नोटिस जारी किए जाते हैं, जिसके तहत यदि बिल्डिंग की मरम्मत की जा सकती है, तो उसकी मरम्मत कराए और गिरने की स्थिति में है तो उसे सेल्फ डिमोलिश कराएं. हालांकि पुरानी इमारतों को डिमोलिश करने को लेकर यूनेस्को की भी लिमिटेशंस हैं. इसलिए ज्यादा से ज्यादा इमारतों को रिपेयर या रिनोवेट करने का प्रयास है ताकि हेरिटेज में बचा रहे. इसके अलावा एक्सईएन और उपायुक्त की ड्यूटी भी लगाई गई है. जिन्होंने रिसोर्सेज की व्यवस्था की है कि कहीं यदि इमारत गिरती है या इमारत को गिराने की जरूरत पड़ती है. तो इन संसाधनों के माध्यम से वहां से मलबा हटाया जा सकता है और इसका चार्ज संबंधित भवन मालिक से वसूला जाएगा.
पढ़ें: भीलवाड़ा: जर्जर इमारतों की समय रहते ले सुध: जिला कलेक्टर
उन्होंने बताया कि कुछ इमारतों में पारिवारिक या मकान मालिक और किराएदार के बीच डिस्प्यूट की स्थिति भी रहती है. ऐसी इमारतों को डिमोलिश करने पर रजामंदी भी नहीं हो पाती. ऐसी स्थिति में उन भवन मालिकों को पर्याप्त समय देकर इमारत की मरम्मत कराने के निर्देश दिए जाते रहे हैं और यदि इमारत की मरम्मत नहीं होती तो निगम के पास दुर्घटना से बचाव के लिए ऐसी इमारतों को डिमोलिश करने की पावर भी है. पिछले साल ऐसे उदाहरण देखने को भी मिले थे. बहरहाल, बीते साल बारिश में हांडीपुरा और घाटगेट पर ऐसे ही दो मकान धराशाई हो गए थे. गनीमत रही कि इनमें जनहानि नहीं हुई थी. वहीं अभी भी निगम की सूची में कई जर्जर मकान 150 साल पुराने भी हैं, जिनकी दीवारों पर से चूना हट चुका है और अब वो इमारतें सिर्फ पत्थरों की दीवारों पर टिकी हैं. हालांकि यूनेस्को की लिमिटेशंस की वजह से कुछ हद तक निगम के हाथ बंधे हुए हैं.