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एसिड अटैक पीड़ितों के कल्याण के लिए क्या कर रही है सरकार, हाई कोर्ट ने मांगा जवाब

राजस्थान हाई कोर्ट ने एसिड अटैक पीड़िताओं के कल्याण के लिए किए जाने वाले कार्यों को लेकर मुख्य सचिव, प्रमुख कार्मिक सचिव और प्रमुख स्वास्थ्य सचिव को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है. न्यायाधीश सबीना और न्यायाधीश नरेंद्र सिंह ने यह आदेश शालिनी श्योरण की जनहित याचिका पर दिए.

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Published : Jan 24, 2020, 8:21 PM IST

Acid Attack Cases, राजस्थान हाई कोर्ट न्यूज
हाई कोर्ट ने एसिड अटैक पीड़ितों के लिए सरकार के कार्यों पर जवाब मांगा

जयपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने मुख्य सचिव, प्रमुख कार्मिक सचिव, प्रमुख गृह सचिव, प्रमुख सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता सचिव और प्रमुख स्वास्थ्य सचिव को नोटिस जारी कर पूछा है कि एसिड अटैक से पीडितों के कल्याण के लिए क्या किया जा रहा है. न्यायाधीश सबीना और न्यायाधीश नरेन्द्र सिंह ने यह आदेश शालिनी श्योराण की जनहित याचिका पर दिए.

हाई कोर्ट ने एसिड अटैक पीड़ितों के लिए सरकार के कार्यों पर जवाब मांगा

जनहित याचिका में कहा गया कि एनसीआरबी के आंकडों के तहत वर्ष 2018 में एसिड अटैक की 228 घटनाएं हुई हैं. वहीं दूसरी ओर खुले बाजार में एसिड बिना किसी रोकटोक और पहचान उजागर किए बिना मिल रहा है. एसिड बेचने वाला न तो खरीदार का रिकॉर्ड रखता है और न ही एसिड खरीद का कारण पूछता है. दूसरी ओर विष अधिनियम,1919 के संबंधित नियम नहीं बनाने के कारण अधिनियम के प्रावधान लागू नहीं हो रहे हैं.

पढ़ें- मनी लॉन्ड्रिंग मामले में पूर्व आईएएस अशोक सिंघवी सहित अन्य को राहत से इनकार

याचिका में कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट तय कर चुका है कि हर निजी अस्पताल में एसिड अटैक का फ्री इलाज होना चाहिए. जबकि अस्पतालों में अलग से एसिड अटैक पीडितों के लिए वार्ड नहीं है. उन्हें अन्य मरीजों के साथ बर्न वार्ड में रखा जाता है. याचिका में यह भी कहा गया कि उनके लिए पुनर्वास योजना बनाई जाए और नौकरियों में आरक्षण देने के साथ ही क्षतिपूर्ति राशि भी तीन लाख से बढ़ाकर दस लाख रुपये की जाए. जिस पर सुनवाई करते हुए एकलपीठ ने संबंधित अधिकारियों को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है.

जयपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने मुख्य सचिव, प्रमुख कार्मिक सचिव, प्रमुख गृह सचिव, प्रमुख सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता सचिव और प्रमुख स्वास्थ्य सचिव को नोटिस जारी कर पूछा है कि एसिड अटैक से पीडितों के कल्याण के लिए क्या किया जा रहा है. न्यायाधीश सबीना और न्यायाधीश नरेन्द्र सिंह ने यह आदेश शालिनी श्योराण की जनहित याचिका पर दिए.

हाई कोर्ट ने एसिड अटैक पीड़ितों के लिए सरकार के कार्यों पर जवाब मांगा

जनहित याचिका में कहा गया कि एनसीआरबी के आंकडों के तहत वर्ष 2018 में एसिड अटैक की 228 घटनाएं हुई हैं. वहीं दूसरी ओर खुले बाजार में एसिड बिना किसी रोकटोक और पहचान उजागर किए बिना मिल रहा है. एसिड बेचने वाला न तो खरीदार का रिकॉर्ड रखता है और न ही एसिड खरीद का कारण पूछता है. दूसरी ओर विष अधिनियम,1919 के संबंधित नियम नहीं बनाने के कारण अधिनियम के प्रावधान लागू नहीं हो रहे हैं.

पढ़ें- मनी लॉन्ड्रिंग मामले में पूर्व आईएएस अशोक सिंघवी सहित अन्य को राहत से इनकार

याचिका में कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट तय कर चुका है कि हर निजी अस्पताल में एसिड अटैक का फ्री इलाज होना चाहिए. जबकि अस्पतालों में अलग से एसिड अटैक पीडितों के लिए वार्ड नहीं है. उन्हें अन्य मरीजों के साथ बर्न वार्ड में रखा जाता है. याचिका में यह भी कहा गया कि उनके लिए पुनर्वास योजना बनाई जाए और नौकरियों में आरक्षण देने के साथ ही क्षतिपूर्ति राशि भी तीन लाख से बढ़ाकर दस लाख रुपये की जाए. जिस पर सुनवाई करते हुए एकलपीठ ने संबंधित अधिकारियों को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है.

Intro:बाईट- याचिकाकर्ता शालिनी श्योराण

जयपुर। राजस्थान हाईकोर्ट ने मुख्य सचिव, प्रमुख कार्मिक सचिव, प्रमुख गृह सचिव, प्रमुख सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता सचिव और प्रमुख स्वास्थ्य सचिव को नोटिस जारी कर पूछा है कि एसिड अटैक से पीडितों के कल्याण के लिए क्या किया जा रहा है। न्यायाधीश सबीना और न्यायाधीश नरेन्द्र सिंह ने यह आदेश शालिनी श्योराण की जनहित याचिका पर दिए।Body:जनहित याचिका में कहा गया कि एनसीआरबी के आंकडों के तहत वर्ष 2018 में एसिड अटैक की 228 घटनाएं हुई हैं। वहीं दूसरी ओर खुले बाजार में एसिड बिना किसी रोकटोक और पहचान उजागर किए बिना मिल रहा है। एसिड बेचने वाला न तो खरीदार का रिकॉर्ड रखता है और ना ही एसिड खरीद का कारण पूछता है। दूसरी और विष अधिनियम,1919 के संबंधित नियम नहीं बनाने के कारण अधिनियम के प्रावधान लागू नहीं हो रहे हैं। याचिका में कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट तय कर चुका है कि हर निजी अस्पताल में एसिड अटैक का फ्री इलाज होना चाहिए। जबकि अस्पतालों में अलग से एसिड अटैक पीडितों के लिए वार्ड नहीं नहीं है। उन्हें अन्य मरीजों के साथ बर्न वार्ड में रखा जाता है। याचिका में यह भी कहा गया कि उनके लिए पुनर्वास योजना बनाई जाए और नौकरियों में आरक्षण देने के साथ ही क्षतिपूर्ति राशि भी तीन लाख से बढ़ाकर दस लाख रुपए की जाए। जिस पर सुनवाई करते हुए एकलपीठ ने संबंधित अधिकारियों को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है।Conclusion:
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