जयपुर. दो विधानसभा उपचुनाव (Assembly by-election) जीतने के बाद गहलोत सरकार मजबूत हो गई है. निर्दलीयों और बसपा (BSP) से कांग्रेस में आए विधायकों के समर्थन से चल रही गहलोत सरकार को अब जाकर कांग्रेस के विधायकों के दम पर मजबूती मिली है. विधानसभा में बहुमत के लिए 102 विधायकों का आंकड़ा जरूरी है. विधानसभा चुनाव में 100 विधायक कांग्रेस पार्टी के चुनाव जीते थे जो बहुमत के आंकड़े से 1 संख्या कम थी. यही कारण था कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को आरएलडी और निर्दलीयों विधायकों के सहयोग से सरकार बनानी पड़ी. लेकिन उपचुनाव जीतने के बाद अब कांग्रेस का विधानसभा में बहुमत हो गया है.
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने बहुमत को अपने पक्ष में करने के लिए बसपा के 6 विधायकों को भी कांग्रेस पार्टी में शामिल करवा लिया था. लेकिन अब उनकी सदस्यता को भी सुप्रीम कोर्ट में बसपा ने चैलेंज किया है. जिसकी सुनवाई इसी महीने होगी. बसपा से कांग्रेस में शामिल हुए विधायकों की सदस्यता रद्द भी हो जाए तो सरकार पर कोई असर नहीं पड़ेगा.
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राजस्थान में अगर अब कांग्रेस के सिंबल पर जीत कर आए विधायकों की बात की जाए तो यह संख्या 102 हो गई है जो बहुमत के लिए जरूरी 101 से ज्यादा है. बसपा से कांग्रेस में शामिल हो चुके विधायकों की बात की जाए तो संख्या बढ़कर 108 हो जाती है. इसके साथ ही अब कांग्रेस समर्थित विधायकों की बात की जाए तो वह संख्या भी बढ़कर 126 हो चुकी है. इन 126 विधायकों में 102 कांग्रेस के सिंबल पर जीत कर आए है. जबकि 6 बसपा से कांग्रेस में शामिल हुए विधायक, बीटीपी के दो, माकपा के दो, लोक दल का 1 और 13 निर्दलीय विधायक हैं.
कांग्रेस का विधानसभा में पूर्ण बहुमत
वैसे तो बसपा के 6 विधायकों की सदस्यता पर कोई बड़ा खतरा नही है. लेकिन अगर ऐसा होता है तो भी कांग्रेस के सिम्बल पर जीते 102 विधायक है. कांग्रेस का विधानसभा में पूर्ण बहुमत हो गया है.
राजस्थान में जब पायलट कैंप की नाराजगी के बाद जुलाई 2020 में सियासी संकट शुरू हुआ, तो जो विधायक गहलोत के साथ बाडाबंदी में गए विधायक मंत्री पद या राजनीतिक नियुक्तियां मानकर चल रहे थे. चाहे निर्दलीय विधायक हो या फिर बसपा से कांग्रेस में शामिल हुए विधायक. सभी यह मानकर चल रहे थे कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत उन्हें भी सरकार बचाने के एवज में सरकार में हिस्सेदारी का मौका देंगे.
प्रभावशाली नेताओं को ही मिलेगा मंत्री पद
राज्य में परिस्थितियां बदल चुकी है. सचिन पायलट अब पूरी तरह कांग्रेस के साथ है. विधानसभा उप चुनाव के बाद से कांग्रेस के अपने विधायकों की संख्या भी 100 से बढ़कर 102 हो गई है. ऐसे में अब पद पाने के मामले में पहले कांग्रेस के मजबूत ओर प्रभावशाली नेताओं को ही मंत्री पद दिया जाएगा. उसके बाद ही निर्दलीय या बसपा से कांग्रेस में शामिल हुए विधायकों को सत्ता में हिस्सेदारी दी जाएगी. राजनीतिक नियुक्तियों से भी विधायकों को दूर रखा जाएगा.
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विधायकों को राजनीतिक नियुक्तियां नहीं
राजस्थान में जब सियासी संकट आया तो कहां जाने लगा कि जिन विधायकों का मंत्रिमंडल में नंबर नहीं आएगा, उन्हें सरकार राजनीतिक नियुक्तियों के जरिए एडजेस्ट करेगी. कुछ विधायकों को संसदीय सचिव बनाकर संतुष्ट किया जाएगा. लेकिन अब बदली हुई परिस्थितियों में यह तय हो चुका है कि विधायकों को राजनीतिक नियुक्तियां नहीं दी जाएगी. कांग्रेस कार्यकर्ताओं को राजनीतिक नियुक्तियों के जरिए एडजस्ट किया जाएगा. हालांकि, कुछ विधायकों को संसदीय सचिव जरूर बनाया जा सकता है. लेकिन इसमें भी कानूनी अड़चनों को ध्यान में रखा जाएगा.
मुख्यमंत्री के दिल्ली जाने की फिर चर्चा
मंत्रिमंडल विस्तार और राजनीतिक नियुक्तियों को लेकर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के 7 या 8 नवंबर को दिल्ली जाने की भी चर्चा है. हालांकि, अभी मुख्यमंत्री का आधिकारिक कार्यक्रम जारी नहीं हुआ है. लेकिन कहा जा रहा है कि प्रियंका गांधी 7 या 8 नवंबर को शिमला से लौटकर दिल्ली में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के साथ मंत्रिमंडल विस्तार और राजनीतिक नियुक्तियों को लेकर चर्चा कर सकती हैं.