जयपुर. प्रदोष का व्रत भगवान भोलेनाथ को विशेष प्रिय है. त्रयोदशी तिथि को प्रदोष कहा जाता है. ऐसे में हर माह में दो बार प्रदोष आती है. एक कृष्ण पक्ष की और दूसरी शुक्ल पक्ष की. वैसे तो सप्ताह के सातों दिन पड़ने वाली प्रदोष का अपना खास महत्व होता है.
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इस बार 21 जुलाई को आषाढ़ शुक्ल त्रयोदशी बुधवार को है. मान्यता है कि बुधवार को आने वाली प्रदोष का व्रत करने से भगवान भोलेनाथ की कृपा से संतान सुख की प्राप्ति होती है और यह व्रत करने से संतान पक्ष को सुख प्राप्त होता है.
व्रत के साथ ही इस दिन भगवान शिव की पूजा भी की जाती है. प्रदोष के दिन प्रदोष काल में भगवान शिव की पूजा का विधान है. आमतौर पर संध्या के समय सूर्यास्त से 45 मिनिट पहले प्रदोषकाल शुरू होता है. इसी समय प्रदोष व्रत की पूजा की जाती है.
ज्योतिषाचार्य आचार्य पंडित विमल पारीक के अनुसार प्रदोष का व्रत करने से चंद्रग्रह से संबंधित दोष दूर होते हैं. चंद्रमा मन के स्वामी माने गए हैं. इसलिए चंद्रमा संबंधी दोष दूर होने से मन को शांति मिलती है. बुधवार के दिन आने वाली प्रदोष को भगवान शिव की पूजा और व्रत करने से बुध ग्रह से संबंधी दोष भी दूर होते हैं. बुध को बुद्धि और विद्या का कारक माना गया है.
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, प्रदोष काल में भगवान भोलेनाथ कैलाश पर्वत के रचित भवन में आनंद तांडव करते हैं और सभी देवी-देवता उनकी स्तुति करते हैं. इसलिए जो भी प्रदोष के दिन व्रत रखकर प्रदोषकाल में भगवान शिव की आराधना करता है उस पर भगवान भोलेनाथ की विशेष कृपा होती है और उसकी सभी मनोकामनाएं भगवान भोलेनाथ पूरी करते हैं.
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सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर घर के मंदिर में दीप प्रज्ज्वलित करें. भगवान भोलेनाथ का गंगाजल से अभिषेक करें और पुष्प अर्पित करें. शाम को पूजा के बाद भगवान शिव को भोग लगाएं और आरती करें.
भगवान भोलेनाथ की पूजा में अबीर, गुलाल, चंदन, फूल, धतूरा, बिल्वपत्र, जनेऊ, कपूर और मोली सामान्यतः प्रयोग में ली जाती है. कोई भी ऋतु फल भी भगवान भोलेनाथ को अर्पित किया जाता है.