जयपुर. नवगठित नगर निगम के चुनाव की तारीख के एलान के बाद अब दोनों ही राजनीतिक दल कांग्रेस और भाजपा इसकी तैयारियों में जुट गए हैं. जयपुर, जोधपुर और कोटा में नवगठित नगर निगमों में होने वाले चुनाव भले ही लोकसभा और विधानसभा चुनाव की तुलना में बेहद छोटे हों, लेकिन इन छोटे चुनाव में प्रदेश के बड़े दिग्गज राजनेताओं की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है.
प्रदेश के जिन 3 शहरों में ये चुनाव होने हैं, उनमें जोधपुर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का गृह जिला है तो वहीं कोटा नगरीय विकास मंत्री शांति धारीवाल का गृह जिला है. इसी तरह जयपुर प्रदेश की राजधानी है और यहां सरकार भी रहती है. वहीं, बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया जयपुर के आमेर से ही विधायक हैं, जो कि नगर निगम का एक हिस्सा है.
वहीं, परिवहन मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास और सरकारी मुख्य सचेतक डॉ. महेश जोशी भी जयपुर से ही आते हैं. मतलब इन छोटे चुनाव में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, यूडीएच मंत्री शांति धारीवाल और भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया के साथ ही मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास और सरकारी मुख्य सचेतक महेश जोशी की प्रतिष्ठा और साख पूरी तरह दांव पर है. सत्तारूढ़ कांग्रेस और विपक्ष में बैठी भाजपा के नेताओं की मानें तो इन चुनाव के लिए उनकी पूरी तैयारी है और दोनों ही दल अपनी-अपनी जीत का एडवांस में दावा भी कर रहे हैं.
तीनों ही शहरों के नगर निगम का इतिहास देखें तो अंतिम बोर्ड पर भाजपा का ही कब्जा रहा था. हालांकि, जयपुर नगर निगम में बोर्ड भाजपा का था, लेकिन अशोक लाहोटी के विधायक बनने पर महापौर बीजेपी के बागी विष्णु लाटा बने थे. अब बीजेपी चाहती है कि जोधपुर, कोटा और जयपुर में भाजपा का कब्जा जारी रहे और इन चुनावों में भी पार्टी का कमल खिले.
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लेकिन इसके ठीक विपरीत सत्तारूढ़ कांग्रेस चाहती है कि यह तीनों ही नगर निगम कांग्रेस के हाथ में रहे. ऐसा होना लाजमी है क्योंकि जोधपुर और कोटा में चुनाव परिणाम कांग्रेस के पक्ष में नहीं आते हैं तो मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और यूडीएच मंत्री शांति धारीवाल के विरोधियों को बोलने का मौका मिल जाएगा. ऐसे में सरकार नहीं चाहेगी कि इन चुनाव में कांग्रेस से कहीं पर भी कोई चूक हो. वहीं, जयपुर में यदि भाजपा का कमल नहीं खिला तो भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया की साख पर भी सवाल उठना तय है.
बता दें शहरी सरकार चुनने के लिए 29 अक्टूबर और 1 नवंबर को दो चरणों में मतदान और चुनाव होंगे. उसके बाद महापौर और उपमहापौर के लिए चुनाव होंगे. ऐसे में दोनों ही राजनीतिक दलों के पास अपनी तैयारी के लिए बेहद कम समय शेष है. इस दौरान प्रत्याशी चयन से लेकर उनके जीतने के समीकरण तक भी तय करने हैं.