जयपुर. मौजूदा दौर में भारत अर्थव्यवस्था के मंच पर संघर्ष करता हुआ नजर आ रहा है. व्यापार और उद्योग धंधों पर कोरोना वायरस संक्रमण पर लगाम कसने के लिए जारी किए गए लॉकडाउन की मार साफ नजर आती है. जयपुर के लघु और मंझले उद्योग भी इसकी चपेट से बच नहीं पाए हैं और इनमें शामिल है जयपुर का मशहूर हस्तशिल्प.
दरअसल, उद्योग हैंडीक्राफ्ट के सामान की मांग देसी नहीं बल्कि विदेशी सैलानियों के बीच भी होती है और कई अंतरराष्ट्रीय मंचों पर होने वाली एग्जीबिशन में जयपुर के विभिन्न हैंडीक्राफ्ट आइटम्स को नुमाइश के लिए भेजा जाता है जो शहर में आने वाले सैलानियों के लिए सदैव आकर्षण का केंद्र रहा है.
सालाना टर्नओवर का 70% हुआ प्रभावित...
जब हमने जयपुर के एक कारोबारी से उनकी मन की बात जानी तो उन्होंने कहा, कि लॉकडाउन के दौर के बाद सरकार एक तरफ काम शुरू करने के लिए फैक्ट्री मालिकों को प्रोत्साहित करने की बात कह रही है. वहीं, दूसरी तरफ श्रमिकों की उपलब्धता ही सुनिश्चित नहीं हो पाई है. अगर प्रोडक्शन सुचारू करने पर एक बार काम शुरू हुआ तो चुनौतियां फिर भी कम नहीं होगी क्योंकि फिलहाल बाजार उनका सामान लेने के लिए तैयार नहीं है.
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उनके सालाना टर्नओवर का 70% अब तक प्रभावित हो चुका है, ऐसे में साल के बच्चे वक्त में उम्मीदें कम है. नेशनल और इंटरनेशनल लेवल पर एग्जीबिशन कैंसिल हो चुकी है. ऑनलाइन ऑर्डर भी आप कैंसिल हो रहे हैं. ऐसे में नया प्रोडक्शन करके वह किस बाजार में जाएंगे लिहाजा उनके लिए फिलहाल बड़ी चुनौतियां हैं. साथ ही जब तक सैलानी नहीं आएंगे जयपुर में काम सुचारू नहीं हो सकता है.
जयपुरी चादर दुनियां भर मशहुर...
जाहिर है, कि जयपुर में लकड़ी के फर्नीचर के साथ-साथ जेम्स एंड ज्वेलरी सांगानेरी प्रिंट के कपड़े और चद्दर जयपुरी रजाईयां दुनिया भर में हस्तशिल्प के बाजार में अपनी खास जगह रखते हैं. इन प्रोडक्ट की जितनी शोहरत है उतना ही इनके पीछे काम करने वाले लोगों की मेहनत भी है. परंतु लॉकडाउन के बाद सभी व्यापारियों पर अब संकट मंडरा चुका है. एक अनुमान के मुताबिक हस्तशिल्प उद्योग का मासिक कारोबार अकेले जयपुर शहर में ही 200 करोड़ रुपए के लगभग होता है. ऐसे हालात में इस काम के रुक जाने से ना सिर्फ फैक्ट्री और कारखाना मालिकों पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं, बल्कि इन औद्योगिक इकाइयों से जुड़े श्रमिक और कामगारों पर भी मुसीबत बढ़ती जा रही है.
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इसके साथ ही सवाल है परंपरागत किन उद्योगों की जीवित बचे रहने का, क्योंकि इन में काम करने वाले श्रमिक स्किल्ड लेबर की श्रेणी में आते हैं और अगर वह एक बार जयपुर से अपने घरों की ओर लौट गए तो फिर इन उद्योगों के लिए उपयुक्त मजदूर तलाशना भी किसी चुनौती से कम नहीं होगा.