जयपुर. राजस्थान में पिछली वसुन्धरा राजे सरकार के समय 1 अप्रेल 2018 को स्टेट हाईवे पर से निजी वाहनों पर से टोल वसुली बंद की थी. जिसे राजस्थान की अशोक गहलोत सरकार ने अब फिर से लागू कर दिया है. इसके पीछे सरकार कर कई तर्क देती हुई नजर आ रही है.
सरकार का कहना है कि जो सड़कें ठेकेदारों ने बनायी थी और इसी टोल के सहारे ये ठेकेदार इन सड़कों की मरम्मत करते थे. अब वो वाइबलिटी खत्म होने के चलते सड़कों की मरम्मत भी नहीं कर रहे थे और जो सरकार के साथ उनका करार था उसे लेकर वो कोर्ट में भी पहुच रहे थे.
सरकार का तर्क है कि इससे राज्य सरकार को एक हजार करोड़ का सीधा नुकसान हो रहा था. जो बीती सरकार ने वोटों की राजनिती के चलते लिया था. अब इस टोल टैक्स को वापस लगाने से प्रदेश की खस्ताहाल सड़कों की फिर से मरम्मत हो सकेगी. हालांकी एक बात साफ है कि निर्णय चाहे राजनितीक तौर पर ही क्यों ना लिया गया हो लेकिन, निजी वाहन मालिकों को इससे राहत मिली थी क्योंकि प्रदेश के 142 टोल नाकों से निकलने पर उससे किसी तरह का टोल नही लिया जा रहा था.
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इसे लेकर अगर आंकडों की बात करें तो वसुन्धरा राजे की गत भाजपा सरकार ने चुनावी साल में 1 अप्रेल 2018 को टोल हटा दिया था. प्रदेश में कुल 15 हजार 543 किमी लम्बा स्टेट हाइवे है. जिसमें से 30 से 35 प्रतिशत सडकें रिपेयर नहीं हो पा रही. अब हर टोल पर औसतन 40 से 65 रुपये लगेंगे ओर लगभग हर पचास किमी पर एक टोल होगा.
बता दें कि राजस्थान में फिल्हाल 142 टोल नाके ऐसे हैं जहां पर 1 नवम्बर से पहले निजी वाहनों से टोल नहीं लिया जा रहा था. इससे जनता को भले ही फायदा हो रहा हों लेकिन सरकार की जेब पर इसका सालाना 172 करोड़ का नुकसान हो रहा था. क्योकि सरकार ने जो भी प्रदेश में सड़के बनाई थी उनके रखरखाव का काम इस टोल की राशि से ही करना था. ऐसे में सरकार को हर महीने के 172 करोड़ रुपये अनुदान के तौर पर देकर भरपाई की जा रही थी. जिसमें भी देरी हो रही थी. ऐसे में ठेकेदार भुगतान नही. मिलने से सड़कों की मरम्मत का काम नहीं कर रहे थे और इससे प्रदेश की सड़कें लगातार खराब हो रही थी.
इसे इस तरह समझा जाये कि सरकार को हर महीने 300 करोड़ रुपये टोल के जरिये स्टेट हाइवे से मिल रहे थे. जिसे देकर वो उन सडकों को मेंटेनेंस करवा रहे थे. लेकिन, जैसे ही निजी वाहनों से टोल बंद हुआ 300 करोड़ में से राजस्व केवल 128 करोड़ ही रह गया. जिसके चलते सरकार पर हर महीने का 172 करोड़ का भार पड़ गया और अगर पांच साल तक ये रहता तो सरकार पर 860 करोड़ रूपये का भार आता और पेमेंट देरी से होने पर ठेकेदार सडकों की मरम्मत भी नहीं करते और कोर्ट में भी चले जाते.
इसे लेकर आम लोगों के भी मिक्स रिएक्शन है. जहां कुछ लोग कह रहें है कि आम लोगों को पहले ही महंगाई से दो चार होना पड़ रहा था. तो अब टोल टैक्स लग जाने से उन्हें और दिक्कत होगी. एक बार टोल लग जाने के बाद उसे वापस लगाने का कोई तुक नहीं होता है.
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साथ ही उन्होंने कहा कि सरकार को जनता को राहत देने के लिए फैसले करने चाहिए. इस तरह से दी गयी सुविधा वापस लेने से उन्हें दिक्कत होगी. वहीं, कुछ लोग इस फैसले का स्वागत भी करते दिखाई दे रहें है. कुछ लोगों ने कहा कि जब कार कोई 10 लाख या इससे ज्यादा की चला सकता है और पैट्रोल के बढ़े दाम भी वो दे सकता है. तो सडकों की मरम्मत में काम आने वाले इस टोल को देने में उसे क्या परेशानी होगी. वैसे भी इस निर्णय से लोग ही प्रभावित होंगे क्योकि बड़ी गाडियों में वही सफर करते हैं और आम जनता को तो इससे बेहतर सड़कों की राहत मिलेगी. वैसे भी पिछली सरकार ने केवल चुनावी फायदे के लिए ये निर्णय लिया था जिसके चलते आज सड़कें खराब हो चुकी है.