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भूजल दोहन से उपजे जल संकट को परंपरागत तरीकों से कर सकते हैं दूर: जल प्रहरी पुरस्कार से सम्मानित जयेश जोशी

राष्ट्रीय जल प्रहरी 2022 से सम्मानित वाग्धारा संस्थान के जयेश जोशी का कहना है कि प्रदेश में जल संकट की वजह भूजल दोहन है. इससे निपटने के लिए परंपरागत तरीकों को अपनाना होगा. उनका कहना है (Jayesh Joshi suggestions for water conservation) कि छोटे-छोटे तालाबों और बावड़ियों के जरिए पानी का संरक्षण किया जा सकता है. उनके संस्थान वाग्धारा ने भी इन्हीं अनुभवों के साथ काम किया. नतीजा यह निकला कि आदिवासी क्षेत्रों में अब जल संकट न के बराबर है.

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Published : Apr 7, 2022, 7:31 PM IST

Updated : Apr 7, 2022, 10:28 PM IST

Jayesh Joshi honoured with National Water Watch Award
जल प्रहरी पुरस्कार से सम्मानित जयेश जोशी

जयपुर. राजस्थान से आदिवासी समुदाय के लिए काम करने वाले वाग्धारा संस्थान के जयेश जोशी को राष्ट्रीय जल प्रहरी 2022 पुरस्कार से सम्मानित किया गया (Jayesh Joshi honoured with National Water Watch Award) है. दिल्ली में आयोजित कार्यक्रम में देश में जल संकट से निपटने के लिए काम कर रहे लोग शामिल हुए. केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने यह सम्मान जोशी को दिया. सम्मान लेने के बाद जयपुर पहुंचे जोशी से ईटीवी भारत ने खास बातचीत में जाना कि किस तरह से जल संकट से निपटा जा सकता है. इसके लिए किस तरह से कार्य करने की जरूरत है ताकि हम जल का संरक्षण कर सके.

प्राकृतिक संसाधनों को अपनाने की जरूरत: जोशी ने कहा कि राजस्थान का नाम लेते हैं, तो यहां का मरूप्रदेश जहन में आ जाता है. यहां के रेतीले धोरे, बंजर पड़ी जमीनें, राजस्थान के बारे में सबको ऐसा ही लगता है. लेकिन ऐसा नहीं है. इन सबसे अलग हैं यहां के आदिवासी, जो हमेशा से ही दुनिया को उदाहरण देते रहें हैं. आदिवासियों के परंपरागत तरीकों को आज भी काम में लिया जाए, तो कई तरह के संकट को खत्म किया जा सकता है. जोशी ने कहा कि पहाड़ों पर जहां चलना दूभर होता है, वहां मटकी से पानी पहुंचाकर पेड़ों को बचाया जाता है.

जल प्रहरी पुरस्कार से सम्मानित जयेश जोशी

1000 गांव के बुजुर्गों का अनुभव: जोशी ने बताया कि आदिवासी क्षेत्र में जब पानी के लिए काम करना शुरू किया, उस वक्त सबसे पहले 1000 गांव के आदिवासी बुजुर्गों से उनके परंपरागत जल स्रोतों के बारे में जानकारी ली. वह पुराने जमाने में किस तरह से जल संरक्षण पर काम करते थे. उसको समझा और उन्हीं तरीकों को आजमाते हुए हमने क्षेत्र में जल संरक्षण पर कार्य किया. बुजुर्गों से हमने यह भी जानने की कोशिश की कि जब अकाल की स्थिति होती थी, तब किस तरह से फसलों को जानवरों को बचाया जाता था. तब यह बात सामने आएगी. छोटे-छोटे तालाबों और बावड़ियों के जरिए पानी का संरक्षण किया जा सकता है. वाग्धारा ने भी इन्हीं अनुभवों के साथ काम किया. उसका नतीजा यह निकला कि आदिवासी क्षेत्रों में अब जल संकट न के बराबर है.

पढ़ें: Water Crisis in Alwar : गर्मी के साथ जल संकट भी शुरू, महिलाओं ने रोका अधिकारियों का रास्ता...

भूजल का दोहन संकट का कारण: जोशी ने कहा कि बदलते परिवेश में सतही जल की जगह भूजल का दोहन होने की वजह से जल संकट गहराता जा रहा है. बावड़ियां राजस्थान में सबसे ज्यादा हैं. छोटे-छोटे तालाब हर गांव में मिल जाएंगे, लेकिन उन से जल संग्रहण की जगह भूजल दोहन किया जा रहा है. अगर आंकड़े बताते हैं कि डार्क जोन बढ़ रहे हैं, तो सरकार को तत्काल भूजल दोहन पर रोक लगानी चाहिए. सतही जल प्रबंधन पर काम करें. बांधों को लेकर सरकार बहुत संवेदनशील है, तो हमारा आग्रह है कि बड़े बांधों की जगह छोटे जल स्रोतों पर काम करें और कोशिश हो कि समुदाय के साथ परंपरागत तरीकों के जरिए काम किया जाए.

पढ़ें: PHED Minister Seeks Governor Intervention: जल संकट पर मंत्री महेश जोशी को राज्यपाल से उम्मीद, बोले- उनका आभार, लेकिन अब करें अपने प्रभाव का इस्तेमाल

सरकारों ने गलत तरीकों से सुविधा देती है: जोशी ने कहा कि सरकार की तरफ से कई बार होता है कि लोगों को सुविधाएं दी जाती हैं, लेकिन क्या वो सही तरीके से है, यह देखना बड़ी बात है. सुविधा सही तरीके से देने की जगह गलत तरीके से परमिशन दी जाती है. रामगढ़ जब कैचमेंट में आ रहा था, तब हमारे जनप्रतिनिधियों ने अतिक्रमण करने की सुविधा दे दी. अतिक्रमणकारियों को अगर नई जगह दे दी जाती, तो एंक्रोचमेंट खत्म हो जाता. अगर सरकार इस तरह से सोच ले कि आज से 50 साल पहले हम किस तरीके से जल संरक्षण करते थे, उस वाटर बॉडी पर काम करने लग जाए, तो निश्चित रूप से हम इस जल संकट को खत्म कर सकते हैं. रामगढ़ जब जिंदा था, तब सरकारों ने एनक्रोचमेंट को गंभीरता से नहीं लिया, आज रामगढ़ मर गया है.

पढ़ें: बयाना कस्बेवासियों की अजब कहानी, 800 लोगों को 30 साल से नहीं मिल रहा पानी...दूर नलकूपों से भरकर लाना पड़ता है पेयजल

व्यवहारिक उपायों पर सोचना होगा: जोशी कहते हैं कि जल संकट से निपटना है, तो सरकारों को व्यवहारिक उपायों पर सोचना होगा ना कि गैर व्यवहारिक उपायों पर. पूर्व की सरकारों और वर्तमान की सरकार कहती है कि माही का पानी जालौर ले जाएंगे. चंबल का पानी बनास में, इंदिरा गांधी नहर वहां ले जाएंगे. यह सब गैर व्यवहारिक बाते हैं. जितना ट्रांसपोर्टेशन कम करेंगे, उतना ही पानी की बचत कर सकेंगे. हवा, जल, जंगल, जमीन, खाद्य को ज्यादा परिवहन से रोकना होगा. हमारे परंपरागत तरीकों पर काम करने की जरूरत है. यह सोचना होगा कि क्या 50 सालों में हमारी बावड़ियों के संरक्षण पर सरकार ने काम किया. जब तक हम अपने परंपरागत संसाधन पर काम नहीं करेंगे. तब तक हम जल जीवन संरक्षण की बात नहीं कर सकते. सरकार को बावड़ियों, तालाबों का संरक्षण करना होगा, बजाय बड़े बांधों का या नदी से नदी जोड़ने या एक जगह से दूसरे का पानी ले जाने की बात करने के. जोशी ने कहा कि व्यापारिक परंपरा की जगह हमें व्यवहारिक परंपरा पर काम करने की जरूरत है.

जोशी को यह मिला सम्मान: जल प्रहरी समारोह में राजस्थान से आदिवासी समुदाय के लिए काम करने वाले वाग्धारा संस्थान के सचिव जयेश जोशी हुए सम्मानित हुए. बुधवार को दिल्ली में आयोजित कार्यक्रम में देश में जल संकट से निपटने के लिए काम कर रहे लोग शामिल हुए. जल प्रहरी सम्मान से सम्मानित होने वाले कई जल प्रहरी ऐसे थे, जिनके नवीन उपयोग, उपकरण, प्रयोग, पारंपरिक तौर-तरीके अनूठे हैं और लाखों लीटर पानी बचा रहे हैं. इन जल प्रहरियों में किसान, वैज्ञानिक, आईएएस, आईआरएस और शिक्षकों के नाम शामिल हुए.

जयपुर. राजस्थान से आदिवासी समुदाय के लिए काम करने वाले वाग्धारा संस्थान के जयेश जोशी को राष्ट्रीय जल प्रहरी 2022 पुरस्कार से सम्मानित किया गया (Jayesh Joshi honoured with National Water Watch Award) है. दिल्ली में आयोजित कार्यक्रम में देश में जल संकट से निपटने के लिए काम कर रहे लोग शामिल हुए. केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने यह सम्मान जोशी को दिया. सम्मान लेने के बाद जयपुर पहुंचे जोशी से ईटीवी भारत ने खास बातचीत में जाना कि किस तरह से जल संकट से निपटा जा सकता है. इसके लिए किस तरह से कार्य करने की जरूरत है ताकि हम जल का संरक्षण कर सके.

प्राकृतिक संसाधनों को अपनाने की जरूरत: जोशी ने कहा कि राजस्थान का नाम लेते हैं, तो यहां का मरूप्रदेश जहन में आ जाता है. यहां के रेतीले धोरे, बंजर पड़ी जमीनें, राजस्थान के बारे में सबको ऐसा ही लगता है. लेकिन ऐसा नहीं है. इन सबसे अलग हैं यहां के आदिवासी, जो हमेशा से ही दुनिया को उदाहरण देते रहें हैं. आदिवासियों के परंपरागत तरीकों को आज भी काम में लिया जाए, तो कई तरह के संकट को खत्म किया जा सकता है. जोशी ने कहा कि पहाड़ों पर जहां चलना दूभर होता है, वहां मटकी से पानी पहुंचाकर पेड़ों को बचाया जाता है.

जल प्रहरी पुरस्कार से सम्मानित जयेश जोशी

1000 गांव के बुजुर्गों का अनुभव: जोशी ने बताया कि आदिवासी क्षेत्र में जब पानी के लिए काम करना शुरू किया, उस वक्त सबसे पहले 1000 गांव के आदिवासी बुजुर्गों से उनके परंपरागत जल स्रोतों के बारे में जानकारी ली. वह पुराने जमाने में किस तरह से जल संरक्षण पर काम करते थे. उसको समझा और उन्हीं तरीकों को आजमाते हुए हमने क्षेत्र में जल संरक्षण पर कार्य किया. बुजुर्गों से हमने यह भी जानने की कोशिश की कि जब अकाल की स्थिति होती थी, तब किस तरह से फसलों को जानवरों को बचाया जाता था. तब यह बात सामने आएगी. छोटे-छोटे तालाबों और बावड़ियों के जरिए पानी का संरक्षण किया जा सकता है. वाग्धारा ने भी इन्हीं अनुभवों के साथ काम किया. उसका नतीजा यह निकला कि आदिवासी क्षेत्रों में अब जल संकट न के बराबर है.

पढ़ें: Water Crisis in Alwar : गर्मी के साथ जल संकट भी शुरू, महिलाओं ने रोका अधिकारियों का रास्ता...

भूजल का दोहन संकट का कारण: जोशी ने कहा कि बदलते परिवेश में सतही जल की जगह भूजल का दोहन होने की वजह से जल संकट गहराता जा रहा है. बावड़ियां राजस्थान में सबसे ज्यादा हैं. छोटे-छोटे तालाब हर गांव में मिल जाएंगे, लेकिन उन से जल संग्रहण की जगह भूजल दोहन किया जा रहा है. अगर आंकड़े बताते हैं कि डार्क जोन बढ़ रहे हैं, तो सरकार को तत्काल भूजल दोहन पर रोक लगानी चाहिए. सतही जल प्रबंधन पर काम करें. बांधों को लेकर सरकार बहुत संवेदनशील है, तो हमारा आग्रह है कि बड़े बांधों की जगह छोटे जल स्रोतों पर काम करें और कोशिश हो कि समुदाय के साथ परंपरागत तरीकों के जरिए काम किया जाए.

पढ़ें: PHED Minister Seeks Governor Intervention: जल संकट पर मंत्री महेश जोशी को राज्यपाल से उम्मीद, बोले- उनका आभार, लेकिन अब करें अपने प्रभाव का इस्तेमाल

सरकारों ने गलत तरीकों से सुविधा देती है: जोशी ने कहा कि सरकार की तरफ से कई बार होता है कि लोगों को सुविधाएं दी जाती हैं, लेकिन क्या वो सही तरीके से है, यह देखना बड़ी बात है. सुविधा सही तरीके से देने की जगह गलत तरीके से परमिशन दी जाती है. रामगढ़ जब कैचमेंट में आ रहा था, तब हमारे जनप्रतिनिधियों ने अतिक्रमण करने की सुविधा दे दी. अतिक्रमणकारियों को अगर नई जगह दे दी जाती, तो एंक्रोचमेंट खत्म हो जाता. अगर सरकार इस तरह से सोच ले कि आज से 50 साल पहले हम किस तरीके से जल संरक्षण करते थे, उस वाटर बॉडी पर काम करने लग जाए, तो निश्चित रूप से हम इस जल संकट को खत्म कर सकते हैं. रामगढ़ जब जिंदा था, तब सरकारों ने एनक्रोचमेंट को गंभीरता से नहीं लिया, आज रामगढ़ मर गया है.

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व्यवहारिक उपायों पर सोचना होगा: जोशी कहते हैं कि जल संकट से निपटना है, तो सरकारों को व्यवहारिक उपायों पर सोचना होगा ना कि गैर व्यवहारिक उपायों पर. पूर्व की सरकारों और वर्तमान की सरकार कहती है कि माही का पानी जालौर ले जाएंगे. चंबल का पानी बनास में, इंदिरा गांधी नहर वहां ले जाएंगे. यह सब गैर व्यवहारिक बाते हैं. जितना ट्रांसपोर्टेशन कम करेंगे, उतना ही पानी की बचत कर सकेंगे. हवा, जल, जंगल, जमीन, खाद्य को ज्यादा परिवहन से रोकना होगा. हमारे परंपरागत तरीकों पर काम करने की जरूरत है. यह सोचना होगा कि क्या 50 सालों में हमारी बावड़ियों के संरक्षण पर सरकार ने काम किया. जब तक हम अपने परंपरागत संसाधन पर काम नहीं करेंगे. तब तक हम जल जीवन संरक्षण की बात नहीं कर सकते. सरकार को बावड़ियों, तालाबों का संरक्षण करना होगा, बजाय बड़े बांधों का या नदी से नदी जोड़ने या एक जगह से दूसरे का पानी ले जाने की बात करने के. जोशी ने कहा कि व्यापारिक परंपरा की जगह हमें व्यवहारिक परंपरा पर काम करने की जरूरत है.

जोशी को यह मिला सम्मान: जल प्रहरी समारोह में राजस्थान से आदिवासी समुदाय के लिए काम करने वाले वाग्धारा संस्थान के सचिव जयेश जोशी हुए सम्मानित हुए. बुधवार को दिल्ली में आयोजित कार्यक्रम में देश में जल संकट से निपटने के लिए काम कर रहे लोग शामिल हुए. जल प्रहरी सम्मान से सम्मानित होने वाले कई जल प्रहरी ऐसे थे, जिनके नवीन उपयोग, उपकरण, प्रयोग, पारंपरिक तौर-तरीके अनूठे हैं और लाखों लीटर पानी बचा रहे हैं. इन जल प्रहरियों में किसान, वैज्ञानिक, आईएएस, आईआरएस और शिक्षकों के नाम शामिल हुए.

Last Updated : Apr 7, 2022, 10:28 PM IST
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