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Constitution Day: संविधान देशी लेकिन अंग्रेजों के बनाए कानूनों से आज भी हो रहे हैं फैसले - सिविल प्रक्रिया संहिता

आजाद भारत के इतिहास में 26 नवंबर का दिन खास है. देश में इस दिन बड़े ही हर्ष के साथ संविधान दिवस (Constitution Day) मनाया जा रहा है. भारत ने औपचारिक रूप से 26 नवंबर 1949 को ही संविधान को अपनाया था, हालांकि इसे 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया.

Constitution Day, Constitution Day 2021
Constitution Day
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Published : Nov 26, 2021, 8:36 AM IST

Updated : Nov 26, 2021, 11:10 AM IST

जयपुर. हर भारतीय नागरिक के लिए हर साल 26 नवंबर का दिन बेहद खास होता है. दरअसल यही वह दिन है जब देश की संविधान सभा ने मौजूदा संविधान को विधिवत रूप से अपनाया था. यह संविधान ही है जो हमें एक आजाद देश का आजाद नागरिक की भावना का एहसास कराता है. जहां संविधान के दिए मौलिक अधिकार हमारी ढाल बनकर हमें हमारा हक दिलाते हैं, वहीं इसमें दिए मौलिक कर्तव्य में हमें हमारी जिम्मेदारियां भी याद दिलाते हैं. हर वर्ष 26 नवंबर का दिन देश में संविधान दिवस (Constitution Day) के तौर पर मनाया जाता है. संविधान दिवस पर पढ़िए ये खास रिपोर्ट...

संविधान देशी लेकिन अंग्रेजों के बनाए कानूनों से आज भी हो रहे हैं फैसले

पढ़ें- संसद के सेंट्रल हॉल में संविधान दिवस समारोह, शामिल होंगे राष्ट्रपति कोविंद

देश को आजादी मिलने के बाद 9 दिसंबर 1947 को संविधान सभा का पहला सत्र (First Session of the Constituent Assembly) आयोजित हुआ तो देशवासियों के मन में था कि अंग्रेज तो देश छोड़ ही चुके हैं, अब संविधान भी भारतीय होगा और देश में कानून भी भारत के रहेंगे. लेकिन आजादी को सात दशक से ज्यादा समय बीतने के बाद भी देश के प्रमुख कानून अंग्रेजों के बनाए हुए ही हैं.

संविधान निर्माण के समय संविधान सभा के सदस्यों का यह मानना रहा होगा कि एक साथ नए कानून बनाना संभव नहीं है. ऐसे में संविधान के अनुच्छेद 13 में प्रावधान किया गया कि जो तत्कालीन कानून संविधान के मूल अधिकारों से नहीं टकराते हैं, उन्हें लागू रखा जाएगा. भले ही संविधान आम आदमी के अधिकारों का रक्षक है, लेकिन आज देखा जाए तो न्यायपालिका अंग्रेजों के कानूनों पर ही टिकी हुई है. अदालतें साक्ष्य अधिनियम के तहत गवाहों का परीक्षण कर भारतीय दंड संहिता में बताए अपराधों को लेकर दंडित करने का काम करती है. लेकिन भारतीय दंड संहिता जहां 1860 में बनी थी तो वहीं साक्ष्य अधिनियम भी 1872 में लागू हुआ था.

सर्वप्रथम तिलक को हुई थी सजा, आज भी है लागू

ब्रिटिश काल (British period) में स्वतंत्रता की मांग करने वाले स्वतंत्रता सेनानियों को भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए का उपयोग कर दबाया जाता था. बाल गंगाधर पहले ऐसे व्यक्ति थे, जिन्हें इस कानून के तहत सजा हुई थी. वहीं महात्मा गांधी, भगत सिंह और जवाहर लाल नेहरू सहित अनेक स्वतंत्रता सेनानियों के खिलाफ अंग्रेजों ने इस धारा का बखूबी प्रयोग किया. इस कानून के तहत वर्ष 1922 में महात्मा गांधी पर भी यंग इंडिया में उनके लेखों के कारण राजद्रोह का मुकदमा दायर किया गया था.

पढ़ें- 26/11 मुंबई आतंकी हमला : भारत-पाक संबंधों के बीच खिंच गई लाल लकीर, आज भी जख्म हरे

वहीं, आजादी के बाद पहली बार यह मामला वर्ष 1951 में आया. पंजाब हाईकोर्ट ने तारासिंह गोपीचंद बनाम राज्य सरकार के मामले में निर्णय दिया कि धारा 124ए बोलने की आजादी असीमित नहीं है. हाल ही में तत्कालीन सीजे एनवी रमन्ना (CJ NV Ramanna) की खंडपीठ ने इसकी वैधानिकता पर बोलते हुए कहा था कि महात्मा गांधी और तिलक को चुप कराने के लिए अंग्रेजों की ओर से किया गया यह औपनिवेशिक कानून है. इसके बावजूद आजादी के सात दशक बाद भी क्या यह जरूरी है? इसके अलावा उस समय अधिकांश मोटर वाहन अंग्रेजों के पास ही होते थे.

ऐसे में दुर्घटनाओं में मौत होने पर जिम्मेदारी से बचने की मानसिकता के साथ ही आईपीसी की धारा 304ए को लागू किया गया था. हालांकि, कुछ कानूनों में आजादी के बाद संशोधन भी किया गया.

Constitution Day, Constitution Day 2021
ये हैं आजादी से पुराने कानून

क्या कहते हैं अधिवक्ता

अंग्रेजों ने सभी कानून मास्टर-सर्वेंट की तर्ज पर बनाए थे. ऐसे में अब इनका पूरी तरह देशीकरण करना चाहिए. - प्रतीक कासलीवाल, संवैधानिक मामलों के विशेषज्ञ अधिवक्ता.

यह दुर्भाग्य की बात है की आजादी के सात दशक बाद भी अंग्रेजों के बनाए कानून से न्याय व्यवस्था चल रही है. इसमें बदलाव की जरूरत है.- अजय कुमार जैन , वरिष्ठ अधिवक्ता

जयपुर. हर भारतीय नागरिक के लिए हर साल 26 नवंबर का दिन बेहद खास होता है. दरअसल यही वह दिन है जब देश की संविधान सभा ने मौजूदा संविधान को विधिवत रूप से अपनाया था. यह संविधान ही है जो हमें एक आजाद देश का आजाद नागरिक की भावना का एहसास कराता है. जहां संविधान के दिए मौलिक अधिकार हमारी ढाल बनकर हमें हमारा हक दिलाते हैं, वहीं इसमें दिए मौलिक कर्तव्य में हमें हमारी जिम्मेदारियां भी याद दिलाते हैं. हर वर्ष 26 नवंबर का दिन देश में संविधान दिवस (Constitution Day) के तौर पर मनाया जाता है. संविधान दिवस पर पढ़िए ये खास रिपोर्ट...

संविधान देशी लेकिन अंग्रेजों के बनाए कानूनों से आज भी हो रहे हैं फैसले

पढ़ें- संसद के सेंट्रल हॉल में संविधान दिवस समारोह, शामिल होंगे राष्ट्रपति कोविंद

देश को आजादी मिलने के बाद 9 दिसंबर 1947 को संविधान सभा का पहला सत्र (First Session of the Constituent Assembly) आयोजित हुआ तो देशवासियों के मन में था कि अंग्रेज तो देश छोड़ ही चुके हैं, अब संविधान भी भारतीय होगा और देश में कानून भी भारत के रहेंगे. लेकिन आजादी को सात दशक से ज्यादा समय बीतने के बाद भी देश के प्रमुख कानून अंग्रेजों के बनाए हुए ही हैं.

संविधान निर्माण के समय संविधान सभा के सदस्यों का यह मानना रहा होगा कि एक साथ नए कानून बनाना संभव नहीं है. ऐसे में संविधान के अनुच्छेद 13 में प्रावधान किया गया कि जो तत्कालीन कानून संविधान के मूल अधिकारों से नहीं टकराते हैं, उन्हें लागू रखा जाएगा. भले ही संविधान आम आदमी के अधिकारों का रक्षक है, लेकिन आज देखा जाए तो न्यायपालिका अंग्रेजों के कानूनों पर ही टिकी हुई है. अदालतें साक्ष्य अधिनियम के तहत गवाहों का परीक्षण कर भारतीय दंड संहिता में बताए अपराधों को लेकर दंडित करने का काम करती है. लेकिन भारतीय दंड संहिता जहां 1860 में बनी थी तो वहीं साक्ष्य अधिनियम भी 1872 में लागू हुआ था.

सर्वप्रथम तिलक को हुई थी सजा, आज भी है लागू

ब्रिटिश काल (British period) में स्वतंत्रता की मांग करने वाले स्वतंत्रता सेनानियों को भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए का उपयोग कर दबाया जाता था. बाल गंगाधर पहले ऐसे व्यक्ति थे, जिन्हें इस कानून के तहत सजा हुई थी. वहीं महात्मा गांधी, भगत सिंह और जवाहर लाल नेहरू सहित अनेक स्वतंत्रता सेनानियों के खिलाफ अंग्रेजों ने इस धारा का बखूबी प्रयोग किया. इस कानून के तहत वर्ष 1922 में महात्मा गांधी पर भी यंग इंडिया में उनके लेखों के कारण राजद्रोह का मुकदमा दायर किया गया था.

पढ़ें- 26/11 मुंबई आतंकी हमला : भारत-पाक संबंधों के बीच खिंच गई लाल लकीर, आज भी जख्म हरे

वहीं, आजादी के बाद पहली बार यह मामला वर्ष 1951 में आया. पंजाब हाईकोर्ट ने तारासिंह गोपीचंद बनाम राज्य सरकार के मामले में निर्णय दिया कि धारा 124ए बोलने की आजादी असीमित नहीं है. हाल ही में तत्कालीन सीजे एनवी रमन्ना (CJ NV Ramanna) की खंडपीठ ने इसकी वैधानिकता पर बोलते हुए कहा था कि महात्मा गांधी और तिलक को चुप कराने के लिए अंग्रेजों की ओर से किया गया यह औपनिवेशिक कानून है. इसके बावजूद आजादी के सात दशक बाद भी क्या यह जरूरी है? इसके अलावा उस समय अधिकांश मोटर वाहन अंग्रेजों के पास ही होते थे.

ऐसे में दुर्घटनाओं में मौत होने पर जिम्मेदारी से बचने की मानसिकता के साथ ही आईपीसी की धारा 304ए को लागू किया गया था. हालांकि, कुछ कानूनों में आजादी के बाद संशोधन भी किया गया.

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ये हैं आजादी से पुराने कानून

क्या कहते हैं अधिवक्ता

अंग्रेजों ने सभी कानून मास्टर-सर्वेंट की तर्ज पर बनाए थे. ऐसे में अब इनका पूरी तरह देशीकरण करना चाहिए. - प्रतीक कासलीवाल, संवैधानिक मामलों के विशेषज्ञ अधिवक्ता.

यह दुर्भाग्य की बात है की आजादी के सात दशक बाद भी अंग्रेजों के बनाए कानून से न्याय व्यवस्था चल रही है. इसमें बदलाव की जरूरत है.- अजय कुमार जैन , वरिष्ठ अधिवक्ता

Last Updated : Nov 26, 2021, 11:10 AM IST
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