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लॉकडाउन की पालना करते हुए घरों में अरदास कर मनाई गई बैसाखी

देशभर में 13 अप्रैल को बैसाखी का पर्व मनाया जाता है. ऐसे में इस बार कोरोना वायरस के बढ़ते संक्रमण के चलते लोगों ने रहकर ही अरदास की.

celebrating Baisakhi in lockdown, अरदास कर मनाई गई बैसाखी
अरदास कर मनाई गई बैसाखी
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Published : Apr 13, 2020, 6:26 PM IST

जयपुर. लॉकडाउन के चलते इस बार बैसाखी का रंग कुछ अलग दिखा. पहले जहां लोग परिवार के अलावा रिश्‍तेदारों और दोस्‍तों के साथ मिलकर यह पर्व मनाते थे, वहीं इस बार यह त्‍योहार घर में पर‍िवारजनों के साथ ही मनाया गया. गुरुद्वारों में बड़े आयोजनों की जगह घरों में रहकर ही लोगों ने अरदास की.

बैसाखी, ये नाम सुनते ही ढोल नगाड़ों की थाप पर भांगड़ा करते युवक-युवतियों की एक तस्वीर सामने आ जाती है. जो प्रकृति के इस उत्सव को आनंद के साथ मनाते हैं, लेकिन इस बार पूरे देश में ना तो यह आनंद है और ना ही यह नजारा.

लॉकडाउन की पालना करते हुए घरों में अरदास कर मनाई गई बैसाखी

पढ़ेंः नागौर के बासनी में मिले 5 नए Corona Positive

राजधानी की अगर बात की जाए तो कोरोना महामारी के कारण बैसाखी पर्व पर सिख समुदाय ने लॉकडाउन की पालना करते हुए, घर में ही नितनेम, सुखमणी साहिब के पाठ और चौपाइ साहिब के पाठ किए. साथ ही सभी के भले की अरदास भी की गई.

गुरु दर्शन यात्रा कमेटी संयोजक जगजीत सिंह सूरी ने बताया कि पूरे विश्व में कोरोना की विदाई हुई है. बैसाखी पर्व पर जो आयोजन गुरुद्वारों में किया जाता था. वो इस बार नहीं हो पाया है. ऐसे में घरों में रहकर यही अरदास की गई है कि इस महामारी से जल्द से जल्द मुक्ति मिले और लोग एक बार फिर सुख शांति से रह सकें.

वहीं महिलाओं ने बताया कि बैसाख के महीने में गुरु नानक देव जी कोई चमत्कार दिखाकर, इस महामारी को जल्द से जल्द खत्म करें. जिससे दुनिया दोबारा सामान्य रूप से चल सके.

पढ़ेंः SPECIAL: लॉकडाउन की मार, फूल और किसानों के चेहरे दोनों मुरझाए

बता दें कि देश भर में 13 अप्रैल को बैसाखी का पर्व मनाया जा रहा है. हिंदी कैलेंडर के अनुसार इस दिन को सौर नव वर्ष की शुरुआत के रूप में भी जाना जाता है. इस दिन लोग अनाज की पूजा करते हैं और फसल के कटकर घर आ जाने की खुशी में भगवान और प्रकृति को धन्यवाद करते हैं. 1699 में इसी दिन सिख पंथ के 10वें गुरु श्री गुरु गोविन्द सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना की थी.

जयपुर. लॉकडाउन के चलते इस बार बैसाखी का रंग कुछ अलग दिखा. पहले जहां लोग परिवार के अलावा रिश्‍तेदारों और दोस्‍तों के साथ मिलकर यह पर्व मनाते थे, वहीं इस बार यह त्‍योहार घर में पर‍िवारजनों के साथ ही मनाया गया. गुरुद्वारों में बड़े आयोजनों की जगह घरों में रहकर ही लोगों ने अरदास की.

बैसाखी, ये नाम सुनते ही ढोल नगाड़ों की थाप पर भांगड़ा करते युवक-युवतियों की एक तस्वीर सामने आ जाती है. जो प्रकृति के इस उत्सव को आनंद के साथ मनाते हैं, लेकिन इस बार पूरे देश में ना तो यह आनंद है और ना ही यह नजारा.

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राजधानी की अगर बात की जाए तो कोरोना महामारी के कारण बैसाखी पर्व पर सिख समुदाय ने लॉकडाउन की पालना करते हुए, घर में ही नितनेम, सुखमणी साहिब के पाठ और चौपाइ साहिब के पाठ किए. साथ ही सभी के भले की अरदास भी की गई.

गुरु दर्शन यात्रा कमेटी संयोजक जगजीत सिंह सूरी ने बताया कि पूरे विश्व में कोरोना की विदाई हुई है. बैसाखी पर्व पर जो आयोजन गुरुद्वारों में किया जाता था. वो इस बार नहीं हो पाया है. ऐसे में घरों में रहकर यही अरदास की गई है कि इस महामारी से जल्द से जल्द मुक्ति मिले और लोग एक बार फिर सुख शांति से रह सकें.

वहीं महिलाओं ने बताया कि बैसाख के महीने में गुरु नानक देव जी कोई चमत्कार दिखाकर, इस महामारी को जल्द से जल्द खत्म करें. जिससे दुनिया दोबारा सामान्य रूप से चल सके.

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बता दें कि देश भर में 13 अप्रैल को बैसाखी का पर्व मनाया जा रहा है. हिंदी कैलेंडर के अनुसार इस दिन को सौर नव वर्ष की शुरुआत के रूप में भी जाना जाता है. इस दिन लोग अनाज की पूजा करते हैं और फसल के कटकर घर आ जाने की खुशी में भगवान और प्रकृति को धन्यवाद करते हैं. 1699 में इसी दिन सिख पंथ के 10वें गुरु श्री गुरु गोविन्द सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना की थी.

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